5 years of Akhilesh, Uttar Pradesh became Pauper.
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देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेसी कैग ने प्रदेश में सरकारी धन के प्रयोग में बड़े घोटाले का पोल खोलकर रख दी है, जिसमे पता चला है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकारी धन की लूट जमकर हुई है.
कैग ने 31 मार्च 2017-18 तक यूपी में खर्च हुए बजट की जब जांच की तो पता चला कि बड़ा गड़बड़झाला है. सीएजी ने इस रिपोर्ट में कहा है कि धनराशि खर्च का उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध न होने से यूपी में बड़े पैमाने पर धनराशि के दुरुपयोग और खर्च में धोखाधड़ी की आशंका है.
दरअसल, सूबे में अखिलेश यादव के कार्यकाल के समय 97 हजार करोड़ की भारी धनराशि कहां-कहां और कैसे खर्च हुई, इसका कोई हिसाब-किताब ऑडिट एजेंसी कैग को नहीं मिला है. वहीं सूबे में अखिलेश यादव की सरकार ने 2014 से 31 मार्च 2017 के बीच हुए करीब ढाई लाख से ज्यादा कार्यों के उपयोगिता प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराया था.
कैग ने यूपी सरकार से कहा है कि वह वित्त विभाग विभाग को निर्देश जारी करें कि उपयोगिता प्रमाणपत्र के लिए निश्चित समय-सीमा तय करे. जब तक उपयोगिता प्रमामपत्र न जारी हो, तब तक बजट की दूसरी किश्त न जारी हो.
जानकारी के मुताबित सबसे ज्यादा घपला समाज कल्याण, शिक्षा व पंचायतीराज विभाग में हुआ है. सिर्फ इन तीन विभागों में 25 से 26 हजार करोड़ रुपये कहां खर्च हुए, विभागीय अफसरों ने हिसाब-किताब की रिपोर्ट ही नहीं दी.
सीएजी ने अगस्त में तैयार अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यूपी में धनराशि के उपयोगिता प्रमाणपत्र जमा न करने का मामला कई बार शासन के सामने लाया गया, मगर कोई सुधार नहीं हुआ है. पिछली ग्रांट खर्च न करने और उसका उपयोगिता प्रमाणपत्र न देने पर भी कई विभागों को बजट जारी कर दिया गया. नियम के अनुसार बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र प्राप्त किए दूसरी किश्त की धनराशि नहीं दी जा सकती.
प्रदेश में 2014-15 के बीच 66861.14 करोड़ धनराशि 2.25 लाख उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं जमा हुए. इसी तरह 2015-16 में 10223.77 करोड़ के 11335, 2016-17 में 20821.37 करोड़ के 18071 प्रमाणपत्र विभागों ने जमा ही नहीं किए.
गड़बड़ी सबसे ज्यादा समाज कल्याण विभाग में देखने को मिली. समाज कल्याण विभाग ने 26 हजार 927 करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाणपत्र ही नहीं दिया है. इसी तरह पंचायतीराज विभाग में 25 हजार 490.95 करोड़, शिक्षा विभाग ने 25 हजार 693.52 करोड़ का हिसाब नहीं दिया है.
क्या है नियम-
वित्तीय नियम के अनुसार जब किसी जरूरी योजना के तहत विभागों को बजट जारी होता है तो तय-सीमा बीतने के बाद उन्हें उपयोगिता प्रमाणपत्र(यूसी) जमा करना होता है. सर्टिफिकेट लेने की जिम्मेदारी बजट जारी करने वाले विभाग पर होती है. जब तक विभाग सर्टिफिकेट नहीं मिलता तब तक उन्हें बजट की दूसरी किश्त नहीं जारी की जा सकती. नियम के मुताबिक विभाग संबंधित संस्थाओं से यह प्रमाणपत्र लेने के बाद उसकी क्रास चेकिंग कर महालेखाकार(ऑडिटर जनरल) को भेजते हैं.