After the death, the 75-year-old groom, for the merger of Panchatatta, has seven rounds with such a girl.
कौशाम्बी।
भारत में अलग अलग जगहों में अलग अलग रस्मो रिवाज से शादी होती है मगर कौशाम्बी के बाकरगंज गांव में एक 75 साल के वृद्ध की शादी चर्चा का विषय बनी हुई है। ये शादी भी आम हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार हुयी थी लेकिन ये शादी औरों से अलग इसलिए थी क्यूंकि यहाँ कोई दुल्हन नहीं थी बल्कि उसकी जगह फेरे लेने लिए कपास की लकड़ी के टुकड़े को प्रतीकात्मक दुल्हन की तरह तैयार किया गया था और इसी दुल्हन से विवाह की सारी रस्में पूरी करवाई गईं।
इस वृद्ध व्यक्ति ने किसी अजूबे को करने के लिए ये सब नहीं किया बल्कि उसने गांव की एक परंपरा को निभाने के लिए ऐसी शादी रचाई। यहाँ ऐसी परंपरा है कि यदि किसी शख्स की शादी न हो और उसकी मौत हो जाती है तो उसे मुखाग्नि नहीं दी जाती है। मृत्यु के बाद पंचतत्व में विलीन होने के लिए उन्होंने ये अनोखी शादी की। दुर्गा प्रसाद ने गांव के ही शंकर सिंह से इस बारें में बात कर दोनों ने ये फैसला लिया कि कपास की लकड़ी से शादी कर अविवाहित होने का दंश खत्म हो सकता है। शंकर सिंह, दुर्गा प्रसाद की मदद को तैयार हो गए।
शादी की तैयारियां शुरू हुई। कपास की लकड़ी के टुकड़े को दुल्हन की तरह सजाया गया। शंकर सिंह के घर में खुशियों का माहौल बना। घर में महिलाओं ने मंगल गीत गाए। दुर्गाप्रसाद दूल्हे के रूप में सजधज कर नाचते-गाते बरातियों संग गांव के मैदान में बनवाए गए जनवासे में पहुंचे। नाचते गाते बाराती दुल्हन के घर पर पहुंची। पंडित भार्गव प्रसाद ने हिन्दू परंपरा के अनुसार के बाद दुल्हे का स्वागत कर वैवाहिक रस्म पूरी कराई। इस दौरान करीब 100 बरातियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की गई थी। शंकर सिंह ने ही अपने दोस्त के लिए लड़की का पिता बनकर उसका कन्यादान कर र्गा प्रसाद की इच्छा को पूरा किया।
पुरोहित भार्गव प्रसाद के मुताबिक, यदि किसी शख्स की शादी न हो और उसकी मौत हो जाती है तो उसे मुखाग्नि न दिए जाने की परंपरा है। वृद्ध दुर्गा प्रसाद ने भी घर की जिम्मेदारियों को पूरा करते करते उन्होंने शादी नहीं की। ऐसे में परिवार के लोगो ने उन्हें सलाह दी की कपास की लकड़ी की प्रतीकात्मक दुल्हन बना कर उससे विवाह के संस्कार पूरे करने पर उनके भी मृत शरीर को मुखाग्नि दी जा सकेगी।