Why is it celebrated on 15th September Engineers Day
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कई साल पहले जब बेहतर इंजीनियरिंग सुविधाएं व तकनीकी नहीं थी तब एक इंजीनियर ने ऐसे विशाल बांध का निर्माण करवाया जो भारत में इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल के तौर पर माना जाता है। इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैय्या की उपलब्धि पर पूरा देश गर्व करता है। इनका जन्म 1860 में 15 सितंबर को मैसूर के कोलार जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री व माता का नाम वेंकटलक्षम्मा था।इसीलिए भारत में एम. विश्वेश्वरैय्या के जन्मदिन को इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है।
क्या आप जानते हैं कि एम. विश्वेश्वरैय्या उच्च शिक्षा के लिए बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला तो ले लिया पर घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के चलते वो ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला करते थे। बेहद होनहार छात्र होने के कारण उन्हें सरकार से मदद मिली तो उन्होंने पुणे के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया। फिर जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो गई तो वो नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किए गए।
बता दे कि यह एम. विश्वेश्वरैय्या के ही प्रयासों का नतीजा था कि कृष्ण राज सागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर सैंडल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण हो पाया। दरअसल उन्होंने पानी रोकने वाले ऑटोमेटिक फ्लडगेट का डिजाइन तैयार कर पेटेंट कराया था। जिसे 1903 में पहली बार पुणे के खड़कवासला जलाशय में प्रयोग किया गया था।
वहीं जब 1932 में कृष्ण राजा सागर बांध के निर्माण परियोजना में वो चीफ इंजीनियर की भूमिका में थे तो इस बांध को बनाना इतना आसान नहीं था। क्योंकि उस समय कृष्ण राज सागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट तैयार नहीं होता था। फिर भी विश्वेश्वरैय्या ने हार नहीं मानते हुए इंजीनियर्स के साथ मिलकर मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था और फिर कर्नाक में मौजूद इस बांध को तैयार किया। गौरतलब है कि उस समय इस बांध को एशिया का सबसे बड़ा बांध कहा गया था।
1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित उन्हें किया गया था। जब सर एम. विश्वेश्वरैया 100 साल हुए तो भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था। और 101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया।