Unit 731: A Japanese Lab where humans were on Death Test.
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इतिहास में इंसानो के ऊपर अपनी तकनीक और दवाईओं का परिक्षण करने के लिए ऐसे ऐसे काम किये गए हैं जो मानव-जाति को शर्मशार करते हैं। उन पर जानवरों से ज्यादा जुल्म किये जाते रहे और उन पर मशीनों की तरह टेस्ट किये गए, जिससे उन सभी की दर्दनाक मौत तक हो गयी वो भी 100-200 की संख्या में नहीं लगभग 3000 लोग। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने एक ऐसी लैब बनाई थी जिसे इतिहास का सबसे खौफनाक टॉर्चर हाउस माना जाता है। जापानी सेना पिंगफांग स्थित यूनिट 731 लैब में अन्य देशों से पकड़े गए लोगों पर जानवरों की तरह टेस्ट करते थे। खतरनाक वायरस, कैमिकल्स का जिंदा लोगों पर बिना किसी रोक टोक के ऐक्सपेरिमेंट किया जाता था। इंसान जानवरों की तरह तड़प-तड़प कर मर जाते थे। जो बच जाते, उनकी चीर फाड़ कर जाना जाता कि आखिर ये बच कैसे गया। 10 सालों में जापानी ने एक्सपेरिमेंट के नाम पर ऐसी हैवानियत की, जिसे जानकर लोगों की रूह कांप जाती है। इन एक्सपेरिमेंट के लिए 3 हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
असल में इस लैब को जापानी सेना ने जैविक हथियार बनाने के लिए शुरू किया था। जापानी सेना वायरस और ऐसी बीमारी देने वाले हथियार तैयार करना चाह रही थी, जिसे वह विरोधी सेना पर इस्तेमाल कर सके। इसके अलावा वैज्ञानिकों की टीम कुछ अन्य रोगों पर रिसर्च करना चाहती थी, जिससे अपने सैनिकों को बचाया जा सके। इसके लिए जिंदा इंसानों को खौफनाक यातनाएं दी जाती थीं। जापानी सरकार भी उस दौर में यूनिट 731 काफी महरबान रही थी।
इसके अलावा एक और खतरनाक टेस्ट को जिसे फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग कहते थे, इसमें व्यक्ति के हाथ-पैरों को पानी में डुबा दिया जाता था। इसके बाद पानी को तब तक ठंडा किया जाता था जब तक हाथ-पैर जम नहीं जाते थे। जब हाथ पैर पत्थर की तरह जम जाते तो फिर उन्हें गर्म पानी में पिघलाया जाता। ऐसा ये जानने के लिए किया जाता था कि अलग-अलग पानी के तापमान से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस टेस्ट के दौरान कई लोगों की दर्द की वजह से मौत हो जाती थी।
कई बार बीमारी वाले वायरस देने के बाद बंधकों के प्रभावित अंग को काट दिया जाता था, ये देखने के लिए कि रोग आगे फैलता है या नहीं। इस दौरान एनेस्थीसिया दिया जाता था, लेकिन कुछ लोग या तो अपंग हो जाते थे या फिर दम तोड़ देते थे। अगर बंधक ये सब भी सह जाते तो उनपर गन फायर टेस्ट किया जाता था। ये देखने के लिए कौन सी बंधूक कितनी प्रभावी है।
एक अनोखा टेस्ट भी किया गया जिसमें बंधक महिला पुरुष को जबरन सेक्स कराया जाता था। इसमें से एक रोगी होता था। डॉक्टर्स इसके जरिए ये देखना चाहते थे कि साइफिल्स जैसे सेक्शुअल ट्रांसमिटेड बीमारी कैसे फैलती है। इसमें कई बंधक महिलाओं की मौत भी हो जाती थी। इसके अलावा महिलाओं का रेप भी किया जाता था। उन्हें प्रेग्नेंट बनाकर देखा जाता था कि कुछ वायरस और बीमारियों का नवजात पर क्या असर पड़ता है।
हैवानियत यही खत्म नहीं होती टेस्ट के नाम पर इंसानों के साथ नर्क से भी बद्तर जुल्म ढाए जाते थे। इसी में से एक था ‘क्रश टेस्ट’। इसमें भारी-भरकम चीजें बंधकों के हाथ-पैर, पसली या शरीर के किसी भी हिस्से पर पटक दी जाती थी, ये देखने के लिए कि कितने वजन या तेजी से शरीर को नुकसान पहुंचता है।
पैथोजन टेस्ट में तो सैंकड़ों लोगों के अंदर पैथोजन वायरस डाल दिया जाता था और देखा जाता था कि इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसमें जो व्यक्ति जल्दी बीमार पड़ जाता था उसका गला काटकर फेंक दिया जाता था। क्योंकि वह रिसर्च के लिए सही नहीं होता था। वहीं जो इस टेस्ट पास होकर बच जाता था, उसे मौत के घाट उतारकर उसपर रिसर्च की जाती थी कि ये बच कैसे गया!