आई जाने की हमारे शरीर मैं कौन-कोण से अंग सेक्स में सहायक होते है और किसी इनकी बनावट होती है। प्रकृति ने सभी कार्य को ठीक ढंग से पूरा करने के लिए किसी न किसी साधन की व्यवस्था की है जिसके द्वारा हम उस कार्य को पूरा करते हैं। इनमें से कुछ कार्य तो ऐसे होते हैं जो प्रकृति के अनुसार अपने आप चलते रहते हैं जैसे- वातावरण में परिवर्तन होना, दिन-रात होना आदि। लेकिन इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर स्त्री-पुरुष के जीवन को बचाने के लिए उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी स्त्री-पुरुष के शरीर में कुछ ऐसे अंग होते हैं जिनके बिना वे जी नहीं सकते हैं जैसे- हम आंखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं और पैरों से चलते हैं। ठीक इसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के वंश में वृद्धि के लिए भी प्रकृति ने उनके शरीर में यौनांगों तथा जननेन्द्रियों की रचना की है। जहां तक अंगों का परिचय तथा उनके महत्व का सवाल है, प्रत्येक स्त्री-पुरुष को इन अंगों को ठीक प्रकार से जानना अति आवश्यक है। आज भी बहुत से ऐसे स्त्री-पुरुष जिनको अपने साथी के पूरे अंगों के बारे में ठीक प्रकार से ज्ञान नहीं है। इस अनभिज्ञता के कारण वे संभोग क्रिया के समय में इन अंगों का ठीक प्रकार से उपयोग नहीं कर पाते हैं। ऐसी कारण से वे संभोग क्रिया के समय पूरी तरह से आनन्द लेने में सफल नही हो पाते और कभी-कभी इसका भंयकर परिणाम भी भोगना पड़ता है। यह तक की पति पत्नी में लड़ाई-झगडे, मनमुटाव यहॉ तक की तकलक की नौबत आ जाती है।
सेक्स क्रिया का पूरी तरह से आन्नद लेने के लिए सभी स्त्री-पुरुष को यह जान लेना चाहिए कि यह क्रिया करने के लिए कौन-कौन से अंगों की आवश्यकता पड़ती है। स्त्री-पुरुष के बहुत से ऐसे अंग होते हैं जो एक-दूसरे से मिलते जुलते हैं। जैसे कि आंख, नाक, मुंह, कान, गुर्दे, आमाशय, मस्तिष्क तथा सिर आदि। लेकिन यहां पर हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री-पुरुषों के सेक्स अंग अलग-अलग होते हैं। इन अंगों में होने वाले इस प्रकार के भिन्नता के कारण से स्त्री-पुरुष की अलग-अलग पहंचान हो पाती है।
इसलिए यह आवश्यक है की युवावस्था में ही स्त्री-पुरुषों को इन अंगों के बारे में जानकारी हो जानी चाहिए। बहुत से वैज्ञानिकों का तो यह कहना है कि युवावस्था में ही सेक्स के इन अंगों के बारे में ठीक प्रकार से जानकारी न होने के कारण से ही आगे चलकर स्त्री-पुरुष को सेक्स संबंधित मानसिक तथा शारीरिक रोगों का सामना करना पड़ता है।
वैसे देखा जाए तो स्त्री-पुरुष के शरीर की रचना में प्रकृति ने बहुत अधिक अंतर रखा है, लेकिन फिर भी बहुत से अंग ऐसे होते हैं जो दोनों के एक समान होते हैं, जैसे- हाथ, पैर तथा मुंह आदि। इसके अलावा स्त्री-पुरुष के कुछ अंगों की बनावट में बहुत अधिक अंतर भी होता है जैसे-स्त्री के सीने पर दो बड़े-बड़े स्तन होते हैं तो ठीक इसके विपरित पुरुष का सीना सपाट होता है, स्त्री-पुरुष के जननांग भी ठीक विपरीत होते हैं। इसी प्रकार के कुछ अंतर के कारण से ही स्त्री तथा पुरुषों में पहंचान हो पाती है।
