Wednesday, September 18, 2024
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सावन के महीने में कांवरिये क्यों करते है भगवान भोले नाथ का गंगाजल से जलाभिषेक

SI News Today

Why do the Konwarnes in the month of Savan, Lord Bhole Nath’s Gangajal Jalabhishek

         

सावन का महीना भगवान भोले नाथ की पूजा और अर्चना का महीना माना जाता है . इन दिनों मंदिर और शिवालय भक्तों की भीड़ से भरे रहते है . भगवान भोलेनाथ के दर्शनों के लिए भक्त लम्बी लम्बी कतारों में मंदिरों में खड़े रहते है सावन के महीने में भगवान् की पूजा का विशेष महत्व होता है .इन दिनों श्रद्धालु कावड़ लेकर भगवान शिव को जलाभिषेक करने के लिए नाचते गाते टोली बनाकर भगवान शिव के दर्शन के लिए जाते है .
सावन के महीने में कावड़ का विशेष महत्व होता है .लेकिन क्या आप जानते है कि सावन के महीने में ही क्यों लेकर जाते है कावड़ .सावन के महीने में भगवा वस्त्रों में सड़कों पर हर ओर कावड़िये देखने को मिलते हैं। कावड़ यात्रा शिव भक्तो की आस्था एवं मस्ती की यात्रा है । क्योंकि सावन भगवान शिव की भक्ति का महीना है। इस महीने में विभिन्न माध्यमों से भगवान शकर को प्रसन्न किया जाता है।
भगवान शिव की कृपा पाने के लिए कावड़ यात्रा भी एक श्रेष्ठ माध्यम है। कावड़ यात्रा का एक महत्व यह भी है कि यह हमारे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। लंबी कावड़ यात्रा से हमारे मन में संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास जागता है। यही वजह है कि सावन में लाखों श्रद्धालु कावड़ में पवित्र जल लेकर एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान जाकर शिवलिंगों का जलाभिषेक करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जब सारे देवता सावन में शयन करते हैं तो भोलेनाथ का अपने भक्तों के प्रति वात्सल्य जागृत हो जाता है।
यूं तो कावड़ यात्रा का कोई पौराणिक संदर्भ नहीं मिलता, लेकिन कुछ किवदंतियों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम पृथ्वी पर विजय कर वर्तमान मेरठ से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नामक स्थान पर विश्राम किया और वह स्थल उनको अत्यंत मनमोहक लगा। कि उन्होंने वहा पर शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पत्थर लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंचे। उन्होंने मां गंगा की प्रार्थना की और उनसे एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया। यह अनुरोध सुनकर पत्थर रोने लगे। वह देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वह ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा।
हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया। ऐसी मान्यता है कि जब से भगवान परशुराम ने हरिद्वार से पत्थर लाकर उसका शिवलिंग पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया तब से कावड़ यात्रा की शुरूआत हुई। इसी मान्यता के कारण शिवभक्त कावड़िए तमाम कष्टों को सहते हुए हरिद्वार से गंगाजल लाकर पुरेश्वर महादेव में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

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