JNU’s life is in trouble with the course on ‘Islamic terrorism’!
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ‘इस्लामिक आतंकवाद’ पर कोर्स शुरू करने को लेकर फिर चर्चा में है. इस पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने उसे नोटिस जारी किया है. इसमें पूछा गया है कि विश्वविद्यालय को ऐसा कोर्स शुरू करने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई. वहीं कई सियासी दलों ने भी ऐसे कोर्स पर सख्त ऐतराज जताया है. इस बीच विश्वविद्यालय ने इसे ‘फेक न्यूज’ बताया है. जेएनयू के सेंटर फॉर नेशनल सिक्यूरिटीज स्टडीज ने कहा कि ऐसा कोर्स शुरू करने की कोई योजना नहीं है.
आयोग ने कोर्स शुरू करने की जरूरत पूछी
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जफरुल इस्लाम खान ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जेएनयू को यह नोटिस जारी किया है. इसमें यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार से पूछा गया कि इस्लामिक टेरर पर कोर्स शुरू करने का आधार क्या है. जेएनयू एकेडमिक काउंसिल ने नेशनल सिक्यूरिटीज स्टडीज के लिए सेंटर शुरू करने का प्रस्ताव किया है. बीते हफ्ते काउंसिल की बैठक में मौजूद रहे एक प्रोफेसर ने बताया कि इस सेंटर के अंतर्गत ही यह कोर्स चलेगा. आयोग ने नोटिस में यह भी पूछा है कि जेएनयू ने ऐसा प्रस्ताव लाने से पहले इसके क्या दुष्प्रभाव होंगे उसके बारे में सोचा है. जेएनयू स्टुडेंट्स यूनियन अध्यक्ष गीता कुमारी ने कहा कि जेएनयू वीसी ने भी इस कोर्स को शुरू करने की सहमति प्रदान की है. यह बहुत निराशाजनक है.
माकपा ने कोर्स वापस लेने की मांग की
उधर, माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक में जेएनयू में इस कोर्स को शुरू करने का विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद का प्रस्ताव देश की एकता और अखंडता के लिये खतरा बताया गया है. पोलित ब्यूरो ने इस प्रस्ताव को तत्काल वापस लेने की मांग की. पोलित ब्यूरो का मानना है कि भाजपा सरकार का शिक्षा व्यवस्था पर लगातार हमला जारी है. इसके तहत भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रमों में पौराणिक कथाओं को शामिल करने के अलावा केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को सांप्रदायिक रंग देना शामिल है.
क्या है इस कोर्स में
जेएनयू की अकादमिक काउंसिल की 145वीं बैठक में इस्लामिक आतंकवाद पर कोर्स को लेकर प्रस्ताव आया था. प्रस्ताव में कहा गया है कि यह कोर्स 2019 से शुरू होगा. कोर्स शुरू करने का उद्देश्य आतंकवाद और उसके विभिन्न कारणों को समझना है. कोर्स शुरू करने की वजह भारत और कई अन्य राष्ट्रों पर मंडरा रहा आतंकवाद का खतरा है.