बहुत से पुरुष तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें प्रजनन अंगों के बारे में बहुत अधिक चिंता रहती है। कभी-कभी तो वे यह भी सोचते हैं कि मैं अपनी पत्नी को पूरी तरह से सेक्स की सन्तुष्टि दे पाउंगा या नहीं। वैसे देखा जाए तो यौन सुख प्राप्त करने के लिए सेक्स क्रिया करने वाले अंगों का आकार कितना होना चाहिए, यह स्त्री पुरुष की अपनी मानसिकता पर निर्भर होती है। सेक्स क्रिया के अंग कितने बड़े होने चाहिए, यह जानने से पहले उसकी कार्यविधि और रचना के बारे में जानना आवश्यक है।
पुरुष जननेन्द्रिय तंत्र तथा गुप्त अंगों की जटिलता और इनकी कार्य विधि को जानने के लिए निम्नलिखित ऐतिहासिक रूप को जानना जरूरी है-
प्रकृति के इस रहस्य को समझने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि मादा मछली पानी में अंडे देती है और उसके पीछे तैरता हुआ नर मछली अपना वीर्य (शुक्र कीट) उन पर जमा कर देता है। अगर इस वीर्य द्वारा एक भी अंडा निशेचित हो जाता है और पानी के अन्य जीव इसे नहीं खाते तो कुछ समय के बाद मछली की तरह एक शिशु मछली का जन्म हो जाता है। लेकिन इस प्रकार से बहुत से संख्याओं में अंडों को शुक्रकीट निशेचित कर शिशुओं की जन्म दर को बनाये रखते हैं।
पुरुष के लिंग में उत्तेजना के रहस्य को समझाने के लिए हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा मस्तिष्क को आनन्ददायक उत्तेजना मिलने से ही लिंग उत्तेजित होता है। मनुष्य की त्वचा सबसे अधिक संवेदनशील होती है। यदि इसे सहलाया जाए तो हमें बहुत अधिक आनन्द मिलता है लेकिन हमारी त्वचा में कई जगह ऐसे कामोत्तेजक क्षेत्र (कामोत्तेजकअंग) होते है जहां पर गुदगुदी उत्पन्न करने वाली तंत्रिका अंतागों का घना जाल बिछा रहता है। जब इन क्षेत्रों को सहलाया जाता है तो तंत्रिका अंतांग इस हरकत को तुरंत ही मस्तिष्क को भेजने लगते हैं जिससे मस्तिष्क में कामोत्तेजना उत्पन्न होने लगती है। मस्तिष्क इन उत्तेजनाओं को सुषुम्ना (मेरुरज्जु) में स्थित उत्थान केंद्र तंत्रिकाओं को आज्ञा देकर लिंग अथ्वा योनि की ओर रक्त के प्रवाह को बढ़ा देता है जिसके कारण से ये अंग रक्त से भरकर फूल जाते हैं। इस अवस्था को ही उत्थान कहा जाता है।
मानव प्रजनन का विकास-
यही अन्तिम प्रजनन प्रक्रिया मानव प्रजनन पर आधारित है। स्त्री जननांग की बाहरी तथा आन्तरिक संरचनाओं से भी स्पष्ट हो जाता है कि विकास के लिए हुए अधिकांश परिवर्तन इसी के साथ जुड़े हुए थे। प्रजनन प्रणाली में मादा का कार्य थोड़ा मुश्किल भरा होता है लेकिन नर का कार्य मादा की अपेक्षाकृत आसान होता है। नर तो केवल शुक्राणुओं को जन्म देता है और फिर उसे मादा प्रजनन तंत्र के द्वारा संवाहित कर देता है ताकि यह उसके अंडे को निशेचित कर सके।
विकास तथा इसके कार्यकारी रचना का एक प्रभावशाली भाग पुरुष जननांग होता है। इसकी कार्यशीलता की जटिलता और प्रभावशीलता मूत्र संचारण से मिले होने के कारण सिकुड़ जाती है। शुक्र कीटों का निर्माण जहां पर होता है, वह पुरुष जननांग दो अंडकोषों या अंडाशयों में बट जाता है। ये भाग ही पुरुष लिंगीय हार्मोन की भी रचना करते हैं। इसी के कारण से विभिन्न प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते रहते हैं।
पुरुष के सेक्स अंग लिंग (Penis), शुक्राणु कोष (Seminal Vesicles), अण्डकोष (Testis), काउपर ग्लैंड्स (Cowper Glands) तथा प्रोस्टेट ग्लैंड (Prostate Gland) आदि होते हैं।
