Jeanne about this woman whose death was not only for India but also the whole of Pakistan.
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23 साल की छोटी-सी उम्र में कोई इतनी ज्यादा बहादुर कैसे हो सकता है कि बिना अपनी जान की परवाह किए ही 360 लोगों की जिंदगी बचा जाए। जी हां बात हो रही उस महान शख्सियत की जिसका हौसला हिमालय से भी कहीं ज्यादा ऊंचा है और उसका किरदार की बुलंदी तो ऐसी है कि इंसानियत भी उसपर नाज करे। अपने फर्ज को निभाते हुये जब वह औरत दुनिया-ए-फानी को अलविदा कहती है तो हिंदुस्तान, पाकिस्तान और अमेरिका की आवाम की आंखे नम सी हो जाती हैं। हम आपको बताना चाहेंगे कि उस प्रेरणादायी किरदार का नाम है नीरजा भनोट।
5 सितंबर 1986 ही वो तारीख थी, जिस दिन नीरजा ने अपनी जान देकर लोगों की जान बचाई थी। नीरजा के इस बलिदान पर पूरा भारत ही नहीं बल्कि पूरा पाकिस्तान भी रोया था। भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। आपको बता दे कि नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं। इतना ही नहीं, नीरजा को पाकिस्तान सरकार की तरफ से तमगा-ए-इंसानियत और अमेरिकी सरकार की तरफ से जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड से नवाजा गया। क्या आप जानते हैं कि नीरजा की जिंदगी पर पिछले साल एक फिल्म भी आई थी, जिसमें सोनम कपूर ने नीरजा का किरदार निभाया था।
वहीं 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ के एक पंजाबी परिवार में जन्मी नीरजा ने 5 सिंतबर 1986 को यानी आपने 23वें जन्मदिन से केवल 2 दिन पहले को पैन एएम की फ्लाइट 73 में सीनियर पर्सर थीं, ये फ्लाइट मुंबई से अमेरिका जा रही थी लेकिन पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर इसे 4 हथियारबंद लोगों ने हाईजैक कर लिया। जिसके पश्चात उस फ्लाइट में 360 यात्री और 19 क्रू मेंबर्स थे। आपको बता दे कि जब आतंकियों ने प्लेन हाईजैक किया था तब नीरजा की सूचना पर चालक दल के सदस्य पायलट, को-पायलट और फ्लाइट इंजीनियर कॉकपिट उसको छोड़कर भाग गए। आपको बता दे कि ये चारो आतंकवादी अबू निदान ऑर्गेनाइजेशन के थे और अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे। दरअसल आतंकी प्लेन को इजराइल में किसी निर्धारित जगह पर क्रैश कराना चाहते थे लेकिन नीरजा ने उनका प्लान फ्लाप कर दिया। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि मुंबई से अमेरिका जाने वाली पैन एम फ्लाइट 73 की नीरजा सीनियर परिचारिका थी। जिसे पकिस्तान के कराची एअरपोर्ट पर 5 सितम्बर 1986 को हाईजैक कर लिया गया था। उस समय विमान में 376 यात्री और 19 क्रू सदस्य थे। आतंकवादी जेल में कैद उनके सदस्यों को रिहा करना चाहते थे। जैसे ही आतंकवादियों ने विमान का अपहरण कर लिया वैसे ही नीरजा ने इसकी सुचना चालक स्थान पर वैठे कर्मचारी को दे दी। एयरक्राफ्ट के बाकी सभी सदस्य चाहते थे की अब विमान अपनी जगह से किसी भी हालत में न उड़े। उन सब में नीरजा ही सबसे सीनियर परिचारिका थी, इसीलिए नीरजा ने उसे अपने हाथों में लिए।
नीरजा भनोट / Neerja Bhanot हाईजैक की सारी जानकारी चालक स्थान पर बैठे कर्मचारी तक पहुंचाना चाही तो आतंकवादियों ने उसकी चोटी पकड़कर रोक दिया लेकिन फिर भी उसने कोड भाषा में अपनी बातो को कर्मचारियों तक पहुंचाया। जैसे ही प्लेन चालक तक नीरजा की बात पहुंची तो उस प्लेन के पायलट, सह-पायलट और फ्लाइट इंजिनियर विमान को वही छोड़कर भाग गये।
फिर उन आतंकवादियों ने नीरजा से सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्टे करने को कहा ताकि उनमे से वो अमेरिकन को पहचान सके। उन आतंकवादियों का मुख्य मकसद अमेरिकी यात्रियों को मारना था इसीलिए नीरजा ने सूझबुझ दिखाते हुए 41 अमेरिकन के पासपोर्ट छुपा दिए, जिसमे से कुछ उन्होंने सीट के निचे और कुछ ढलान वाली जगह पर छुपा दिए। उस फ्लाइट में बैठे 41 अमेरिकियों में से केवल 2 को ही आतंकवादी मारने में सफल हुए। अब उन आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार को विमान में पायलट भेजने को कहा लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। अब उन आतंकवादियों ने एक ब्रिटिश नागरिक को विमान के द्वार पर लाकर पाकिस्तानी सेना को धमकी दी की अगर उन्होंने पायलट नही भेजा तो वो उसे मार देंगे तभी नीरजा ने आतंकवादियों से बात कर उस ब्रिटिश नागरिक को बचा लिया।
कुछ घंटो बाद उस चालू विमान का फ्यूल खत्म हो गया और विमान में अँधेरा हो गया जिसके कारण हाईजैक करने वालो ने अँधेरे में ही गोलीबारी करना शुरू कर दिया। तभी अँधेरे का फायदा उठाते हुए नीरजा ने आपातकालीन द्वार खोलकर कई यात्रियों को बाहर निकालने की कोशिश की। नीरजा ने जब दरवाजा खोला तब वो चाहती तो पहले खुद को बचा सकती थी लेकिन उसने ऐसा नही किया और सभी यात्रियों को बाहर निकालने के बाद बचे हुए तीन बच्चो को बचाते हुए नीरजा को गोली लग गयी। उनमे से एक बच्चा जो उस समय केवल 7 साल का था वह नीरजा भनोट की बहादुरी से प्रभावित होकर एयरलाइन में कप्तान बना। केवल 23 साल की आयु में इतनी बहादुरी से उस अकेली महिला ने सभी यात्रियों की जान बचाई थी। नीरजा के इस बलिदान पर भारत ही नहीं पूरा पाकिस्तान भी रोया था। नीरजा उस पितृसत्तात्मक समाज के मुंह पर एक जवाब भी है जो सदैव स्त्री की शारीरिक क्षमता को लेकर स्त्री की क्षमता को सीमित करता रहा है।
भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं। इतना ही नहीं, नीरजा को USA ने फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हेरोइस्म अवार्ड, जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड यूनाइटेड स्टेट ने व यूनाइटेड स्टेट (जस्टिस विभाग) ने विशेष बहादुरी पुरस्कार और पकिस्तान ने तमगा-ए-इंसानियत अवार्ड से नवाजा था।