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कैजुअल सेक्स का दिमाग पर पड़ सकता है बुरा असर

आधुनिक समाज में प्यूबर्टी यानी प्रौढ़ता और शादी के बीच बढ़ते गैप को भले ही हम आजादी और स्वतंत्रता से जोड़ें लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं। इस मॉर्डन सोच और सभ्यता का ऐसा ही एक बाइ प्रॉडक्ट या उपफल है कैजुअल सेक्स यानी अजनबियों के साथ सेक्स। हालांकि भारतीय समाज और भारतीय युवाओं के बीच यह फिलहाल बहुत ज्यादा कॉमन नहीं है लेकिन इसका ट्रेंड भी तेजी से बढ़ रहा है।

हमने नोएडा के फोर्टिस अस्पताल के 2 डॉक्टरों डॉ मनु तिवारी, हेड, मेंटल हेल्थ एंड बीहेवियरल सायेंस और डॉ तान्या तयाल, साइकॉलजिस्ट, मेंटल हेल्थ एंड बीहेवियरल सायेंस से इस बारे में बात की। इन्होंने हमें समझने में मदद की कि आखिर क्यों बड़ी संख्या में युवा कैजुअल सेक्स की तरफ बढ़ रहे हैं, इसका उनके मेंटल हेल्थ यानी मानिसक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है और इसके नकारात्मक प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है।

कैजुअल सेक्स की तरफ मुड़ने के कारण
डॉ तान्या बताती हैं, कैजुअल सेक्स की तरफ बढ़ने के 3 मुख्य कारण हैं। पहला- कॉन्ट्रसेप्टिव यानी गर्भनिरोधक दवाओं के आसानी से मिलने की वजह से ऐसा होता है। दूसरा- आसानी से विकल्प का मिलना, जिसमें मौका, जगह और दूसरे सहायक कारण शामिल हैं। तीसरा- कैजुअल सेक्स की तरफ आकर्षण और दोस्तों का प्रेशर।

दिमाग पर पड़ता है असर
डॉ तान्या बताती हैं कि शौकिया तौर पर कैजुअल सेक्स करने से 3 बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। पहला- सार्थक और महत्वपूर्ण रिश्तों में यकीन ना करना। दूसरा- कैजुअल सेक्स की वजह से एक इंसान की कमिटमेंट और अर्थपूर्ण रिश्ते की समझ बिगड़ जाती है। कई युवा कमिटेड रिश्ते और कैजुअल हुक-अप के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं जिससे उनकी सोच विकृत हो सकती है। तीसरा- पलायनवाद यानी सेक्स कई बार ऐसा लोगों के लिए बचने का जरिया बन जाता है जो रिलेशनशिप की गतिविधियों को समझना नहीं चाहते।

मन में अपराधबोध की भावना
इस तरह के कैजुअल सेक्स के बाद कई युवा खासतौर पर लड़कियों के मन में यह भावना आती है कि उन्हें यूज किया गया है। डॉ मनु तिवारी बताते हैं कि भारत में 50 फीसदी से ज्यादा कैजुअल सेक्स किसी ना किसी तरह के मादक द्रव्य फिर चाहे ऐल्कॉहॉल हो या ड्रग के प्रभाव में ही होते हैं। मादक द्रव्य के प्रभाव की वजह से उस वक्त तो सेक्स में कोई रूकावट नहीं आती लेकिन बाद में वह इंसान अपने आप में अच्छा महसूस नहीं करता जो उस व्यक्ति को अपराधबोध की ओर ले जाता है। खासतौर पर ऐसी परिस्थितियां जहां महिलाएं गर्भवती हो जाती हैं और उन्हें अबॉर्शन तक करवाना पड़ता है, ऐसे में उनकी मनोवैज्ञानिक परिस्थिति पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

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