सेक्स क्रिया में इन सभी अंगों की महत्वपूर्म भूमिका होती है लेकिन इनमें से सबसे महत्वपूर्ण अंग लिंग होता है क्योंकि इसी से संभोग क्रिया की जाती है तथा इससे मूत्र त्याग भी किया जाता है और वीर्य भी इसी के द्वारा योनि के अंदर डाला जाता है।
लिंग (Penis) –
लिंग दोनों जंघाओं की संधियों के बीच लटकते हुए थैलीनुमा अंडकोष के ऊपर स्थित होता है। यह वह भाग होता है जिसके द्वारा वीर्य स्त्री के योनि में प्रवेश कराया जाता है। यह पुरुष का अधिक संवेदनशील अंग है, जिसका सेक्स क्रिया करने में सबसे अधिक योगदान होता है। इस अंग के दो मुख्य कार्य होते हैं- एक मूत्र के द्वारा शरीर के अपद्रव्य पदार्थों को बाहर निकालना है तथा दूसरा संभोग क्रिया के समय में उत्तेजित होकर संभोग के कार्य को सम्पादित करना और वीर्य को लिंग से बाहर निकालकर स्त्री की योनि में प्रवेश करना तथा स्त्री को गर्भवती करना है।
सेक्स के समय में जब लिंग उत्तेजना में आ जाता है तो इसकी लम्बाई और आकार में वृद्धि हो जाती है। जब पुरुष संभोग क्रिया के समय स्त्री की योनि में अपने लिंग को प्रवेश कराके घर्षण करता है तो उसके बाद उसके लिंग से वीर्य निकलकर स्त्री की योनि में चला जाता है तथा इसके बाद उसका लिंग ठंडा पड़ जाता है अर्थात शिथिल हो जाता है। लेकिन जब दुबारा से उत्तेजना पुरुष में होती है तो वह उत्तेजना में आ जाता है। लिंग के आगे के भाग को लिंगमुंड (ग्लांस पेनिस) कहते हैं। यह पतली त्वचा से ढका रहता है तथा इस पतली त्वचा को प्रीयूस कहते हैं।
लिंग के आगे का भाग एक टोपी के समान होता है और इस पर ढके हुए प्रीपयूस को आगे-पीछे सरका सकते हैं। लिंगमुंड का कॉलर उठा हुआ संवेदनशील होता है। सेक्स क्रिया करते समय इस भाग पर रगड़ लगने से अत्यधिक आनंद आता है।
लिंगमुंड और प्रीप्यूस से एक प्रकार का तरल पदार्थ निकलता है, जो लिंग के इस भाग को नम बनाए रखता है। यह तरल पदार्थ वहां पर जमा हो जाता है, जिसे स्मेगमा कहते हैं। इसकी सफाई करनी जरूरी होती है। यदि इसकी सफाई नहीं होती है तो फाइमोसिस रोग की शिकायत हो सकती है।
लिंग के अन्दर तीन नलिकाएं होती है और उत्तेजना की अवस्था में इन नलिकाओं में रक्त भर जाता है। इसके कारण से लिंग में तनाव आ जाता है तथा वह सख्त होकर उत्तेजित अवस्था में आ जाता है। संभोग क्रिया में जब वीर्य लिंग से निकलता है तो इन नलिकाओं में आया हुआ रक्त वापस लौट जाता है और वह दुबारा से ढीला पड़ जाता है।
जब यह शिथिल अवस्था में होता है तो लिंग की लम्बाई 7.5 सेमी. से 10 सेमी होती है तथा इसकी परिधि लगभग 7.5 सेमी. होती है और जब यह उत्तेजित अवस्था में होता है तो इसकी लम्बाई 15 सेमी. से 16.5 सेमी. होता है। लिंग की लम्बाई के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा जा सकता है।
1. छोटा लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 सेमी. से कम होती है, उसे छोटा लिंग कहा जाता है।
2. मध्यम लिंग- जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 10 से 18 सेमी. होती है, उसे मध्यम लिंग कहा जाता है।
3. बड़ा लिंग– जिस लिंग की लम्बाई उत्तेजित अवस्था में 18 सेमी. से अधिक होती है, उसे बड़ा लिंग कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के आधार पर लिंग की लम्बाई आनुवंशिक तौर पर छोटी-बड़ी हो सकती है, लेकिन सामान्य तौर पर लिंग की लम्बाई पुरुष की लम्बाई के अनुपात में हो सकती है। जिस पुरुष की लम्बाई 6 फुट होती है, उसके उत्तेजित लिंग की लम्बाई 6 इंच होती है। यह लम्बाई सामान्य आधार पर है, आनुवंशिक आधार पर यह कम ज्यादा भी हो सकती है।
