16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की एक चलती बस में 23 साल की एक पैरामेडिकल छात्रा से गैंगरेप के बाद देशभर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया था। सरकार ने इसके बाद साल 2013 में निर्भया फंड का एेलान किया था, जिसके तहत महिलाओं की सुरक्षा के लिए 3000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। लेकिन इस स्कीम के तहत अब तक कुल 400 करोड़ रुपये की खर्च हो पाए हैं। साल 2015 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस फंड के इस्तेमाल के लिए नोडल एजेंसियों का गठन किया था। इसी साल जनवरी में मंत्रालय ने बताया था कि पिछले 6 साल में इस फंड का किस तरह इस्तेमाल किया गया। निर्भया फंड के तहत 2195.97 करोड़ रुपये के 18 प्रस्ताव आए हैं, जिसमें से समिति ने 2187.47 करोड़ रुपये के 16 प्रोपोजल का मूल्यांकन किया है।
निर्भया फंड का सबसे अहम हिस्सा सेंट्रल विक्टिम कॉम्पेनसेशन फंड है जो बलात्कार पीड़िताओं को वित्तीय सहायता देने के लिए बनाया गया है। इसमें केंद्र सरकार ने 200 करोड़ का फंड बनाया है और घोषित किया है रेप या एसिड अटैक की पीड़िताओं को 3 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। इसमें से 50 पर्सेंट हिस्सा राज्य सरकारें वहन करेंगी, लेकिन वह अपना हिस्सा नहीं दे रही हैं। राज्य सरकारों का कहना है कि उनके पास फंड की कमी है। इसके अलावा मंत्रालय ने वन स्टॉप सेंटर, वीमेन हेल्पलाइन और महिला पुलिस वॉलंटियर की योजनाएं शुरू की गई थीं।
सरकार ने हाल में 500 करोड़ रुपये भारतीय रेलवे को भी दिए हैं, ताकि स्टेशनों और ट्रेनों के महिला कोच में निगरानी बढ़ाई जा सके। निर्भया फंड को खर्च नहीं किए जाने के बारे में महिला और बाल विकास मंत्री से सवाल किए जाने पर उन्होंने कहा कि इस फंड को सही तरीके से केवल पिछले एक साल में खर्च करना शुरू किया गया है। गांधी ने कहा, ‘हमने अभी तक 2,100 करोड़ के प्रॉजेक्ट को स्वीकार किया है। अगले कुछ महीनों में आप देखेंगे कि योजनाएं जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं।’
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