हाल ही में उत्तर प्रदेश के आई.जी. अमिताभ ठाकुर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर ‘पुरुष आयोग’ बनाने की मांग की है। आई.जी. ने कहा कि ‘समाज के बदलते स्वरूप में आज कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले सशक्त हैं। ऐसी महिलाओं द्वारा प्रभाव और कानूनों का उपयोग कर उत्पीड़न की बातें सामने आने लगी हैं। अतएव कोर्ट राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पुरुष-आयोग के गठन का निर्देश दे।’ सचमुच, यह विडम्बना ही है कि सारे कानून स्त्री के पैरोकार हैं जबकि स्त्री की हरकतों से परेशान होने वाले पुरुषों की संख्या भी कम नहीं।
आजकल पूरे देश में वैवाहिक संबंध, घरेलू हिंसा और पारिवारिक विवाद की वजह से मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त हो रहे पुरुषों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। ऐसे पुरुषों को शोषण से मुक्ति दिलवाने हेतु ‘सेव इण्डिया फैमिली मेन’ आरम्भ करने की योजना बनायी है। मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के बाद पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में भी हेल्प लाइन की शुरुआत कर दी गई। दरअसल महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने तथा उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु बनाये गए कठोर कानूनों के दुरुपयोग ने पुरुषों और उनके परिजनों का जीवन नारकीय बना दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया है कि स्त्री-हितैषी कानूनों का उपयोग पुरुषों के विरुद्ध घातक हथियार की तरह किया जा रहा है, दहेज अधिनियम 498-ए उनमें से एक है। इस कानून के दुरुपयोग के मामलों में वृद्धि के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने भी धारा 498-ए में संशोधन की आवश्यकता जतलायी थी और अब पुनः कहा है कि दहेज प्रताड़ना के मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। पहले आरोपों की पुष्टि की जाए, फिर कार्रवाई की जाए।
ज्ञातव्य है कि वर्ष 1984 में कानून में दहेज प्रताड़ना की धारा 498-ए और दहेज हत्या की धारा 304-बी जोड़ी गई। इसका उद्देश्य स्त्रियों को राहत पहुंचाना था मगर इस कानून का दुरुपयोग अधिक हो रहा है। वर्ष 2012 में केवल मध्यप्रदेश में दहेज प्रताड़ना के सर्वाधिक 3988 केस दर्ज किए गए। जिनमें से सिर्फ 697 में सजा हुई, बाकी मामले झूठे साबित हुए। झूठे दहेज-प्रकरण या हिंसा के आरोप में पुरुषों को फंसा देना स्त्रियों के लिए मामूली बात है। कुछ कानून पुरुषों के लिए ऐसी मुसीबत बन गए हैं कि अकेले मध्यप्रदेश की संस्कृतिधानी जबलपुर में विगत पांच वर्षों में पत्नियों द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों के बाद 4500 पति ऐसे फरार हुए कि अब तक लापता हैं। दरअसल पत्नियों द्वारा थाने में शिकायत दर्ज करवाने के बाद पतियों पर गिरफ्तारी के अलावा जिन मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है उनसे बचने के लिए घर से भाग जाने या आत्महत्या के अलावा अन्य कोई विकल्प उन्हें नहीं सूझता। सन 2012 में 1554 पुरुषों ने केवल मध्यप्रदेश में ही, पत्नी से विवाद के कारण आत्महत्या कर ली।
दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार अब इसमें संशोधन पर विचार कर रही है। झूठे आरोप लगाने वालों पर अब जुर्माना या सजा का प्रावधान हो सकता है। महिला एवं बाल विकास विभाग इस कानून को और सख्त बनाना चाहता है। पर यह ध्यान रखना चाहिए कि कानून समाज में व्यवस्था एवं अपरिहार्य स्थितियों से निपटने के लिए हो। हथियार की तरह उसका उपयोग परिवार के हित में नहीं है। एक महत्वपूर्ण बात और, महिलाओं की तरह उत्पीडि़त पुरुषों को भी अपनी बात रखने के लिए सरकार क्यों न पुरुष आयोग‘ जैसा एक मंच मुहैया कराये …