कुछ पुरुषों के लिंग छोटे होते हैं जिसके कारण से वह सेक्स क्रिया करने में कतराते रहते हैं, जबकि यह कहना गलत है क्योंकि प्रजनन अंग अर्थात लिंग छोटे-बड़े होने से विवाह में (यौन जीवन) कोई कठिनाई नहीं होती है। सामान्य दृष्टि से पुरुष के लिंग का आकार इतना ही होना चाहिए जितना की वह योनि में पहुंचाया जा सके। जब तक किसी भी आकार के लिंग के शुक्रकीट (वीर्य) को योनि में नहीं पहुंचाया जा सकता है तब तक प्रजनन सफलता पूर्वक होगा ही नहीं। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसके लिंग का आकार इतना छोटा हो कि वह योनि में ठीक तरह से प्रवेश कराया न जा रहा हो तो वह स्त्री को गर्भवती नहीं कर पायेगा।
गोत्र-
लिंग के सुपारी के पीछे का सम्पूर्ण गोल व लम्बा भाग लिंग का गोत्र कहलाता है। इसके ऊपर बिना बालों वाली चिकनी त्वचा लगी रहती है जो सामान्य स्थिति में सिकुड़ी हुई रहती है। यह त्वचा भी शरीर के अन्य अंगों की तरह लिंग से चिपकी हुई नहीं रहती है बल्कि यह लिंग से बिल्कुल अलग केवल उसे ढकी हुई अवस्था में रहती है। यदि उसे उंगलियों से पकड़कर इस त्वचा को उठाया जाए तो यह ऊपर की ओर आसानी से उठ जाती है। जब पुरुष को कामोत्तेजना होती है तो लिंग की लम्बाई व मोटाई कुछ बढ़ जाती है, इस अवस्था में यह लिंग को ढके रहती है।
हम जानते हैं कि पूरे शरीर में नसों व नलिकाओं का जाल है तथा उनके चारों ओर अधिक मात्रा में चर्बी भी होती है। इस कारण से वे अधिकतर दिखाई नहीं देती लेकिन लिंग के ऊपरी भाग पर नलिकाओं पर चर्बी न होने कारण से वे दिखाई देती रहती हैं जो पूर्ण रूप से स्वाभाविक व प्राकृतिक बात होती है।
लिंग मूल (शिश्न मूल)-
लिंग का यह भाग सबसे पीछे होता है। इसका अंतिम सिरा बाहर की तरफ दिखाई नहीं देता है लेकिन दोनों अंडकोषों के नीचे से बीच में टटोलकर इसको महसूस किया जा सकता है। इसी भाग को लिंगमूल कहा जाता है जो पीछे मुड़कर मूत्राशय की तरफ जाता है। लिंगमूल के दोनों तरफ एक-एक काउपर ग्रंथि होती है। जब व्यक्ति में सेक्स उत्तेजना होती है तो इन काउपर ग्रंथियों से एक प्रकार का चमकीला, चिकना व गाढ़ा सा स्राव निकलता है जो लिंग के निचली ओर स्थित मूत्र व वीर्य नलिका को क्षारीय बना देता है, जिससे वीर्य के द्वारा प्रवाहित होने वाले शुक्राणु क्रियाशील हो जाते हैं। यही स्राव योनि की अम्लता को भी समाप्त कर देता है। जिससे वीर्य द्वारा स्खलित शुक्राणु सुरक्षित रहकर योनि का पूरा रास्ता पार करके स्त्री के शरीर में निर्मित डिम्ब से मिलने के लिए गर्भाशय तक पहुंच जाते हैं। यदि हम मानसिक रूप से सेक्स क्रिया का चिंतन करते हैं तो इस तरल पदार्थ के स्राव से लिंगमुण्ड गीला व चिकना हो जाता है। कामवासना के विषय में सोचने से इस तरल पदार्थ का स्राव होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, कुछ लोगों को इस तरल पदार्थ के बारे में जानकारी नहीं होती है, वे इसे अक्सर धातु रोग मान लेने का भूल कर बैठते हैं और भ्रमित होकर अपने मन को दुःखी कर लेते हैं।
अण्डकोष-
