Saturday, December 21, 2024
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गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के सामने योगी आदित्यनाथ हैं एकमात्र सहारा…

SI News Today

गोरखपुर लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद जग गई है. उपचुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच हुई दोस्ती के बाद दोनों खेमों के बीच वोटों का गुणा-भाग नए सिरे से किया जाने लगा है. पिछले साल विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक इंटरव्यू में कह दिया था कि वह बीजेपी को रोकने के लिए बुआ यानी बीएसपी सुप्रीमो मायावती से हाथ मिलाने को तैयार हैं. हालांकि मायावती ही अपनी राजनीतिक पहचान कायम रखने के लिए बबुआ यानी अखिलेश के ऑफर को ठुकराते रहे हैं. अब उपचुनाव के बहाने बुआ और बबुआ मिलकर अपनी दोस्ती का लिटमस टेस्ट कर रहे हैं. इस लिटमस टेस्ट के चलते सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को नए सिरे से तैयारी करनी पड़ रही है. गोरखपुर की राजनीति को करीब से जानने वाले बताते हैं कि सपा-बसपा की दोस्ती से सीएम योगी के सामने प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है.

बीजेपी उम्मीदवार में नहीं है योगी जैसा प्रभाव: बीजेपी ने उपेन्द्र शुक्ला को गोरखपुर से प्रत्याशी बनाया है. पत्रकार मोहम्मद कामील खान कहते हैं कि भारतीय राजनीति में काफी कुछ प्रतिमान पर निर्भर करता है. लंबे समय से योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से चुनाव लड़ते रहे हैं. ऐसे में स्वभाविक है कि वोटर उपेंद्र शुक्ला की तुलना योगी से करेंगे. इस मामले में योगी के सामने उपेंद्र कहीं नहीं टिकते हैं.

उपेंद्र शुक्ला का गोरखनाथ मंदिर से नहीं है जुड़ाव: साल 1967 के आम चुनाव में गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख महंत दिग्विजयनाथ हिन्दू महासभा के टिकट पर गोरखपुर के सांसद बने थे. 1989 के बाद से इस सीट पर गोरक्षपीठ का कब्जा रहा. महंत अवैद्यनाथ 1998 तक सांसद रहे. महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ साल 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीतकर 26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने. गोरखपुर का इतिहास कहता है कि गोरखनाथ मंदिर से जुड़े लोगों से यहां की जनता अपना जुड़ाव महसूस करती है. यहां के एक बड़े वर्ग के बीच ऐसी धारणा है कि मंदिर से जुड़ा शख्स उनका अहित नहीं कर सकता है. उपेंद्र शुक्ला का गोरखनाथ मंदिर से किसी भी तरह का जुड़ाव नहीं है. ऐसे में स्वभाविक है कि उपेंद्र शुक्ला को मंदिर के अनुयायियों का लाभ नहीं मिलेगा. मंदिर से जुड़े लोग उपेंद्र शुक्ला को डमी प्रत्याशी मान रहे हैं.

योगी विरोधी है उपेंद्र की छवि: पत्रकार मोहम्मद कामील खान ने बताया कि उपेंद्र शुक्ला राज्यसभा सांसद और वर्तमान में केंद्रीय वित्तमंत्री में मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के बेहद करीबी बताये जाते हैं. उन्होंने कहा कि गोरखपुर की जनता जानती है कि कई मौकों पर उपेंद्र शुक्ला ने योगी आदित्यनाथ के फैसलों की मुखालफत की है. साथ ही ये भी चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ इस बार धर्मेंद्र सिंह को टिकट दिलाना चाहते थे. उन्होंने बताया कि योगी का चेहरा देखकर वोट देने वाले उपेंद्र शुक्ला के चेहरे पर झिझक सकते हैं.

बीजेपी के खिलाफ गोलबंद है निषाद समाज: वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र सिंह ने बताया कि गोरखपुर लोकसभा सीट पर करीब तीन लाख निषाद वोटर हैं. सपा-बसपा के साझा प्रत्याशी प्रवीण निषाद इसी समाज से हैं. ऐसे में बीजेपी के सामने निषाद समाज के वोटरों का कुछ फीसदी भी अपने पाले में करना बड़ी चुनौती होगी.

विपक्ष ने तैयार किया है जाति आधारित व्यूह: पत्रकार कामील खान ने बताया कि चुनाव की घोषणा से पहले ही निषाद समाज ने चुनाव जीतने के लिए मंच तैयार कर लिया था. इसमें निषाद, संसवार, यादव, मुस्लिम और दलित शामिल थे. उन्होंने बताया कि पीस पार्टी ने भी सपा प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है. पीस पार्टी के साथ गरीब मुस्लिमों का एक बड़ा वोट बैंक है. इसके अलावा अजित सिंह के आरएलडी के समर्थन से भी विपक्षी प्रत्याशी को फायदा मिलेगा. उन्होंने कहा कि अगर वोटिंग से पहले कांग्रेस ने सपा-बसपा के साझा प्रत्याशी को समर्थन दे देते हैं तो शायद मुकाबला और भी रोचक हो सकता है.

बताया जा रहा है कि सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद को बसपा, आरएलडी और पीस पार्टी का समर्थन मिलने के बाद बीजेपी के सामने चुनौती खड़ी हो गई है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सीएम योगी खुद गोरखपुर में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं. पांच मार्च को सीएम योगी ने छह जन सभाओं को संबोधित किया था. आठ मार्च को चार और नौ मार्च को उनका रोड शो प्रस्तावित है. सीएम योगी इस बार सत्ता में हैं, इसलिए वे खुलकर हिन्दुत्व के मुद्दे पर भाषण नहीं दे रहे हैं. उनके भाषणों में हर बार एक ही बात सामने आ रही है- ‘आप उपेंद्र शुक्ला को नहीं मुझे वोट दीजिए, जिस तरह आपने मुझे इतने साल सेवा का मौका दिया है, वह आगे भी जारी रहेगा.’

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