Swami Vivekananda Jayanti: भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म को लेकर कोई सवाल उठाने से पहले सौ बार सोचता है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद ने धर्म को विज्ञान के नज़र से देखने का नया नज़रिया दिया। कहा जा सकता है कि आधुनिक भारत की नीव अगर किसी ने रखी तो वह विवेकानंद ही थे।विवेकानंद ने पूरी दूनिया में हिंदू धर्म को लेकर एक नयी परिभाषा गढ़ी। विवेकानंद ने संसार को भारतीय दर्शन और वेद का पाठ पढ़ाया, जिसके सामने पूरी दुनिया नतमस्तक हो गई। हलांकि उनका जीवनकाल काफी ज़्यादा नहीं रहा और वो महज़ 39 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए थे। आज पूरी दुनिया में युद्ध और उन्माद फैला हुआ है वहीं विवेकानंद लोगों को शांति और भाईचारे के साथ रहने का संदेश देते हैं। भारत में आज जहां धर्म को लेकर उत्तेजक माहोल बनाया जा रहा है वहीं विवेकानंद की विचारधारा धर्म में आज़ादी की बात करती है।
1893 ई. में जब अमेरिका के प्रसिद्ध शिकागो में विश्व धर्म संसद का आयोजन किया गया तो भरत की तरफ से विवकानंद इसमें हिस्सा लने पहुंचे। इस धर्म संसद में दुनिया भर से अलग-अलग धर्मों के विद्वानों ने हिस्सा लिया लेकिन जब विवेकानंद ने सबके सामने वेदांत का ज्ञान दिया तो पूरा संसद तालियों से गूंज उठा। विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत में अमेरिका के लोगों को भाईयों और बहनो कहकर संबोधित किया जिससे वहां के लोग कापी प्रसन्न हुए। दरअसल विवेकानंद ने दुनिया को बताया कि भारत सभी लोगों को एक परिवार की तरह देखता है। उन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि भारत न केवल शांति प्रिय देश है बल्कि वो सारे संसार के साथ सामंजस्य बिठाकर रहने और सबके लिए मदद के दरवाजे खोलने की नीति में भरोसा करता है।
अमेरिकी लोगों ने भारत के इस नज़रिए को खूब सराहा। उनके भाषण के कुछ प्रमुख अंश इस प्रकार है-
‘अमेरिका के बहनो और भाइयो।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है।
भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। आज भी जब युवाओं को प्रेरणा लेना होता है तो वो विवेकानंद के जीवन से लेते हैं। विवेकानंद का कहना था लक्ष्य का तब तक पीछा करो जब तक की ध्येय की प्राप्ती न हो जाए। विवेकानंद जी ने बताया कि तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम पर लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर रखो, तुम कभी नहीं चूकोगे। वर्तमान समय में भी अगर राजनीति से ऊपर उठकर विवेकानंद की विचारधारा पर विचार किया गया तो युवा न केवल अपनी ज़िंदगी में बल्कि समाज में भी बेहतर तालमेल बिठाकर विकास के मार्ग पर बढ़ सकता है।