प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत महत्वकांक्षी परियोजना घातक के तहत अपना पहला मानव रहित युद्ध विमान बना रहा है। सरकार ने बम या मिसाइल छोड़ने की क्षमता रखने वाले इन ड्रोन या मानव रहित विमानों के विकास के लिए 3000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है। इस परियोजना को वैकल्पिक रूप से स्वायत्त मानव रहित अनुसंधान विमान कहा जा रहा है। इन विमानों का निर्माण डीआरडीओ और भारतीय वायुसेना कर रहे हैं। ये ड्रोन दुश्मन के ठिकानों पर बम और मिसाइल से हमला करने के बाद दोबारा बेस पर लौट आएंगे। ‘घातक’ में देश में ही बना कावेरी जेट इंजन लगाया जाएगा।
आपको बता दें कि भारत तेजी से अपनी मिसाइल क्षमताएं बढ़ा रहा है या उन्हें अपग्रेड कर रहा है। भारत ने 11 फरवरी को ओडिशा के तट से अपनी इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक प्रायोगिक परीक्षण कर द्विस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित करने की दिशा में एक अहम उपलब्धि हासिल की थी। वहीं 15 फरवरी को डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने कहा था कि ब्रह्मोस मिसाइल की रेंज बढ़ाकर 450 किलोमीटर कर दी जाएगी और अगले ढाई साल में 800 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल तैयार कर ली जाएगी।
पिछले साल अक्टूबर में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत और रूस में ब्रह्मोस का उन्नत संस्करण बनाने को लेकर करार हुआ था। रूस, भारत के साथ मिलकर यह काम करने के लिए इसलिए राजी हुआ था, क्योंकि भारत मिसाइल कंट्रोल रिजिम (MTCR) में शामिल हो गया था। MTCR के रूल के मुताबिक, इसमें शामिल देश किसी ऐसे देश के साथ मिलकर 300 किलोमीटर की रेंज से ऊपर की मिसाइल नहीं बना सकते जो MTCR में शामिल ना हों। वर्तमान ब्रह्मोस मिसाइलों की रेंज 290 किमी है। यह मिसाइल ध्वनि की रफ्तार के मुकाबले 2.8 गुना रफ्तार से चलती है।
यह 300 किलो वजन तक के पारंपिक आयुध ढोने में सक्षम है। चीन मानता है कि इन मिसाइलों की जद में आने वाले उसके सीमा से सटे इलाकों पर तेज और सटीक हमला किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में, अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर ब्रह्मोस मिसाइल के एडवांस्ड वर्जन की तैनाती के लिए रजामंदी दी थी। भारतीय सेना एक नई रेजिमेंट को इस मिसाइल के लेटेस्ट वैरियंट से लैस कर रही है। नई रेजिमेंट में करीब 100 मिसाइलें, भारी-भरकम ट्रकों पर पांच लॉन्चर और जरूरी हार्डवेयर व साॅफ्टवेयर होंगे। इस प्रक्रिया पर सेना करीब 4,300 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
इसके बाद भारत ने 1 मार्च को स्वदेश निर्मित सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। यह मिसाइल कम ऊंचाई पर आ रही किसी भी बैलिस्टिक शत्रु मिसाइल को नष्ट कर सकती है। इस मिसाइल ने देश के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस कौशल को और बढ़ा दिया है। इंटरसेप्टर ने यहां चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज के प्रक्षेपण परिसर 3 से पृथ्वी मिसाइल से प्रक्षेपित किये गये एक लक्ष्य को भेद दिया था। इसके अलावा रक्षा, मिसाइल और अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए मुकाम बनाने वाला भारत अब ऐसी मिसाइल बनाने की भी तैयार में है जो दुश्मनों पर हमला करने के बाद वापस अपने खेमे में आ जाएगी। 4 मार्च को विज्ञान मेले में पहुंचे डीआरडीओ के विशिष्ट वैज्ञानिक और ब्रह्मोस के सीईओ सुधीर कुमार मिश्रा ने बताया था कि यह प्रोजेक्ट तैयार है, अनुमति मिलते ही हम काम शुरू कर देंगे।