Friday, September 20, 2024
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संकष्टी गणेश चतुर्थी में संतान की रक्षा के लिए किया जाता है व्रत…

SI News Today

संकष्टी गणेश चतुर्थी हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन आती है। कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी या संकट हारा तथा शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि यदि यह चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसका महत्व और अधिक हो जाता है। उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस चतुर्थी को दक्षिण भारत बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है। भगवान गणेश के लिए किया गया व्रत विद्या, बुद्धि, सुख-समृद्धि की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक माना जाता है।

पूजा विधि- सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद भगवान गणेश का पूजन करते हुए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख किया जाता है और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को लगाकर उन्हें स्वच्छ चौंकी पर विराजित किया जाता है और खुद आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें। पूजा में फल, फूल, रोली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को अर्पित करें। धूप, दीप के साथ गणेश मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाना शुभ माना जाता है। इसके साथ ऊं सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः का जाप करें। शाम को व्रत पूरा होने के बाद संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें। संकष्टी व्रत का पूजन शुभ मुहूर्त में करना ही लाभदायक माना जाता है। 5 मार्च 2018 को पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 4 बजकर 53 मिनट से शुरु होगा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है।

व्रत कथा- पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग काल में हरिशचंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता करता था। वो हर दिन बर्तनों का आंवा लगाता था लेकिन उसके बर्तन पूरे तरह से पकते नहीं थे वे कच्चे रह जाते थे। इससे वह कुम्हार बहुत परेशान था। इस तरह का हर दिन नुकसान देखने के बाद उसने गांव में आए तांत्रिक से उपाय पूछा। तांत्रिक ने बताया कि अपने आंवे में किसी बच्चे की बलि दे दो, उसके बाद काम बनने लगेंगे। इसके बाद वह कुम्हार गांव के ऋषि शर्मा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र को पकड़ लाया और संकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। बालक की माता भगवान गणेश की भक्त थी और उसने अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत किया था। सुबह कुम्हार ने जब आंवा देखा तो लड़का जिंदा था।

कुम्हार ये देखकर डर गया और उसने राजा के पास जाकर अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता को बुलाकर उसका पुत्र सौंपा और इस चमत्कार का कारण पूछा तो उसकी माता ने बताया कि वो संकट चौथ के दिन भगवान गणेश का विधि पूर्वक पूजन और व्रत करती है। इस दिन के बाद से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।

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