पुरुष के अंगों में यह सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह अंग पुरुष के पुरुषत्व का प्रमाण होता है और दूसरा यह है कि यह कोई शर्म के बजाए दबाने या छिपाने और केवल यौन सुख प्राप्त करने की कोई चीज है। इसका सबसे प्रमुख कार्य सेक्स हार्मोंन तथा शुक्राणुओं का निर्माण करना है। वैसे देखा जाए तो यह पुरुषों का सबसे प्रमुख अंग भी होता है क्योंकि यह शरीर गुहा के अंतिम भाग पर स्थित होता है। यह देखने में चमड़े के सिकुड़े हुए थैले के समान का वह भाग है जिसे स्क्रोटम कहते हैं। यह सबसे पहले शरीर के अंदर ही स्थित होता है लेकिन जन्म के समय यह छोटा स्क्रोटम के रूप में बाहर की ओर तैयार हो जाता है।
स्क्रोटम अंदर से दो भागों में बटा होता है। यह लिंग के अगल-बगल में नीचे की ओर लटके होते हैं। ये ठंड से सिकुड़ जाते हैं और उत्तेजना में ऊपर की ओर बढ़ जाते हैं। इसका बाहरी भाग देखने में छोटी-छोटी धारियों में खंडित-सा होकर (धारियों में बट-बटकर) मधुमक्खी के छत्ते का आकार ले लेता है। बहुत से मनुष्यों में बायां अंडकोष दायें से कुछ ज्यादा लटका रहता है। लेकिन दोनों ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर की ओर घूमते रहते हैं। यह सारा कार्य दो प्रकार की प्रणाली एक डांट्रस मांसपेशी (स्क्रोटम के अंदर) तथा दूसरा कीनस्टर मांसपेशी (अंडकोश से संलग्न) द्वारा संपादित होता है।
यह अंग इतना नाजुक और संवेदनशील होता है कि इस पर हल्की-सी चोट लगने पर अधिक दर्द होता है। व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है। जोर की चोट लगने पर उसकी मृत्यु तक हो सकती है। टेस्टिस के अंदर अधिक बारीक 300 नलिकाएं होती हैं, जिनमें शुक्राणुओं का निर्माण होता है। ये नलिकांए मिलकर इपिडियमीस नामक एक नलिका का निर्माण करती हैं। यह नली शुक्राणुओं को स्त्री की योनि में पहुंचाने का काम करते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार अंडकोष में शुक्राणु 35 डिग्री सी अर्थात 95 डिग्री एफ या सामान्य शरीर के तापमान से दो डिग्री नीचे के ताप पर ही जीवित रह सकता है। यदि तापमान इससे अधिक हो जाए तो पर्याप्त शुक्राणु नहीं बन पायेंगे और फिर पुरुष शुक्राणु पैदा करने लायक नहीं रहेगा, अर्थात वह किसी भी स्त्री को गर्भवती नहीं बना सकेगा। इसलिए बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत समय तक साइकिल चलाते रहने या तंग पैंट पहनने आदि से भी शुक्राणु के उत्पादन में हस्तक्षेप होने लगता है।
टेस्टिस के अंदर टेस्टोस्टेरॉन नामक हार्मोन का निर्माण होता है और इसी के कारण से पुरुष में पौरुष गुण आते हैं। यह हार्मोन वास्तव में शारीरिक मानसिक विकास का मूल स्रोत होता है। जब बच्चों के रक्त में टेस्टोस्टेरॉन काफी मात्रा में घुलने-मिलने लगता है तब वह तेज गति से बढ़ने लगेगा। इस हार्मोन की वजह से ही पुरुषों में मोटी तथा भारी आवाज, पौरुषशक्ति, दाढ़ी तथा मूंछ आदि आते हैं। यदि पुरुष के शरीर में इस हार्मोन का निर्माण होना बंद हो जाए तो वह संभोग क्रिया करने में असमर्थ हो जाएगा।
वैसे 14 वर्ष की आयु तक पुरुष में अंडकोषों की सक्रियता मंद रहती है। उसके बाद मस्तिष्क में स्थित पिट्रयूटरी ग्रंथि से एक ऐसा रसायन निकलने लगता है कि अंडकोष भी उससे प्रभावित बिना नहीं रह पाता। शुक्राणुओं का पैदा होना इसी सक्रियता का परिणाम है।
