Again trapped before independence, this time not by britishers.
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नगर निगम सदन ने अपनी आमदनी बढ़ने के लिए लोगो पर दिल खोल कर टैक्स पर टैक्स लगा दिए हैं। दरअसल शनिवार को सदन ने इसपर मोहर लगते हुए होटल, गेस्ट हाउस, सिनेमा घर, मल्टीप्लेस, प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम के साथ-साथ बार चलाना भी दस गुना तक महंगा कर दिया है।
बता दें कि नगर निगम सीमा के अंदर हैली-पैड, हवाई अड्डा, हवाई पट्टियों पर यात्री कर, हैलीकाप्टर की उड़ान और चार्टेड विमान पर टैक्स लगाने के प्रस्ताव को सदन ने पारित कर दिया है। ऐसा पहली बार होगा जब यह टैक्स लगाए जाएंगे।
वही इस बात से इतना तो तय है कि इन सबका असर सीधे कस्टमर के जेब पर पड़ेगा क्योंकि लाईसेंस शुल्क बढ़ने के साथ इसकी वसूली संचालक खुद की जेब तो नहीं ही करेगा। हालंकि इस पर नगर निगम का कहना है कि इसका असर सीधे लोगों पर नहीं पड़ेगा।
अपनी जेब भारी करने का जो नायाब तरीका नगर निगम ने सोचा है उतना तो हमारी ओर आपके सोच से कोसों दूर है, लेकिन अब मुद्दा ये है कि आखिर नगर निगम को नर्सिंग, पैथोलॉजी, डायग्नोस्टिक सेंटर, अल्ट्रासाउंड ब्लड बैंक आदि जैसे चीज़ो का दाम दस गुना बढ़ाने की क्या जरूरत थी? जो ब्लड हम मुफ्त में देकर आएंगे वो अब जरुरतमंदो के लिए इतनी महंगी हो जाएगी कि उसे लेने से पहले शायद उसे 100 बार सोचना पड़ेगा।
वही चिकित्सीय की सुविधा आसान करने के बजाए डायग्नोस्टिक, एक्सरे और यहां तक कि नर्सिंग होम के बेड तक की कीमते इस तरह बड़ा दी गई है, जैसे आम और गरीब जनता के पास ब्लैक मनी इक्कठा करके रखे हो और बिना किसी टेंशन के इस प्रकार के चिकित्सीय खर्चों का भार संभाल लेंगे। अब सवाल ये है कि जब नगर निगम हमसे इतना टैक्स लूटता है तो फिर वैसी सुविधाओं से हमे वंचित क्यों रखता है, शहर में चारो तरफ गन्दगी और कूड़े कचड़ो का ढेर पड़ा रहता है। कहीं सीवर लाइन का बुरा हाल होता है तो कहीं सड़क पर गड्ढों की जनसंख्या ज्यादा होती है। वही जब इन्हे सही करने का वक़्त आता है तब जनाब एक दूसरे का जोन ही गिनवाने लगते हैं।
कहते हैं जो भी नियम कानून बनाये जाते हैं वो समाज के आखिरी व्यक्ति तक के लिए बनाये जाते हैं। लेकिन जब यही नियम बनाने वाले इसे बनाते वक़्त एक दूसरे पर हावी हो जाए तो यह क्या नियम बना पाएंगे आपको भी पता है, दरअसल, जब शनिवार को नगर निगम में मौजूद महापौर और अन्य लोग इसपर चर्चा करने के लिए पहुंचे तो उस वक़्त कई बार ऐसे मौके आए जब आम जनता के हित में नियम कानून बनाने में कम और लड़ने भिड़ने में ज्यादा दिलचस्पी थी।
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