विश्व की अर्थव्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं विश्व की कुल संपत्ति का दो तिहाई हिस्सा मात्र दुनिया के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास है. इस मामले पर दुनिया के कई जाने माने लोगों ने गहरी चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि इस असमानता को नियंत्रित करने के लिए कोई तंत्र की व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई है. यह आंकड़े हाउस ऑफ कॉमन्स लाइब्रेरी द्वारा तैयार किए गए रिपोर्ट पर आधारित हैं, जिसे मुख्य रूप से दुनिया के विकासशील और गरीब अर्थव्यवस्था को ध्यान में रख कर बनाया गया है.
ब्रिटिश संसद के निचले सदन के अनुमान के मुताबिक, 2008-09 की आर्थिक मंदी के बाद के रुझानों में भी कोई बदलाव नहीं है. दुनिया के 760 करोड़ लोगों के एक प्रतिशत यानी 7.6 करोड़ के पास विश्व की सारी संपत्ति का 64 प्रतिशत होगा. इन आंकड़ों को हकीकत में बदलने में मात्र एक दशक का समय लगेगा. पिछले एक दशक में देखी गई वित्तीय अस्थिरता के बावजूद 7.6 करोड़ लोग दुनिया के आधे से अधिक संपत्ति के मालिक हो जाएंगे. जैसा कि पहले बताया गया है कि विश्व के नेताओं ने इस डेटा के आने के बाद आगे आए हैं लेकिन इस असमानता की खाई को पाटने के लिए अब तक कुछ किया गया नहीं है.
यह देखा गया है कि 2008 के बाद दुनिया के इन सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में हर साल 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है जबकी बाकी 99 प्रतिशत लोगों की वृद्धि दर 3 प्रतिशत है खबर के मुताबिक, यदि संख्या के आधार पर देखें, तो विश्व के इन एक प्रतिशत लोगों के पास कुल संपत्ति लगभग खबर डॉलर होगी जो कि वर्तमान में 104 ट्रिलियन डॉलर है. विश्लेषकों के हिसाब से इस असमानता का मुख्य कारण विकासशील देशों में आय में असमानता, अमीर लोगों की उच्च बचत दर, लंबे समय के लिए संपत्तियों का संचय और आकर्षक क्षेत्रों में निवेश महत्वपूर्ण है.
इन एक प्रतिशत लोगों की तरह दुनिया के 99 प्रतिशत लोगों के पास निवेश करने के लिए पर्याप्त संपत्ति नहीं है. इस कारण उनके आर्थिक विकास की क्षमता स्थिर है.