लखनऊ: बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग द्वारा ‘भोजपुरी सिनेमाः सरोकार और बाजार’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन अंबेडकर विद्यापीठ सभागार में किया गया। कार्यक्रम में भोजपुरी फिल्म डायरेक्टर सनोज मिश्र मुख्य अतिथि के रूप में व राकेश शर्मा जी विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
– संगोष्ठी में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ गोविन्द जी पांडेय ने भोजपुरी सिनेमा के लगातार बढ़ते बाज़ारीकरण पर अपना विचार व्यक्त किया और बताया कि किस प्रकार सन 1963 में रिलीज पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ैबो’ में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी। अपनी भाषा में बनी फिल्म देखने के लिए, मगर बदलते वक़्त के साथ इसके बढ़ते बाज़ारीकरण ने दर्शकों को भोजपुरी सिनेमा से दूर कर दिया है।
– मुख्य वक्त डॉ धीरेन्द्र कुमार राय ने बताया कि शुरूआती दौर में भोजपुरी फिल्मों में हमारी संस्कृति और सभ्यता समाहित हुआ करती थी, मगर कुछ वर्षों पश्चात ही भोजपुरी सिनेमा के स्तर में गिरावट शुरू हो गई, फिल्मों में सभ्यता और संस्कृति की जगह फूहड़ता ने ले ली जिसके कारण दर्शक इस तरह की फिल्मों से कटने लगे।
डॉ रिपु सूदन सिंह जी अपना वक्तव्य भोजपुरी भाषा में शुरू करते हुए कहा कि हिन्दी के माई भोजपुरी है। उन्होंने सभी भाषाओं को हिन्दी की बहनों के रूप में उल्लेखित किया। उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि भारत देश के 22 भाषाओं में ‘भोजपुरी’ को भाषायी दर्जा नहीं दिया गया है।
– मुख्य अतिथि फिल्म डायरेक्टर सनोज मिश्र ने अपने फिल्मी सफर की बात की और उन्होंने बताया कि मैंने कई फिल्में ऐसी बनायी जोकि समाज के सरोकारों से जुड़ी हुई थी पर वे सफल नहीं रहीं और जब मैने एक फिल्म बनायी जोकि मेरे हिसाब से अभद्रपूर्ण थी उस फिल्म ने काफी अच्छा बिजनेस किया।
– उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में भोजपुरी सिनेमा जो रूप ले चुका है। उसमें फिल्म निर्माताओं व दर्शकों दोनों का बराबर योगदान है। मगर इसमें अब बदलाव की आवश्यकता है, अब मैं ऐसी फिल्में बनाने से हिचकता हूं जिसमें अश्लीलता का प्रचार प्रसार होता हो।