हमारे देश में मैदानी क्षेत्र में 30 000 लोगों की आबादी के लिए और 20 000 की आबादी वाले / जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) स्थापित किया गया है। इसी प्रकार 120 000 लोगों की आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र में MNP (minimum needs program)/ BMS (basic minimum services) प्रोग्राम के तहत और 80,000 की आबादी वाले / जनजातीय क्षेत्रों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) की स्थापना और रखरखाव राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। उसके बाद आते हैं संयुक्त चिकित्सालय और फिर जिला अस्पताल। राज्य स्तर पर मंडलीय चिकित्सालयों की भी व्यवस्था भी है।
यदि हम उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं कि बात करें खासकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की जहाँ की कुल आबादी 2019 तक 23.5 करोड़ है और प्रति 20,000 व्यक्ति(लगभग) पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है। ऐसे में प्रत्येक डॉक्टर के ऊपर काम के दबाव के साथ साथ बिना किसी सहायता के सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा भी दे पाना एक बड़ी चुनौती है।
उदाहरण के तौर पर लखनऊ मेडिकल यूनिवर्सिटी, ट्रामा सेण्टर हो या SGPGIMS यहाँ पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश हो या पूर्वांचल ऐसे-ऐसे मरीज पहुँच जाते हैं जिनका इलाज़ उन्ही के जिले के अस्पताल में हो सकता है, मसलन गोरखपुर में कोई व्यक्ति अगर चोटिल होता है तो बिना सोचे समझे वहां के जिला अस्पताल के डॉक्टर लखनऊ ट्रामा सेंटर भेज देते हैं। राज्य सरकार की अनदेखी के चलते उत्तर प्रदेश के किसी भी जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त है और बेवजह लखनऊ के उच्च संस्थानों पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
जिसके चलते Doctors के कार्यशैली पर काफी प्रभाव पड़ता है और उनके बात करने के लहजे में चिड़चिड़ापन आ जाता है। आप में से काफी लोगों ने इस बात का अनुभव किया होगा. कभी कभी स्थिति इतनी बदतर हो जाती है कि इन अस्पतालों में मरीज के परिजन और डाक्टरों के बीच भिड़ंत भी हो जाती है।
ऐसे में क्या हो सकता है और सबसे बेहतर उपाय क्या है। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ एक ही उपाय है कि सभी PHC और CHC में प्राथमिक स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने वाले लोगों जैसे डॉक्टर आशा बहन और सफाई कर्मचारी इत्यादि को उचित सुविधाएं मिले। दवाईओं, वैक्सीन और जाँच सम्बंधित सुविधा भी समुचित ढंग से हों। इसके अलावा ये भी सुनिश्चित हो कि जो वहां कार्यरत हो वो भी ईमानदारी से अपनी जिम्मेवारी को निभाए।
जब टियर-1, टियर-2 की स्वास्थ्य सुविधा अच्छी होगी तो बेवजह जिला अस्पतालों में और मेडिकल कॉलेज के ऊपर दबाव कम होगा जिससे वहां के उच्च स्वास्थ्य अधिकारी भी अपना काम आसानी से कर सकेंगे और गंभीर रोगियों को इलाज़ भी अच्छा मिल सकेगा।
By Blog- @TheSuneelMaurya