आगरा का ताजमहल भले ही पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचता हो और उसे विदेशों में भारत की एक अमिट पहचान के रूप में जाना जाता हो, मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ताजमहल एक इमारत के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया। उत्तरी बिहार के दरभंगा में गुरुवार (15 जून) को एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, देश में आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्ति ताजमहल और अन्य मीनारों की प्रतिकृतियां भेंट करते थे जो भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। लेकिन अब यानी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से विदेशी गणमान्य जब भारत आते हैं तो वो भगवद गीता और रामायण की प्रति भेंट करते हैं।
हालांकि, इतिहासकार योगी आदित्यनाथ की व्याख्या से असहमत हैं। ‘द टेलीग्राफ’ से बातचीत में पटना यूनिवर्सिटी की इतिहास की प्रोफेसर डेजी नारायण ने कहा कि मध्यकालीन और पूर्व आधुनिक काल यानी 1206 से लेकर 1760 तक के कालखंड को कुछ लोग भारतीय इतिहास का इस्लामिक युग मानते हैं। और यही वजह है कि एक खास तरह की राजनीतिक सोच रखने वाले लोग इस कालखंड में बने ताजमहल को भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि यह तथ्य चौंकाने वाला है, जबकि पूरी दुनिया में ताजमहल को भारतीय धरोहर के रूप में ख्याति मिली हुई है। नारायण ने कहा कि कुछ लोग भारतीय इतिहास को पुनर्परिभाषित करना चाहते हैं और तथ्यों के साथ खिलवाड़ करना चाहते हैं।
गौरतलब है कि बिहार भाजपा ने गुरुवार को योगी आदित्य नाथ की जनसभा इसलिए आयोजित कराई थी ताकि केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल की कामकाज की उपलब्धियों को जनता तक सीधा संवाद के जरिए पहुंचाया जा सके। बीजेपी इसके लिए राज्यभर में कार्यक्रमों की एक श्रृंखला आयोजित करने वाली है। उसके पहले चरण में योगी आदित्यनाथ गुरुवार को दरभंगा के राज मैदान में सभा को संबोधित कर रहे थे।
बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने बुलेट प्रूफ मंच से गुरुवार को कहा कि बिहार में बेमेल विवाह को देखकर उन्हें दुख होता है। उन्होंने कहा, “जब मैं नीतीश जी और लालू जी की जोड़ी को देखता हूं तो मुझे लगता है, के रहीम कैसे निभे, बेर केर का संग।” योगी आदित्यनाथ ने तीन तलाक के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश की और पूछा कि आखिर वो इस मुद्दे पर क्यों नहीं बोलते।