लखनऊः वर्ष 2007 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुए सांप्रदायिक दंगे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. गुरुवार को सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष की बात सुनने के बाद कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ पर किसी तरह का मुकदमा नहीं चलेगा.
एजीए एके संड ने किया याचिका का विरोध
योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ दायर की गई इस याचिका का अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और एजीए एके संड ने प्रदेश सरकार की ओर से याचिका का विरोध किया था. विरोध के बाद भी इस याचिका पर न्यायमूर्ति कृष्णमुरारी और न्यायमूर्ति एसी शर्मा की पीठ ने सुनवाई की थी और लंबी बहस हुई थी. घंटो बहस करने के बाद 18 दिसंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
याचिका में जताई गई थी आशंका
यह आदेश उन दंगों के संबंध में गोरखपुर के कैंट पुलिस थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में शिकायतकर्ता परवेज परवाज और उस मामले में गवाह असद हयात द्वारा दाखिल एक याचिका पर पारित किया गया था. इस याचिका में यह आशंका जताई गई है कि राज्य पुलिस की इकाई सीबीसीआईडी जो दंगों की वर्तमान में जांच कर रही है संभवत: निष्पक्ष जांच न करें इसलिए अदालत से यह जांच एक स्वतंत्र एजेन्सी को सौंपे जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.
यूपी के मुख्य सचिव को इलाहाबाद हाई कोर्ट का सम्मन
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को 4 मई 2017 को समन जारी करते हुए उन्हें एक दशक पहले गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़े सभी दस्तावेज लाने का निर्देश दिया था. इन दंगों में तत्कालीन स्थानीय सांसद और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आरोपी के तौर पर नामजद किया गया था. न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति उमेश चन्द्र श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मुख्य सचिव को 11 मई 2017 को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने और आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा दी गई मंजूरी समेत 2007 के दंगों से जुड़े सभी दस्तावेज पेश करने के अलावा एक निजी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था.
क्या है पूरा मामला
जनवरी 2007 में गोरखपुर में दंगा भड़का था. आरोप है कि उस समय वहां के तत्कालीन सांसद योगी ने मोहर्रम के जुलूस के मौके पर दो समुदायों के लोगों के बीच टकराव में एक युवक की मौत होने के बाद कथित रूप से भड़काऊ भाषण दिया था. तत्कालीन भाजपा सांसद योगी को तब गिरफ्तार किया गया था और 10 दिनों तक जेल में रखा गया था. अदालत से जमानत मिलने पर वह बाहर आए थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकार ने एक दशक पुराने दंगे के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी . भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत दर्ज किए गए भड़काऊ भाषण के इस मामले में सुनवाई राज्य सरकार की मंजूरी मिलने पर ही हो सकती थी.