हिंदू मान्यताओं के अनुसार रथ सप्तमी को सूर्य जयंती के रुप में मनाया जाता है और इस दिन के लिए विशेष पूजा विधि अपनाई जाती है जिसमें स्नान, दान, सूर्य पूजा की जाती है। सूर्य को सभी ग्रहों का राजा माना जाता है, ब्राह्मण में सूर्य के चारो तरफ सभी ग्रह चक्कर काटते हैं। इस दिन सूर्य देव को खुश करने के लिए आदित्य ह्रदयं और अन्य सूर्य स्त्रोत पढ़ना और सुनना शुभ माना जाता है। इससे मनुष्य स्वस्थ्य रहता है। मान्यता है कि रोजाना सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। भानु सप्तमी के दिन सूर्य का पूजन करने से व्यक्ति की स्मरण शक्ति बढ़ती है। माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि कलयुग में स्त्रियों को किस व्रत और पूजा से सुपुत्र की प्राप्ति होगी। इसपर भगवान कृष्ण ने एक कथा कही कि प्राचीनकाल में इंदुमति नाम की एक वेश्या थी। एक बार उसने ऋषि वशिष्ठ से जाकर पूछा कि मुनिराज मैनें आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं किया है, लेकिन मुझे मृत्यु पश्चात मोक्ष की इच्छा है तो वो मुझे किस प्रकार से प्राप्त होगा। इंदुमति की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने उत्तर दिया कि महिलाओं को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाली अचला सप्तमी से बढ़कर कुछ नहीं है।
इस दिन पूजा और व्रत करने वाली स्त्री को मनचाहा फल मिलता है। इसलिए तुम इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करो, इससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। वशिष्ठ जी के कहने पर इंदुमति ने इस व्रत का पालन किया और जब उसकी मृत्यु हुई तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। वहां जाने के बाद वो सभी अप्सराओं की नायिका बन गई। इसी मान्यता के आधार पर इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और प्रसाद के रुप में गेहूं की खीर बनाई जाती है।