आजकल निजी विद्यालयों के संदर्भ में एक नया शब्द जुड़ता जा रहा है ‘लूट’। सवाल है कि आखिरकार ये ज्यादातर निजी विद्यालय हैं किसके? हमारे किसी नेता या बड़े व्यवसायी के। अब शिकायत करें भी तो किससे? इन स्कूलों ने माता-पिता की मजबूरी का नाजायज फायदा उठाया है। कुछ लोग तो सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि एक बार निजी विद्यालयों द्वारा मनमाने तरीके से बढ़ाई जा फीस पर भी सर्जिकल स्ट्राइक होनी चाहिए। यह जरूरी भी है। विद्यालयों की मनमानी के अनेक उदाहरण गौरतलब हैं। मसलन, 100 मीटर दूरी का बस का किराया 1500 रुपए लिया जा रहा है, 50 रुपए की डायरी 250 में दी जा रही है, हर वर्ष स्कूल की ड्रेस बदली जा रही है। कुछ विद्यालयों में तो सप्ताह के हर दिन नई ड्रेस होती है। यहां तक कि बटन पर विद्यालय का नाम लिखवा दिया जाता है ताकि मजबूरन स्कूल से ही ड्रेस खरीदनी पड़े।
देश के तमाम शहरों में जम कर लूट-खसोट चल रही है। स्कूल बसों का हाल तो पूछिये ही मत। 50 की क्षमता वाली बसों में 80-100 बच्चे ठूंस कर स्कूल भेजे जाते हैं, भले ही क्यों न विद्यालय से 100 मीटर की दूरी पर घर हो, फिर भी बच्चों का बस में स्कूल जाना अनिवार्य है। क्या विद्यालय वाले सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन कर रहे हैं? विद्यालयों में पढ़ाने वाले माता-पिता डरे हुए हैं। निजी विद्यालयों का किसी की आर्थिक स्थिति से कुछ भी लेना-देना नहीं है। उनका कहना है कि जब फीस नहीं दे सकते तो अपने बच्चों को किसी सरकारी विद्यालय में दाखिला करवाइए। आज का दौर ऐसा है कि सरकारी विद्यालयों की स्थिति बद से बदतर हो गई है। उनमें पढ़े-लिखे शिक्षक तो हैं लेकिन पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार को यह सब मालूम नहीं है। वह अपनी शिक्षा व्यवस्था से अच्छी तरह वाकिफ है। आखिरकार जनता फरियाद करे भी तो किससे?
यातनाओं का सफर
मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर मुंबई से गोवा के बीच ‘तेजस’ ट्रेन चलाई गई है। यह तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस है और इसका किराया भी आम यात्री ट्रेन से अधिक है यानी यह धनवानों के लिए है। मेरा निवेदन है कि माननीय रेलमंत्री या कोई अन्य मंत्री नई दिल्ली या निजामुद्दीन से चलने वाली लंबी दूरी की गाड़ियों के जनरल डिब्बे में केवल फरीदाबाद तक की यात्रा करें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि आम आदमी किस कदर भीड़भाड़ वाले डिब्बे में यातनाओं का सफर करता है। 75 सीटों वाले डिब्बे में कम से कम 500 यात्री सफर करते हैं। एक डिब्बे में घुस जाएं तो निकल नहीं सकते। प्रधानमंत्री और रेल मंत्री जरा आम जनता की परेशानी खुद महसूस करके तो देखें।