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कैश की किल्‍लत खत्‍म पर क्‍यों खड़ा हुआ संकट! जानिए रिपोर्ट…

नकदी संकट (cash crunch) क्‍यों खड़ा हुआ? इस सवाल का ठोस जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है. लेकिन ‘बिजनेस स्‍टैंडर्ड’ की रिपोर्ट संकट के लिए जिम्‍मेदार महकमों में दूरंदेशी की कमी की ओर इशारा करती है. रिपोर्ट में विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को बढ़ने के लिए अधिक नकदी की जरूरत है लेकिन जितनी मांग है नोट उतने छप नहीं रहे. केंद्रीय बैंक ने 31 मार्च से 13 अप्रैल 2018 के बीच 439 अरब रुपए की करंसी उपलब्‍ध कराई जबकि वित्‍त वर्ष 2017-18 में 544 अरब रुपए के नोट उपलब्‍ध कराए गए थे. वहीं इससे पहले के वित्‍त वर्ष में 539 अरब रुपए के नोट भेजे गए थे.

150 अरब रुपए के नोट कम पड़ गए
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. मान लेते हैं कि जीडीपी की विकास दर वित्‍त वर्ष 2017-18 में 10 फीसदी रही तो इसका मतलब यह हुुुआ कि 150 अरब रुपए के नोट वित्‍त वर्ष 2018-19 की शुरुआत (31 मार्च से 13 अप्रैल 2018 के बीच) कम पड़ गए. इतनेे नोट और छापेे जाते और बैंकोंं केे पास आ जाते तो नकदी किल्‍‍‍‍लत न होती. इस बार 544 अरब रुपए से ज्‍यादा नोटों, करीब 590 अरब रुपए की, की जरूरत थी.

मार्च-अप्रैल में सबसे ज्‍यादा बढ़ती है मांग
बैंकरों की मानें तो 2000 रुपए के नोटों का धीरे-धीरे बाजार से गायब होना भी एक वजह रहा है. साथ ही एटीएम से निकल रहे छोटे नोट इस अचानक बढ़ी मांग को पूरी नहीं कर पा रहा थे. विशेषज्ञों ने कहा कि बैंकाेें को यह अच्‍छे से पता है कि साल में किस महीने में नकदी की मांग बढ़ जाती है लेकिन समय रहते कार्रवाई न होने से संकट बढ़ गया. ये महीने हैं मार्च-अप्रैल और अक्‍तूबर-नवंबर. एक विशेषज्ञ ने कहा कि मार्च खत्‍म और अप्रैल शुरू होते वक्‍त बजट प्रावधान और अन्‍य भुगतान कर दिए जाते हैं. जिस भी मद में भुगतान होता है वह तुरंत कैश हो जाता है. इस कारण इस समय नकदी की मांग कई गुना बढ़ जाती है. पेंशन और रीइंबर्समेंट का भी भुगतान अप्रैल की शुरुआत में हो जाता है. इसी तरह अक्‍तूबर व नवंबर में त्‍योहारी सीजन के कारण नकदी की मांग बढ़ जाती है.

रात-दिन छपाई से कम हुआ संकट
नकदी संकट के बीच चारों नोट छपाई कारखानों में 24 घंटे काम हुआ. एक अधिकारी ने बताया कि देश में अनुमानित आधार पर 70,000 करोड़ रुपये की नकदी की कमी को पूरा करने के लिए मशीनें 500 और 200 रुपये के नोटों की अनवरत छपाई करती रहीं. भारतीय प्रतिभूति मुद्रण और मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) के चारों प्रिंटर औसतन दिन में 18 से 19 घंटे काम करते हैं लेकिन नकदी की अचानक बढ़ी मांग और एटीएम मशीनों में नकदी खाली होने से इस मुद्रणालय में 24 घंटे काम हुआ. आम तौर पर मुद्रा को प्रिंट किए जाने का चक्र 15 दिन में होता है. जिन नोटों की छपाई हुई है वह बाजार में इस माह के आखिर तक ही उपलब्ध हो सकेंगे.

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