ईरानी निर्देशक माजिद मजीदी ने फिल्म ‘बियोन्ड द क्लाउड्स’ से अपनी पहली भारतीय शुरुआत की है. इसी के साथ इस फिल्म से एक्टर ईशान खट्टर और मालविका मोहन भी अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत कर रहे हैं. मुंबई की झुग्गी-बस्ती के भाई-बहन की यह कहानी अनचाहे बने रिश्तों की गहराई और खूबसूरती को दिखाती है. माजिद मजीदी एक जानेमाने निर्देशक हैं, जिनके काम को दुनियाभर में सराहा जा चुका है. विदेश से आए निर्देशक अक्सर भारत की गरीबी और झुग्गियों को ही अपने कैमरे में कैद करते नजर आते हैं. निर्देशक माजिद मजीदी की बात करें तो उनकी यह फिल्म भले ही मुंबई के स्लम के दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती हो, लेकिन कहानी अभाव की नहीं बल्कि परिस्थितियों में पनपते खूबसूरत रिश्तों की है.
कास्ट: ईशान खट्टर, मालविका मोहन, गौतम घोष, जीवी शारदा
डायरेक्टर: माजिद मजीदी
स्टार: 3 स्टार
कहानी
फिल्म की शुरुआत ही है मुंबई की एक सड़क से जिसपर कई गाड़यिा दौड़ रही हैं और यहां आमिर (ईशानखट्टर) खड़ा है. इसी सड़क के नीचे ब्रिज है जहां कई लोग रहे हैं. फिल्म के पहले सीन से ही शहर के अंर्तद्वंद को बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है. आमिर (ईशानखट्टर) ड्रग्स सप्लाई करता है और जैसे ही पुलिस की चपेट में आता है, वह भागते हुए अपनी बहन तारा (मालविका मोहन) से टकराता है. आमिर ड्रग्स सप्लाई करता है और अपनी जिंदगी में काफी पैसा कमाना चाहता है. जबकि तारा का पति शराबी था जो उसे और आमिर को बहुत मारता था और एक दिन आमिर उन्हें छोड़ कर भाग गया. तारा अकेले अपनी जिंदगी की जरूरतों से लड़ रही है और धोबी घाट पर, अक्शी (गौतम घोष) के यहां काम करती है. अक्शी, तारा और आमिर की जिंदगी एक सुबह अचानक बदल जाती है जब अक्शी, तारा का बलात्कार करने की कोशिश करता है और तारा उसके सिर पर वार कर देती है. अक्शी को घायल करने के लिए तारा को जेल भेज दिया जाता है और अक्शी अस्पताल पहुंच जाता है. अब आमिर इस कोशिश में लग जाता है कि तारा को जेल से बाहर ला सके और अक्शी, जो अस्पताल में है वह सच बोले. जेल और अस्पताल के बीच घूमते आमिर की जिंदगी में बहुत कुछ होता है और रिश्तों की एक खूबसूरत कहानी पर्दे पर उकेरी जाती है.
दिल बैचन करते हैं कुछ सीन
इस कहानी में बहुत बड़ा तामझाम नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियों के बीच इंसान के भीतर मौजूद अच्छाई और भलाई को जिंदा रखने की कोशिश काफी अच्छे से दिखाई गई है. फिल्म में कुछ सीन दिल को बैचेन कर देते हैं. जैसे एक सीन में वेश्यालय में एक महिला अपने कस्टमर को लेकर कमरे में जाती है और उस कमरे से अपने बेटी को बाहर खड़ा कर देती है. वह छोटी बच्ची उसी कमरे के बाहर खड़ी हो जाती है. अपनी मां के जीविकोपार्जन के तरीके को जैसे इस बच्ची ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया है.
ईशान खट्टर हैं इंडस्ट्री के लिए तैयार
एक्टिंग की बात करें तो इस फिल्म ने ईशान खट्टर के तौर पर एक जबरदस्त एक्टर दिया है. ईशान इस फिल्म में काफी मेच्योर एक्टर के तौर पर नजर आएं हैं. हर सीन में जैसे वह ढल से गए हैं. मालविका मोहन भी फिल्म में काफी अच्छी दिखी हैं. निर्देशन की बात करें तो माजिद मजीदी ने अभी तक फीचर फिल्मों के साथ ही कई डॉक्यूमेंट्री भी बनाई हैं. ऐसे में उनकी इस फीचर फिल्म में भी डॉक्यूमेंट्री वाली डिटेलिंग नजर आती है.
छूटे हैं कुछ छोर
यह एक अच्छी भावनात्मक फिल्म है, लेकिन कुछ कमियां भी खली हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी धीमा है. साथ ही कहानी रिश्तों के पनपने पर है, ऐसे में कई बार वह एक ही जगह घूमती सी लगती है. फिल्म में वैसे तो ज्यादातार एक्टर नए हैं, लेकिन जेल में तारा की साथी कैदी के किरदार में एक्ट्रेस तनिष्ठ चटर्जी को पूरी तरह बर्बाद किया गया है. ‘पार्च्ड’ जैसी फिल्म में अहम किरदार में नजर आ चुकी तनिष्ठा को पर्दे पर देखकर लगता है कि इस किरदार के पास जरूर कुछ बड़ा करने के लिए होगा, लेकिन इतनी उम्दा एक्ट्रेस का इस्तेमाल इस फिल्म में सिर्फ खांसने के लिए किया गया है. इसके अलावा कहानी के कई छोर छूटे हुए से लगते हैं.