बिहार के सुपौल जिले गुडिय़ा गांव में सदियों से चल रही सामाजिक व्यवस्था आज भी कायम है। यहां श्राद्ध के भोज के लिए एक रुपये लीटर दूध मिलता है। यह प्रथा काफी लंबे समय से चल रही है लेकिन, कब से, यह किसी को पता नहीं है।
पूर्व में इस व्यवस्था को कायम नहीं रखने पर सामाजिक दंड की भी व्यवस्था थी। श्राद्ध वाले घर में दूध नहीं देने वाले को भोज के दौरान पत्तल में दही के बदले पैसे रखकर दिए जाते थे। स्थानीय गुलाब कुमार का कहना है कि यहां श्राद्ध भोज के मौके पर पूर्व में एक आना में 12 लीटर दूध देने की प्रथा थी, लेकिन महंगाई बढऩे के बाद अब यहां एक रुपये लीटर दूध देने की प्रथा है।
इस प्रथा का पालन नहीं करने वाले मवेशी पालकों के लिए समाज द्वारा अन्य दंड की भी व्यवस्था है। रणधीर यादव व राजेंद्र यादव बताते हैं कि गाय- भैंस पालने वाले व्यक्ति अगर इस नियम का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें पत्तल में दही के बदले पैसे देकर शर्मिंदा किया जाता है। भवेश कुमार व रिंकू यादव आदि का कहना है कि इस प्रथा के कारण श्राद्ध के दौरान गांव में दूध-दही को लेकर कोई समस्या नहीं होती है।