बाधा रहित परिचालन में असफल व नए रूट के निर्माण में तय समय से काफी पीछे चल रही दिल्ली मेट्रो ने यात्रियों पर अचानक से मनमाना आर्थिक बोझ थोप दिया है। इससे लोग गुस्से में हैं। मेट्रो सेवाओं को सुगम बनाने और यात्री किराए में कमी करने के बजाय किराए बढ़ोतरी से दैनिक यात्री ठगा महसूस कर रहे हैं। किराए में 66 से 67 फीसद बढ़ोतरी पर दिल्ली सरकार की चुप्पी से भी लोगों में नाराजगी है। दिल्ली मेट्रो रेल दैनिक यात्री संघ ने इस बढ़ोतरी के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है। जबकि छात्र संगठन स्टूडेंट फडरेशन आॅफ इंडिया ने इसका विरोध करते हुए किराया निर्धारण समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने सहित कई मांगे उठाई हैं।
किराया बढ़ाने के पीछे डीएमआरसी की जो दलीलें हैं वह बढ़े खर्चे व कर्मचारियों के वेतन की बाबत हैं। इसमें कहा गया है कि तीसरे किराया बढ़ोतरी के बाद केंद्रीय डीए में 103 फीसद का इजाफा हो गया है। औद्योगिक कानून के डीए में 96 फीसद का इजाफा है। न्यूनतम वेतन में औसत 156.2 फीसद की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। वेतन, रखरखाव, बिजली के खर्चे बढ़ने की वजह से किराया बढ़ाना जरूरी है। लेकिन दिल्ली सरकार ने आय के तमाम स्रोतों का जिक्र नहीं किया है। दिल्ली मेट्रो के उच्चस्तरीय सूत्रों के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में मेट्रो की आमदनी में कई गुणा अधिक की बढ़ोतरी हुई है। जहां यात्री संख्या में कई गुणा इजाफा हुआ है वहीं नई लाइनों, लाइनों के विस्तार व स्टेशनों की संख्या बढ़ने के साथ ही टेÑनों की नई खेप आई है। इससे इन स्टेशनों, लाइनों व ट्रेनों के अंदर ही नहीं बाहर भी बड़े विज्ञापन लगते हैं। और अब तो पूरी की पूरी टेÑन विज्ञापन से पटी देखी जा सकती है। इससे होने वाली आमदनी भी निश्चित तौैर पर बढ़ी है।
भुगतान वाले क्षेत्र का क्या हुआ?
पहले मेट्रो बनने के समय तय हुआ था कि इसके भुगतान क्षेत्र यानी टिकट के जरिए जहां पहुंचा जा सकता है वहां खाने-पीने की दुकानें नही होंगीं। इसके उलट राजीव चौैक सरीखे व्यस्ततम स्टेशन से लेकर लगभग हर स्टेशन पर भुगतान क्षेत्र के दायरे में दुकानें हैं। इन दुकानों से होने वाली कमाई मेट्रो के पास ही जाती है। पिछले कुछ सालो में इन दुकानों की संख्या में भी कई गुणा इजाफा हुआ है। संपत्ति विकास के नाम पर मेट्रो की ओर से तमाम जमीन नामी बिल्डरों क ो दी गई। तब इस जमीन से होने वाला फायदा भी मेट्रो की आय का हिस्सा बताया गया था। कई जगह मेट्रो के खंभों व लाइन के बाहरी हिस्सों पर विज्ञापन से होने वाली आय में दिल्ली की स्थानीय शासन निकायों के साथ साझेदारी है। इसी तरह पहले मेट्रो यात्रियों को आकर्षित करने के लिए पार्किंग की सुविधा दी गई और इसके शुल्क के तौर पर मासिक पास का इंतजाम दिया गया था। जिस मासिक पास की कीमतें 270 रुपए थी वह अब तक बढ़ा कर 900 रुपए कर दिया गया है।
पहले मेट्रो का सारा परिचालन बिजली खरीद कर होता था। बाद में डीएमआरसी ने 35 फीसद बिजली मेट्रो टेÑन के एक्सलेरेशन से पैदा करने का दावा किया था और कहा भी था कि इससे बिजली के खर्चे में कमी आई है। एक्सलेरेशन के अलावा सोलर पैनल से बिजली बनाने के इंतजाम भी किए गए। इस तरह पारंपरिक बिजली के खर्र्च में गिरावट से भी मेट्रो का फायदा हुआ है। मेट्रो में फिल्म शूटिंग से आय और स्टेशनों के नाम बेचने से होने वाली आय भी है