Well-known singer and actress of that century, The lovers of the ghazal are still alive
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अख्तर बाई फैजाबादी, जिन्हे बेगम अख्तर (मस्तरी बाई) भी कहा जाता है, इनका जन्म 7 अक्टूबर 1 914 में उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद जिले में भदरसा नमक स्थान पर हुआ था. वे गजल, दादरा और ठुमरी जैसी विभिन्न हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के शैलियों की एक प्रसिद्ध भारतीय गायिका थीं. गज़ल गायकी को पसंद करने वाली बेगम अख्तर के गानों से आप सभी तो अच्छी तरह वाकिफ होगें ही। पर आइये जानते हैं बेगम अख्तर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बात जिनसे हैं आप सभी अंजान।
अख्तरी बाई फैजाबादी का नाम से जानी जाने वाली बेगम अख्तर ने 7 साल की उम्र से ही मौसिकी की तालीम लेनी शुरू कर दी थी। उन्होंने 15 साल की उम्र में ही पहली पब्लिक परफॉर्मेंस दी। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि बेगम अख्तर ने 400 गीतों को अपनी आवाज दी है। इतना ही नही वो 45 साल की उम्र तक गजल गायन मे सक्रिय रही।
गौरतलब है कि बेगम अख्तर के पिता ने अपने बच्चों के साथ अपनी पत्नी को भी छोड़ते हुए परिवार को त्याग दिया था। छोटी उम्र से ही जीवन की कठिनाइयों से लड़ते हुए बेगम ने अपनी प्यारी बहन को भी खो बैठी थी। क्या आप जानते हैं कि बेगम अख्तर का पूर्व नाम अख़्तरीबाई था। दरअसल 1945 में जब अख़्तरीबाई ने लखनऊ स्थित बैरिस्टर इश्तिअक अहमद अब्बासी से शादी की थी उसके बाद से ही वह बेगम अख्तर के रूप में जानी जाने लगी। हां वो बात और है कि शादी के बाद पति द्वारा प्रतिबंधों के चलते वे लगभग पांच साल तक गाना नहीं गा सकी। फिर 1949 में वह रिकॉर्डिंग स्टूडियो वापस आ गई और उसके बाद तो उन्हें मल्लिका-ए-गज़ल के नाम से भी जाना गया।
जहां छोटी सी उम्र में ही बेगम अख्तर के सामने अभिनय के दरवाजे खुल गए वहीं उसके बाद उन्होंने 1920 में कोलकाता के एक थिएटर से एक्टिंग करियर की भी शुरुआत कर दी थी। उस युग के सभी लोगों के जैसे ही बेगम अख्तर ने भी अपनी सभी फिल्मों में अपने गाने गाए। इसके बाद, बेगम अख्तर लखनऊ में वापस चली गयी, जहां उन्हें प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक मेहबूब खान मिले। जिसके बाद उन्होंने निर्माता महबूब खान की 1942 में बनने वाली फिल्म रोटी में बेगस अख्तर ने एक्टिंग की थी। जहां बेगम अख्तर की अच्छी लगन व संवेदनशील आवाज ने उन्हें अपने शुरुआती वर्षों में एक फिल्म करियर के लिए आदर्श उम्मीदवार बनाया। वहीं जब उन्होंने गौहर जान और मलक जान जैसे महान संगीतकारों को सुनकर भी उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में करियर के लिए फिल्म की दुनिया के ग्लैमर को त्यागने का फैसला किया।
वहीं बेहतरीन गायिकी के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के साथ ही भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले प्रतिष्ठित सम्मान पद्म श्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। गौरतलब है कि तिरुवनंतपुरम के पास बलरामपुरम में अपने अंतिम संगीत समारोह के दौरान जब बेगम अख्तर ने अपनी आवाज की पिच उठाई तो उन्हें लगा कि उनका गायन उतना अच्छा नहीं हो पाया जितना वो चाहती थी और वह अस्वस्थ महसूस कर ही रही थी कि बीमार हो गई। जिसके पश्चात उन्हें अस्पताल ले जाया गया और 30 अक्टूबर 1974 को उनका निधन हो गया।