The registration of a party giving tickets to the criminals may be canceled: Supreme Court
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जिस तरह से देश में यूपीएससी, डिफेंस सर्विसेज, एयर फोर्स, इंडियन नेवी पदों के लिए किसी व्यक्ति का कोई आपराधिक मामला नहीं होना चाहिए. ठीक उसी तरह क्या पार्लियामेंट में बैठने वाले दबंग नेताओं के लिए कोई नियम कानून होने चाहिए? या ये नियम कानून सिर्फ आम इंसान के लिए बनते हैं? देश में बिना किसी भेद भाव के पार्लियामेंट में वरिष्ठ पदों पर बैठे दबंग नेताओं के लिए भी वही कानून बनना चाहिए जो किसी आम व्यक्ति के लिए है.
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वही इस पर गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्यों ना ऐसी राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण ही रद्द कर दिया जाए. जो आपराधिक मामलो में फसें लोगों को चुनाव लड़ने का टिकट देती है. शीर्ष न्यायालय ने सरकार से पूछा कि क्या चुनाव आयोग को ऐसा करने का निर्देश दिया जा सकता है?
राजनीति में अपराधीकरण के लिए कोई भी जगह नहीं होती ऐसा कहते हुए न्यायालय ने पूछा, फिर विधायकों को अपराधमुक्त राजनीति के संबंध में कानून बनाने के लिए कहा जा सकता है ? इस मामले पर एनजीओ की तरफ से एक बड़े वकील ने दिनेश द्रिवेदी ने कहा, कानून तोड़ने वाला कभी कानून निर्माता नहीं हो सकता. द्रिवेदी ने आगे कहा, 2014 में 34 प्रतिशत विधायक दागी थे. इस कारण विधायका कुछ नहीं बोल पा रही हैं. इसलिए इस मामले में कोर्ट को ही आगे आना चाहिए.
वही इस पर जवाब देते हुए पीठ ने कहा, आप चाहते है कि संसद को हम इस संबंध में कानून बनाने को कहें. पीठ ने आगे कहा, संविधान में सभी के अधिकार बांटे गए हैं. कानून बनाना विधायक का काम है. अदालत कि लक्षण रेखा कानून की व्यवस्था करने तक सीमित है. बता दें कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अधक्ष्यता वाली पांच संसदीय पीठ ने यह सवाल इस संबंध में दाखिल कई जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उठाए. वही इस मामले में आगे की सुनवाई मंगलवार को होगी.
गौरतालब है कि, 8 मार्च 2016 को एक तीन सदयस्यी पीट ने यह मसला संविधान पीठ को रिफर किया था.
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