अंडकोषों द्वारा उत्पादित हार्मोन से व्यक्ति के शरीर में परिवर्तन नहीं होता और न ही इसकी वजह से उसकी भावनाओं में उथल-पुथल होता है। बल्कि इसकी वजह से जहां बालक में चंचलता घटती जाती है, वही गंभीरता का विकास होने लगता है और धीरे-धीरे ज्यादा चिन्तनशील होना शुरू होता जाता है। इस स्थिति में बोलना कम और काम करना ज्यादा होता है।
अंडकोषों द्वारा उत्पन्न हार्मोन से सेक्स की भावना जागने लगती है, इसलिए उसका आकर्षण स्त्री के प्रति होने लगता है। इस स्थिति में पुरुष स्त्री का प्यार पाने के लिए ललक में रहता है तथा उसके दिमाग में उसे पाने की चिंता लगी रहती है। जब पुरुष 30 से 32 के उम्र के आस-पास पहुंच जाता है तो अंडकोष पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है और तब कामोत्तेजना भी तेज हो जाती है।
शुक्राणु कोष –
यह दो होता है जो मूत्राशय के पीछे की ओर स्थित होते हैं। इसको सेमीनल वेसिकल्स भी कहते हैं। इसमें वह शुक्राणु जमा होते हैं जो टेस्टिकल से निकलते रहते हैं। इसकी नलिकाएं शुक्रनलिका से मिली होती हैं। शुक्राणु कोष से निकली नलिका एवं शुक्रनलिका मिलकर दोनों ओर एजाकुलेटरी डक्ट्स तैयार करते हैं। शुक्राणु कोष का सबसे प्रमुख कार्य एक विशेष प्रकार के द्रव्य को जमा करना है जो शुक्राणुओं को पोषण देने का काम करती हैं तथा इससे मिलकर वीर्य कुछ तरल हो जाता है।
शुक्राणु कोष ही शुक्राणुओं को आगे बढ़ने में गति प्रदान करता है, जब शुक्राशय में शुक्र अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं तो यह स्वप्नदोष द्वारा बाहर निकल जाता है। शुक्राशय एक प्रकार से सेफ्टी वॉल्व का काम करता है। शुक्र नलिकाओं की लम्बाई लगभग 18 इंच तथा मोटाई 1/7 इंच होती है।
शुक्राणु इतने छोटे होते हैं कि उनको आंखों से नहीं देखा जा सकता है। यह एक ओर से मोटे सिरे वाला और दूसरी ओर से लम्बी पूंछ वाला होता है। यह पूंछ के सहारे ही तैरते हुए छलांगें मारते रहता हैं। यह इतना छोटा होता है कि लगभग 1300 शुक्राणु एक साथ मिल जाए तो यह केवल डॉट चिन्ह के बराबर ही हो सकता है।
प्रोस्टेट ग्लैंड-
लिंग के पास त्रिकोणीय आकार की प्रोस्टेट ग्लैंड (पौरुष ग्रंथि) होती है। लिंग के अंदर एक मूत्र नलिका भी स्थित होती है। प्रोस्टेट ग्लैंड से एक प्रकार का तरल द्रव्य स्रवित होकर मूत्र नलिका में जाकर खुलती है जो वीर्य को एक विशेष प्रकार की गंध प्रदान करती है। प्रोस्टेट ग्लैंड का आंतरिक स्राव थायरॉयड, एड्रिनल और पिट्यूटरी के हार्मोन से संबंध है। इसकी वजह से ही प्रोस्टेट ग्लैंड की वृद्धि हो जाती है जिसके कारण से सेक्स की उत्तेजना तेज हो जाती है। इस स्थिति में संभोग की उत्तेजना इतनी अधिक भड़क उठती है कि व्यक्ति अपना होश खो बैठता है।
काउपर ग्लैंड्स –
यह लिंग के जड़ से दाईं और बाईं ओर प्रोस्टेट ग्लैंड के ठीक नीचे एक-एक की संख्या में मटर के दाने के समान आकार लिए पीले रंग की ग्रंथि होती है जिसे शिश्नमूल ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्दर एक प्रकार का हल्का सफेद, पारदर्शी तथा चिपचिपा पदार्थ स्रावित होता है और इसकी गंध मूत्र के समान होती है। जब पुरुष सेक्स की उत्तेजना में होता है तो मूत्रनली में से एक-दो बूंद यह स्राव के रूप में निकलकर मूत्रमार्ग को चिकना करने का काम करता है।
