Thursday, November 21, 2024
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मजदूर मां बाप के ब्लाइंड बेटे ने 26 साल की उम्र में खड़ी कर दी 150 करोड़ रुपए की कंपनी

SI News Today

The son of the laborer parents made a Rs 150 crore company at the age of 26.

     

हौसला, हिम्मत, जोश और जुनून किसे कहते हैं, ये कोई श्रीकांत बोला से सीखे, श्रीकांत बचपन से ही ब्लाइंड हैं। पर लगभग 26 साल की उम्र में 150 करोड़ रुपए की कंपनी खड़ी कर दी। दरअसल श्रीकांत कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बौलेंट इंडस्ट्रीज के CEO हैं। उनकी कंपनी के 7 प्लांट है, जिसमें 1200 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं, इनमें से ज्यादातर दिव्यांग हैं।

हैदराबाद के श्रीकांत बोला का बचपन कई कठिनाइयों से गुजरा। उनके परिवार की मासिक आय महज 1,500 रुपए महीना थी, जब श्रीकांत पैदा हुए तो रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने उन्हें मार डालने की सलाह दी थी। पर श्रीकांत की किस्मत में कुछ और ही था। श्रीकांत बचपन से ही पढ़ने में तेज थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद श्रीकांत ने 10वीं अच्छे अंकों से पास की, उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई, वह दसवीं के बाद साइंस पढ़ना चाहते थे। पर उनके ब्लाइंड होने के कारण, इसकी इजाजत नहीं मिली। पर श्रीकांत भी कहां हार मानने वालों में से थे। कई महीनों की लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार श्रीकांत को साइंस पढ़ने की इजाजत मिली। इसके बाद श्रीकांत ने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। श्रीकांत को अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करते ही अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान में एडमिशन मिल गया।

अमेरिका से अपनी शिक्षा लेने के बाद श्रीकांत ने हैदराबाद में अपनी कंपनी की शुरुआत की। श्रीकांत ने लोगों के खाने-पीने के समान की पैकिंग के लिए कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी बनाई। इस कंपनी की शुरुआत श्रीकांत ने 8 लोगों की एक टीम से की। उन्होंने इस कंपनी में सबसे पहले आस-पास के बेरोजगार लोगों को जोड़ा। जिसमें श्रीकांत ने ब्लाइंड लोगों को काम दिया। जब श्रीकांत की कंपनी अच्छी रफ्तार पकड़ने लगी तो फंडिंग की दिक्कत आना शुरू हुई। ऐसे में श्रीकांत फंडिंग कंपनियों और निजी बैंकों से फंड जुटाकर अपने काम को आगे बढ़ाया। श्रीकांत की कंपनी ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। आज श्रीकांत की कंपनी के तेलंगाना और हैदराबाद में 7 प्लांट है, उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 150 करोड़ तक पहुंच गया है।

श्रीकांत का कहना है कि मुझे क्लास में भी सबसे पीछे बैठाया जाता था।  इसकी वजह ये नही थी कि मैं क्लास सबसे लंबा था, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं देख नहीं सकता था, टीचर को लगता था कि मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा, मैं तब भी कहता था, आज भी कहता हूं मैं सबकुछ कर सकता हूं। दरअसल उनका कहना है कि अगर आपको अपनी जिंदगी की जंग जीतनी है, तो सबसे बुरे समय में धैर्य बनाकर रखने से सफलता जरूर मिलेगी।

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