देहरादून: विकास की मांग और पर्यावरण संरक्षण की प्रतिबद्धता के बीच के अंतर्द्वंद को चुनौतीपूर्ण बताते हुए उत्त्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आज कहा कि पर्यावरण असंतुलन के कारण पिछले कुछ वर्षों में आपदाओं में वृद्धि हुई है. यहां “हिमालय क्षेत्र में आपदा सुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चरः संभावनाएं एवं चुनौतियां’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि सरकार की चिंता है कि विकास कार्य आपदा प्रबंधन के मानकों के अनुसार हो और लोग सुरक्षित रहें.
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दो वर्षों में उत्तराखंड में 38 हल्के भूकंप आए हैं जिनकी कोई चिंता नहीं होती है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भूकंप, अतिवृष्टि और बादल फटने जैसी आपदाओं में वृद्धि हुई है और इनके लिए निश्चित रूप से पर्यावरणीय असंतुलन जिम्मेदार है.
बचाव को उपचार से बेहतर बताते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि आपदाओं से बचने के लिए सबसे बेहतर तरीका है कि हम उनकी तैयारी रखें और इसके लिये तीन बातें भवन निर्माण शैली, पर्यावरण का ध्यान और लगातार सतर्कता सदैव ध्यान में रखनी चाहिए. उन्होंने इस संबंध में पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत वास्तु शैली की तारीफ भी की. वर्ष 1991 के उत्तरकाशी भूकंप का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यमुना घाटी में पुराने निर्माण शैली के भवनों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था.
भारत सरकार के एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के सदस्य प्रोफेसर हर्ष कुमार गुप्ता ने कहा कि भूकंपों के पूर्वानुमान से कहीं अधिक आवश्यक इनके लिए तैयार होना है. उन्होंने कहा कि भूकंपों का सबसे अधिक नुकसान प्रायः स्कूलों में देखा जाता है अतः यह आवश्यक है कि इन की तैयारी बच्चों से की शुरू की जाए.