इस स्राव के कारण से मूत्रनली में लगे मूत्र के अंश निष्क्रिय हो जाते हैं। यह मूत्रनली में इतनी अधिक चिकनाहट पैदा कर देती है कि वीर्य मूत्रनली में बिना किसी रुकावट के तेज गति से आगे की ओर जाता है। जैसे ही पुरुष के दिमाग में सेक्स करने के लिए विचार आता है वैसे ही काउपर ग्लैंड अपना कार्य शुरु कर देती है। इस स्राव से कभी भी भयभीत और घबराना नहीं चाहिए।
वीर्य-
शुक्राणु तथा कई प्रकार की ग्रंथियों स्राव एक साथ मिलकर वीर्य का निर्माण करते हैं। इन ग्रंथियों से स्राव की रचना विशेष प्रकार की रासायनिक जटिलताओं से होती है। यही कारण है कि यदि बलात्कार के बाद अदालत में प्रस्तुत किये जाने वाले वस्त्र पर अगर वीर्य का धब्बा मिले तो रासायनिक जांच के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि यह गुनाहगार का वीर्य है या नहीं। वीर्य में पाए जाने वाले जो कीटाणु होते हैं, उन्हें शुक्राणु कहा जाता है। वीर्य को बहुत से लोग शुक्र नाम से भी जानते हैं। शुक्राशय में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। वीर्य शुक्र ग्रंथियों द्वारा उत्पन्न किये गये स्रावों का मिश्रण होता है। पुरुष के शरीर में वीर्य का निर्माण लगभग 13 से 14 वर्ष की आयु में शुरू हो जाता है लेकिन जब पुरुष 17 से 18 वर्ष का हो जाता है तो इसके निर्माण में और भी तेजी आ जाती है।
वीर्य गाढ़ा, चिपचिपा तथा सफेद रंग का पदार्थ होता है और जब कपड़े पर लग जाता है तो कपड़ा उस स्थान पर कड़ा पड़ जाता है और एक प्रकार धब्बा जैसा लगने लगता है।
पुरुषों के शरीर में कई कोष होते हैं जो गिने नहीं जा सकते हैं। इनमें से तो 46 क्रोमोजोम होते हैं, लेकिन शुक्रकोष (शुक्राणु स्पर्मसेल) में सिर्फ 23 ही क्रोमोजोम होते हैं। कोई भी शुक्रकोष जैसे ही स्त्री के डिम्ब में घुसते हैं वैसे ही डिम्ब के 23 क्रोमोजोम इसमें भी आ मिलते हैं और वह इस मामले में पूर्ण हो जाते हैं। अंडकोष के शुक्रकोष में लड़का या लड़की पैदा करने वाले X क्रोमोजोम और Y क्रोमोजोम दोनों ही हैं। इसलिए लड़का-लड़की पैदा करने का पूरा दायित्व तो अकेले अंडकोष का ही होता है।
शुक्रकोष पर अधिक ताप लगने से ये मर जाते हैं लेकिन ये अपनी लम्बी पूंछ के सहारे बड़ी तेजी से भागते हैं ये एक घंटे में 7 इंच का फासला तय कर लेते हैं जो इनके छोटे रूप के आकार के अनुसार बहुत लम्बी दूरी है। इनमें से किसी एक का नारी डिम्ब में प्रवेश भी कुछ कम साहसिक नहीं, क्योंकि डिम्ब की सतह सख्त होती है और खुद अत्यन्त कोमल। यह भी एक रहस्य ही है। शुक्रकोष में अंडकोषों का एक विशेष रसायन भी रहता है। इस रसायन को इन्जाइम्स कहते हैं। इंजाइम्स डिम्ब की कठोरता को तरल बना देता है और इससे कोमल शुक्रकोष को इसे भेदने में आसानी होती है।
यदि शुक्रकोषों को बाहर निकलने के अवसर नहीं मिले यानि पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए तो जानते हैं इससे क्या होगा? ये सब शुक्राणु बूढ़े होकर मर जायेंगे और ठीक इसी प्रकार यदि इनका जल्दी-जल्दी बर्हिमन (नष्ट) किया जाए तो ये पुष्ट नहीं हो पायेंगे और इस कारण से ये स्त्री के नारी डिम्ब को उर्वरित (ऊर्जावान) करने में समर्थ भी नहीं हो सकेंगे। उदाहरण के लिए यदि प्रतिदिन लगातार दो-चार बार मैथुन करते रहे तो इस स्थिति में ऐसा पुरुष स्त्री को गर्भधारित नहीं कर सकेगा।
