Saturday, December 28, 2024
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कन्नौज में कार हादसे का शिकार हुए दो भाई

SI News Today

कन्नौज में हुए कार हादसे में सिवान के मेहंदार के त्रिलोकी सिंह की तो दुनिया ही उजड़ गई। इनके दोनों बेटे इस हादसे की भेंट चढ़ गए। रविवार को सुबह फोन से जानकारी मिली तो त्रिलोकी सिंह तुरंत कन्नौज के लिए रवाना हो गए।

इधर जैसे-जैसे यह खबर  मिलती गई, गांव के लोगों, रिश्तेदारों और परिचितों का आना शुरू हो गया। घर पर त्रिलोकी सिंह के बड़े भाई सिसवन प्रखंड के उप प्रमुख सत्यदेव सिंह को सांत्वना देने में जुटे थे।

सत्यदेव सिंह ने रोते हुए बताया कि दिल्ली में उनका बेटा उपेंद्र सिंह कपड़े का व्यवसाय करता है। वहीं पर छोटे भाई त्रिलोकी सिंह के भी दोनों बेटे विनय (23) और अभय रहते थे। दोनों उसी व्यवसाय में थे। छठ के एक दिन पहले 25 अक्टूबर को दोनों घर आए थे।

शनिवार चार नवंबर को दिल्ली के लिए गोपालगंज निवासी दोस्त के साथ कार से रवाना हुए। उनको रविवार की सुबह तक दिल्ली पहुंच जाना था। पहुंचने की जानकारी देने के लिए उनके फोन का इंतजार हो ही रहा था कि इसी बीच त्रिलोकी सिंह के मोबाइल फोन की घंटी घनघनाई। इसके बाद उधर से बोलने वाले ने जो बताया, उससे दिल दहल गया। उसकी बातों पर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ।

बताया कि यह कार दुर्घटना में एक बच्चा और महिला समेत छह लोग जल कर मर गए हैं। कोई जिंदा नहीं बचा है। इसी से आभास हो गया कि अब दोनों लाडले नहीं रहे। इनकी मां कुसुम देवी बेसुध हो गईं। घर में मौजूद चार बेटियों ने मानसिक संतुलन खो दिया। काफी प्रयास के बाद सभी को संभाला जा सका। इसके बाद त्रिलोकी सिंह कन्नौज के लिए रवाना हो गए।

आए अलग-अलग, दुनिया से विदा हुए एक साथ

विनय और अभय की उम्र में पांच साल का अंतर है। बचपन से ही दिल्ली रहते थे लेकिन कभी एक साथ घर आना-जाना नहीं करते थे। छठ के पहले भी एक ट्रेन से आया, दूसरा कार से। पहली बार शनिवार को साथ गए तो हमेशा के लिए ही चले गए।

विनय और अभय के ताऊ सत्यदेव सिंह ने बताया कि गत 25 अक्टूबर को विनय दोस्त और उसकी पत्नी के साथ दिल्ली से आया था। दोस्त एवं उसकी पत्नी दोनो कुछ ही देर रुके। किसी से परिचय भी नहीं हो सके। उसी दिन अभय ट्रेन से आया। वापसी में शनिवार की दोपहर बाद करीब ढाई बजे हंसी-खुशी के साथ बाइक से दोनों चैनपुर गए। वहां से बस से सिवान। बताया था कि दोस्त कार लेकर सिवान ही आएगा। उसी कार से दिल्ली चले जाएंगे।

पांच बेटियों के बाद बहुत मन्नत से हुआ था विनय

सत्यदेव सिंह ने बताया कि उनके छोटे भाई त्रिलोकी सिंह को पहले सात बेटियां ही हुईं। लगा कि बेटा नहीं होगा। फिर बेटे के लिए तमाम मन्नतें मानी गईं। तब करीब 23 वर्ष पहले विनय पैदा हुआ था। इसके बाद फिर एक बेटी हुई। फिर अभय का जन्म हुआ।

अभय के बाद भी एक बेटी हुई। कुल सात बेटियां हां। दोनों बेटों को भगवान ने फिर अपने पास वापस बुला लिया। उनसे पूछना चाहता हूं कि जब बुलाना ही था तो दिया क्यों। तीन बेटियों की शादी हो चुकी है। चार की करनी है। विनय की शादी के लिए भी रिश्ते आ रहे थे।

मां और बहनें बेसुध

जब से विनय और अभय की मौत की खबर आई है, तभी से मां कुसुम देवी, घर में मौजूद चार बहनें सैंपी, सृष्टि, स्वाती और कृति की स्थिति बहुत ही दयनीय है। बार-बार अचेत हो जा रही हैं। पानी के छींटे मानकर होश में लाने पर दहाड़ें मारते हुए बेकाबू हो जा रही थीं। उनको संभालने लिए दर्जनों महिलाएं मौजूद थीं।

शनिवार तक था जश्न, रविवार की सुबह छाया मातम

मेहंदार मंदिर परिसर में बीते 31 अक्टूबर को विनय और अभय से संकल्प कराकर 24 घंटे के अष्टयाम का आयोजन किया गया था। पहली नवंबर को इसका समापन हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन शनिवार को घर में सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन किया गया था। दोनों ने कथा सुनी। परिवार और आसपास के लोगों को भोजन कराया गया। इसके बाद हंसी-खुशी के बीच दोनों दिल्ली के लिए रवाना हुए।

रविवार की सुबह ऐसी मनहूस खबर आई कि लोगों के गले के नीचे एक घूंट पानी तक नहीं उतर रहा था। सत्यदेव सिंह तो यही कह रहे थे कि हमने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो इतनी बड़ी सजा ईश्वर ने दी। छोटे भाई त्रिलोकी सिंह तो हर एकादशी को व्रत रहते थे। मेहंदार मंदिर में पूजा करते थे। उन्होंने भी मन, वचन और कर्म से किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था। हे भगवान, आपको उठाना ही था तो हम लोग थे ही। उन बच्चों को क्यों बुलाया, जिन्होंने अपने असली जीवन की अभी शुरुआत भी नहीं की थी।

कहां है मेहंदार

सिवान जिले से करीब 35 किलोमीटर दक्षिण चैनपुर बाजार से छपरा रोड पर करीब पांच किमी आगे जाने पर दाहिनी तरफ प्रसिद्ध बाबा महेंद्र नाथ मंदिर की ओर जाने के लिए रास्ता घूमता है। इसी रास्ते पर बीच में मेंहदार गांव है। मुख्य सड़क के किनारे बाईं तरफ उप प्रमुख सत्यदेव सिंह और उनके भाई त्रिलोकी सिंह का घर है।

राजनैतिक गतिविधियों में लगे रहने के कारण सत्यदेव सिंह के दरवाजे पर रोज ही भीड़ रहती है लेकिन रविवार को जो भीड़ थी, उसकी जुबां सिली हुई थी। आंखें नम थीं। हर कोई बोलना चाहता था लेकिन बोल नहीं पाता था। गला रुंध गया था। सांत्वना देने के लिए विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के लोग पहुंच रहे थे।

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