राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के समावेशी चरित्र पर बल देते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आज (01 अप्रैल को) पुणे में कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत जैसे नारे राजनीतिक मुहावरे हैं न कि संघ की भाषा का हिस्सा। भागवत ने एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा, ‘‘ये राजनीतिक नारे हैं। यह आरएसएस की भाषा नहीं है। मुक्त शब्द राजनीति में इस्तेमाल किया जाता है। हम किसी को छांटने की भाषा का कभी इस्तेमाल नहीं करते।’’ बता दें कि आरएसएस को अपना वैचारिक मातृ संगठन मानने वाली भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अक्सर कांग्रेस मुक्त भारत की बात की है।
भागवत ने कहा, ‘‘हमें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सभी लोगों को शामिल करना है, उन लोगों को भी जो हमारा विरोध करते हैं।’’ गौरतलब है कि फरवरी में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह महात्मा गांधी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और उन्होंने देश की इस सबसे पुरानी पार्टी पर सत्ता में रहने के दौरान देश की विकास की कीमत पर गांधी परिवार का महिमामंडन करने का आरोप लगाया था। पीएम मोदी के अलावा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी अक्सर कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते रहे हैं। कई राज्यों में बीजेपी या एनडीए की सरकार बनाने के बाद इन नेताओं ने अक्सर कहा है कि देश कांग्रेस मुक्त दिशा में बढ़ रहा है।
भागवत 1983 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी ध्यानेश्वर मुले की छह पुस्तकें लांच करने के लिए पुणे के एक कार्यक्रम में आए थे। मुले विदेश मंत्रालय में फिलहाल सचिव (कांसुलर, पासपोर्ट, वीजा और ओवरसीज इंडियन अफेयर्स) हैं। आरएसएस प्रमुख ने बदलाव लाने के लिए सकारात्मक पहल की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि नकारात्मक दृष्टि वाले बस संघर्षों और विभाजन की ही सोचते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा व्यक्ति राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में बिल्कुल ही उपयोगी नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि हिंदुत्व को देखने का एक तरीका अपने आप, अपने परिवार एवं अपने देश पर विश्वास करना है। भागवत ने कहा, ‘‘यदि कोई अपने आप पर, परिवार पर और देश पर विश्वास करता है तो वह समावेशी राष्ट्रनिर्माण की दिशा में काम कर सकता है।’’