The first husband gave divorce, then the shameful condition kept in relation to his father and brother.
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बरेली।
मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह का दंश देने वाले मर्द शरीयत के नाम का खुलकर गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ताज़ा मामला बरेली शहर के बानखाना इलाके की निवासी शबीना का है जहाँ पहले तो शौहर ने अपनी बीवी को तीन तलाक किया और फिर से अपने साथ रखने की घिनौनी शर्त रखी इस शर्त के मुताबिक पहले अपने ही ससुर के साथ हलाला कराने और दोबारा तलाक देने के बाद अब देवर से हलाला कराने की जिद पर अड़ा है।
आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस ज़हरीले सच को बयान किया कि उसकी शादी गढ़ी-चैकी के रहने वाले वसीम से वर्ष 2009 में हुई थी। दो साल बाद शौहर ने उसे तलाक देकर घर से निकाल दिया। बाद में उसी साल वसीम ने अपने पिता के साथ उसका हलाला कराया। उसके बाद वह फिर वसीम के साथ रहने लगी, मगर लड़ाई-झगड़े खत्म नहीं हुए। वर्ष 2017 में उसके शौहर ने उसे फिर तलाक दे दिया। अब वह अपने भाई के साथ हलाला करने की शर्त रख रहा है। शबीना ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया है। अपने ही ससुर के साथ हलाला करने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में शबीना ने कहा कि उनके पास इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं था। वह तो बस अपना उजड़ा घर बसाना चाहती थी। सबीना की सरकार से मांग है कि वह तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह पर सख्त कानून बनाये ताकि औरतें इस जुल्म से बच सकें।
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वहीँ आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान का कहना है कि तीन तलाक पर अभी कानून संसद में पारित नहीं हुआ है।सरकार को चाहिए कि इसमें हलाला और बहु-विवाह को भी शामिल करे। इससे लाखों मुस्लिम औरतों की जिंदगी नर्क बनने से बच जाएगी।अब जरुरत आन पड़ी है कि सही फैसले लेने के लिए शरई अदालतों (दारुल क़ज़ा) में औरतों को भी काजी बनाने की व्यवस्था की जाए। इस्लामी कानून ऐसा है जिसके तहत एकतरफा फैसले दिए जाते हों। इस्लाम में औरतों के अधिकारों के लिये जो व्यवस्थाएं हैं, उन्हें अक्सर छुपाया जाता है ताकि उन्हें इंसाफ ना मिले। शौहर के जुल्म से बेघर हुईं औरतें अब कानून का सहारा चाहती हैं। ऐसा सख्त कानून, जो उनका घर-सुरक्षा के साथ साथ परिवार भी बचा सके।