लख़नऊ- दिव्यांग लड़की रंजना के आगे उसकी लाचारी ने हौसले का काम किया । अपने जोश और जूनून से उसने साबित कर दिया की सफलता किसी मदद की मोहताज नहीं होती है। 1992 से मायलटिस जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आने के बाद रंजना के शरीर का आधा हिस्सा विकलांग हो गया। हालत ऐसी हो गई थी, वह अब बिस्तर से उठ नहीं सकती। लेकिन अपनी मेहनत, लगन और जूनून के दम पर रंजना ने हजारों महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया ।जानें कौन है रंजना…
-प्रतापगढ़ के सदर बाजार में रहने वाले जयसिंह बहादुर सिंह के तीन बच्चे थे। दो बेटे आनंद और आशीष तथा एक बेटी रंजना। जयसिंह बहादुर FCI से रिटायर्ड कर्मचारी हैं। बेटी रंजना घर में छोटी थी इसलिए सबकी दुलारी थी।
– वर्ष 1992 में इस परिवार पर मुसीबतें शुरू हुई। रंजना उस समय मात्र सात साल की थी। उसके पैर में तेज दर्द शुरू हुआ। परिजन उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचे। वहां डॉक्टरों के इलाज से उसे कोई राहत नहीं हुई।
-परिजन उसे लेकर लख़नऊ पीजीआई आये। जांच के बाद पता चला कि उसे मायलटीस जैसी खतरनाक बीमारी हो गई है। इसमें उसके शरीर का एक हिस्सा विकलांग गया। नतीजा यह हुआ कि अब रंजना बिस्तर से उठ नहीं सकती थी। यहां तक कि वह व्हील चेयर पर भी ठीक से बैठ नहीं पाती।
बचपन से ही पढ़ने में तेज थी रंजना
– रंजना बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज थी। लेकिन कुदरत का उस पर ऐसा कहर टूटा कि उसकी पढ़ाई भी छूट गई। दिव्यांगता के तीन साल बाद उसने अपने परिवार से फिर से पढ़ने की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद घर वालों ने उसका पूरा साथ दिया। रंजना ने साल 1999 में हाईस्कूल की परीक्षा 71 फीसदी के साथ पास की। 2001 में इंटरमीडिएट और 2004 में बीए की परीक्षा भी उसने फर्स्ट डिवीजन के साथ पास की।
– इसके बाद भी उसकी पढ़ने की इच्छा नहीं खत्म हुई। उसने LLB की परीक्षा 55 फीसदी अंकों के साथ पास किया। पढ़ाई के दौरान ही उसने ऑनलाइन ब्यूटीशियन, कुकिंग, सिलाई ,कढ़ाई आदि कोर्सेज भी किया। लेकिन कुछ अलग ही करने का जज्बा था, इस पर उसने अपने घर के लोगों से सहयोग मांगा।
2009में बनाई संस्था परिवर्तन पथ
-रंजना ने वर्ष 2009 में एक संस्था की नींव रखी और नाम रखा परिवर्तन पथ। इस संस्था को बनाने में रंजना के दोनों भाइयों आनंद और आशीष ने उसका बहुत सहयोग किया। धीरे धीरे यह संस्था कार्य करने लगी। संस्था में उन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य किया जाता है,जो अपने पैर पर खड़ा होना चाहती हैं। इसमें रंजना इन महिलाओ को ब्यूटिशियन ,कढ़ाई ,बुनाई ,कुकिंग आदि की ट्रेनिंग देती है।
साथ मिला तो हौसलों को लगे पंख
– रंजना ने बताया की इस राह में शुरू में बहुत रुकावटें आयी। कुछ लोग चर्चा करते थे की एक विकलांग लड़की कैसे इतनी चीजों की ट्रेनिंग दे पाएगी । उस समय रंजना के हौसलों को जरूर धक्का लगता था लेकिन हर समय उसके साथ उसके भाई और मां खड़े मिलते थे। जो उसका हौसला बढ़ाते रहते थे।
– नतीजन रंजना के परिवर्तन पथ की चर्चा धीरे धीरे फैलने लगी। शुरू में तकरीबन 3 साल उसकी संस्था से मात्र 5 -6 महिलायें ही जुड़ पाई। रंजना बताती हैं, ” उस समय वह काफी नर्वस थी। इसी बीच रंजना की संस्था से जुड़ गई लाजवंती कसौधन।
-लाजवंती महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह चलाती थीं। परिवर्तन पथ से उनके जुड़ने के बाद रंजना के हौसलों को मानो पंख लग गए। लाजवंती ने 2 साल में ही तकरीबन 500 महिलाओं को इस संस्था से जोड़ दिया। अब परिवर्तन पथ एक मुकाम पर पहुंच चुका है।
हजारों महिलाओं को बना चुकी हैं आत्मनिर्भर
-रंजना ने कहा, “उसकी संस्था से अब तक हजारों महिलाये आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। रंजना की संस्था से जु़ड़ी ज्यादातर महिलाएं बेसहारा है, या फिर गरीब हैं। इसके आलावा सैकड़ों स्कूली छात्राएं भी रंजना के परिवर्तन पथ में ट्रेनिंग ले रही हैं।
-रंजना का कहना है , “उनकी जिंदगी का मकसद अब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। मैं जिन हालातों से होकर गुजरी हूँ, उसे मैंने महसूस किया है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन पथ का मकसद ही अब महिलाओं को स्वावलम्बी बनाना है।”