भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 17 मार्च, 1890 से मानी जा सकती है। जब ब्रिटिश भारत और चीन ने एक संधि कर तिब्बत और सिक्किम के बीच की सीमा तय की थी। हालांकि इस मौके पर तिब्बत या भूटान का कोई भी प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। ‘ग्रेट ब्रिटेन और चीन के बीच सिक्किम और तिब्बत से संबंधित सम्मेलन’ नाम की इस संधि की वजह से कॉलोनी ताकत को सिक्किम हड़पने का मौका मिल गया। तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय एचसीकेपी फिट्समॉरिस और लेफ्टिनेंट शेंग ताई के बीच हुई संधि का जिक्र चीनी सरकार ने सिक्किम के नाथू ला के पास चल रहे सैन्य गतिरोध के संदर्भ में किया है। चीन ने इस संधि के पहले अनुच्छेद का जिक्र किया है जिसके अनुसार, ”सिक्किम और तिब्बत के बीच की सीमा उन पहाड़ियों की चोटियां होंगी जो कि सिक्किम तीस्ता में बह रहे पानी को तिब्बतन मोचू और उत्तर में तिब्बत की अन्य नदियों से अलग करता है। रेखा भूटान सीमा पर माउंट गिपमोची से शुरू होती है और इस पानी के बंटवारे से होते हुए नेपाल सीमा से जा मिलती है।”
दूसरे अनुच्छेद में सिक्किम पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण पर सहमति बनी। इसमें कहा गया, ”यह माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार, जिसकी सिक्किम राज्य पर सत्ता यहां स्वीकार की जाती है, का राज्य के आंतरिक प्रशासन और विदेशी संबंधों पर प्रत्यद्वा और एकाधिकारी नियंत्रण होगा, और ब्रिटिश सरकार की इजाजत के बिना, राज्य का कोई शासक, न ही उसका कोई अधिकारी किसी और देश के साथ, औपचारिक या अनौपचारिक रिश्ते नहीं रखेगा।”
चीन और आजादी के बाद भारत ने इस संधि और सीमांकन का पालन किया। ऐसी स्थिति तब तक चलती रही जबतक 1975 में सिक्किम भारत का एक राज्य नहीं बन गया। हालांकि चीन का भूटान से सीमा विवाद और वहां से भारत के अच्छे रिश्तों ने हालिया तनाव पैदा करने में भूमिका निभाई है। डोंगलोग चीनी नियंत्रण में है, मगर भूटान उसपर दावा करता है।
भारत और चीन के बीच सिक्किम में हुए ताजा सीमा विवाद के बाद दोनों देशों ने इस इलाके में सुरक्षा बंदोबस्त बढ़ा दिया है। चीन और भारत दोनों ने इस इलाके में तीन-तीन हजार सैनिक तैनात कर रखे हैं।