Rahul Gandhi on SC/ST Bill : PM Modi is crushed by suppressing Dalits, Modi government.
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एससी/एसटी बिल के विरोध में दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व सीपीएस के येचुरी भी सम्मिलित हैं। इस अवसर पर राहुल गांधी का कहना है कि अगर मोदी जी के दिल में दलितों के लिए जगह थी तो आज दलितों की नीतियां भिन्न-भिन्न होती। जब मोदी जो मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने एक किताब में लिखा था कि दलितों को सफाई कराने से आनंद मिलता। बीजेपी और आरएसएस कभी चाहते ही नही कि शिक्षा व प्रगति में दलितों की जगह बने। उन्होंने कहा कि दलितों को वहीं दबाया जाता है जहां पर जिस प्रदेश में बीजेपी की सरकार होती है। वहां उन्हें कुचला जा रहा है। इसके राहुल गांधी ने कहा कि मोदी दलित विरोधी हैं और 2019 में हम सब एकत्रित होकर बीजेपी को हराएंगे। दरअसल एससी/एसटी एक्ट को नौवीं की सूची में डालने के लिए किया जा रहा है जिससे कोई भी इसे छेड़े नही यहां तक कि कोर्ट भी। उनका कहना है कि एससी/एसटी एक्ट को मोदी जी ने रद्द कराया क्योंकि जिस जज ने यह फैसला सुनाया था मोदी जी ने उसे रिवार्ड दिया था। उनकी सोंच बिकुल भी दलितों में शामिल नही है। इसके आगे उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने विकास में दलितों को जगह नही बल्ति एससी/एसटी एक्ट दिया है। मोदी सरकार ने भे ही इसे बदलने दिया हो लेकिन हम एससी/एसटी एक्ट की रक्षा करेंगें।
दरअसल लोकसभा ने 6 अगस्त को एससी/एसटी एक्ट के तहत अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 को मंजूरी दी गई। और सरकार ने जोर डाला कि आरक्षण का पक्षधर हमेशा से बीजेपी सरकार रही है व दलितों को सशक्तीकरण के लिए कार्ययोजा बनाकर काम कर रही है। लोकसभा मे करीब 6 घंटे तक यह चर्चा चली थी जिसके बाद सदन ने कुछ सदस्यों के संशोधन को नही मानते हुए ध्वनिमत से विधेक को मंजूरी दी। इसके पहले भी जब विधेयक पर चर्चा हो रही थी तो अध्कारिता मंत्री व सामाजिक न्याय मंत्री थावर जवाब देते हुए कहा कि हमने कई बार एकदम फ बोला था और आज एक बार फिर से कहना चाहते हैं कि हम आरक्षण के साथ थे और आगे भी रहेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार केंद्रों में रहे या राज्यों मे उन्हें जब भी अवसर प्राप्त हुआ उन्होंने इसको सुनिश्चित किया। इसके आगे उन्होंने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण पर उच्चतम न्यायालय के आदेश को लेकर सरकार ने पुनर्विचार एक याचिका दायर की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला लिया था। और कार्मिक मंत्रालय भी इसकी कार्रवाई लगी है। इसमें राज्यों को भी परामर्श जारी किया गया है। इतना ही नही इसके आगे गहलोत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के आलोक में आरक्षण का विषय अटल बिहारी वाजपेयी के समय ही आया था तो अटल सरकार ने 5 कार्यालयों में आदेश निकालकर आरक्षण के पक्ष में अपनी प्रतिबद्धता साबित की थी। जिसके बाद मंत्री ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि हम यह आरोप लग हा है कि हम विधेयक को देरी से ला रहें हैं। क्या वो जवाब देंगे कि 1989में जब कानून आया था तो उसको मजबूत बनाने के लिए उमें संशोधन क्यों नही किया गया। वोट बैंक को लेकर कांग्रेस परआरोप लगा था कि यह दलितों का इस्तेमाल करती है और हमारी नीति व नियत दोनो ही गलत नही है। हम तो डॉ भीमराव अंबेडकर की सोंच को चरितार्थ कर रहें हैं और यही कारण है कि पहले से भी ज्यादा मजबूत विधायक हम इस बार ले आए हैं।
आपको बता दे कि विधेयक के उद्श्यों व कारणों मे कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 से व कई निर्णयों में दंड विधि शास्त्र के सिद्धांतों से साफ जाहिर होता है कि जब अन्वेषक अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई अपराध किया गया है तो वह अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता है। और अन्वेषक अधिकारी से यह विनिश्चय नहीं छीना जा सकता है कि वो यह निश्चित नही करें कि गिरफ्तार करना है या नही। इससे लोकहित में यह उपयुक्त है कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के उपबंध लागू किए जाएं जिससे किसी भी स्थिति में किए गए किसी अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या प्रथम इत्तिला रिपोर्ट के पंजीकरण की बाबत प्रारंभिक जांच या प्राधिकारी के अनुमोदन के बिना न हो सके। और विधेयक के 18क में है कि इस संहिता या अधिनियम के अंतर्गत उपबंधित प्रक्रिया से अलग कोई प्रक्रिया नहीं लागू होगी क्योंकि इस अधिनियम के अतर्गत किसी के भी विरूद्ध अपराध को लेकर अभियोग लगाया गया है। इसमें एकदम साफ कहा गया है कि किसी भी न्यायालय के किसी निर्णय, आदेश या निदेश के रहते हुए भी संहिता की धारा 438 के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी मामले पर लागू नहीं किया जाएगा।
वही कुछ समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक निर्णय लिया गया था। जिसमें किसी अपराध के चलते प्रथम इत्तिला रिपोर्ट रजिस्टर करने से पहले पुलिस उप अधीक्षक को यह पता लगाना चाहिए कि क्या कोई मामला बनता है या नही और यदि ऐसा कुछ है तो ही कोई प्रारंभिक रिपोर्ट दर्ज की जायेगी नही तो नही। इतना ही नही ऐसे अपराध के चलते किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले किसी समुचित प्राधिकारी का स्वीकृति भी प्राप्त की जायेगी।