ऐसा देखा गया है कि एक स्वास्थ्य पुरुष के वीर्यपात होने पर उसमें लगभग साठ करोड़ शुक्रकीट निकल जाते हैं। इस पूरे के पूरे वीर्य में केवल शुक्रकोष ही भरा नहीं होता बल्कि इसमें अन्य द्रव भी होते हैं। इस वीर्य में पौरुष ग्रंथि आदि से स्राव हुए द्रव्य पदार्थ आदि भी होते हैं, इन स्रावों के चलते ही शुक्रकोषों को सुरक्षा मिलती है। इनमें प्रोटीन, शक्कर और खनिज पदार्थ घुले-मिले होते हैं।
पुरुषों को अपने जननेन्द्रियों में कोई विकार होने से बचाने के लिए कुछ सुझाव-
• लिंगमुण्ड तथा उसके आगे की त्वचा से चिपचिपेदार ग्रीज की तरह का पदार्थ जमा होने लगता है, जिसको मैल कहते हैं। लिंगमुण्ड के पास जमा होने वाले इन मैल को हटाते रहना चाहिए तथा लिंगमुण्ड को साफ रखना चाहिए। इस मैल के जमा होने से न केवल उस स्थान पर सूजन होती है बल्कि खुजली भी होने लगती है और इससे दुर्गंध भी आती है। इसका रंग सफेद होता है तथा यह कभी-कभी लिंग कैंसर होने का कारण भी बन जाता है।
• छोटे बच्चे के लिंग को साफ पानी से धोते रहना चाहिए ताकि लिंगमुण्ड साफ रहे और मैल जमा न हो सके।
• मुसलमान लोग अपने लड़के के लिंगमुंड के ऊपरी पर्दे को बचपन में ही हटा देते हैं जिससे लिंग का मैल एक जगह जमा होने से बच जाता है जिसके फलस्वरूप लिंग का कैंसर नहीं होता है।
• वैसे तो लिंग का आकार कुछ टेढ़ापन लिए होता है जो उत्तेजना के स्थिति में भी कुछ-कुछ टेढ़ापन बना रहता है। बहुत से पुरुषों को यह भम्र होता है कि मेरा लिंग टेढ़ा क्यों है या यह मेरे द्वारा हस्तमैथुन करने के कारण ही हुआ है। ऐसी सोच वाले व्यक्तियों की इसी अज्ञानता व चिंता का फायदा कुछ नकली चिकित्सक उठाते हैं तथा इस स्वाभाविक टेढे़पन को ठीक करने के लिए तरह-तरह के तेल, पट्टी व लेप आदि बेचकर उनसे पैसा ठगते हैं।
• यह कहना पूरी तरह से गलत होगा कि स्त्री को चरमसुख देने में लिंग की लम्बाई का योगदान होता है क्योंकि वैज्ञानिक खोज से यह ज्ञात हो चुका है कि सेक्स क्रिया में लिंग की लम्बाई, मोटाई या अधिक वजन आदि का कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होता। हम आपको यह बताना चाहेंगे कि स्त्री का भग प्रदेश योनि के निचले हिस्से की एक तिहाई जगह पर स्थित होती है जो सामान्य रूप से विकसित लिंग की पहुंच से बाहर नहीं होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक कलात्मक उपक्रम के तरह ही सेक्स क्रिया में भी गुण का महत्व होता है, परिणाम का नहीं। अतः इन सबके प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि छोटे लिंग का पुरुष भी एक सफल वैवाहिक जीवन जी सकता है। इसलिए पुरुष को छोटे लिंग होने पर भी चिंता नहीं करनी चाहिए। वैसे हम आपको यह कहना चाहेंगे कि अपने से कम लम्बाई का जीवन साथी चुनना अधिक ठीक रहता है क्योंकि उसकी योनि की लम्बाई भी उसकी लम्बाई के अनुपात में ही होती है।
• बहुत से लोगों को यह भम्र होता है कि बड़े लिंग वाला पुरुष संभोग में दूसरे व्यक्ति से अधिक अपने पत्नी को संभोग क्रिया का सुख देने में सक्षम होता है। कुछ लोगों में यह भी धारणा होती है कि यदि लिंग में टेढ़ापन हो तो संभोग की शक्ति कम हो जाती है। लेकिन बहुत से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि यह सब धारणा बिल्कुल गलत है क्योंकि सामान्य तौर यह देखा गया है कि छोटे लिंग वाले मनुष्य में भी सेक्स क्रिया की उत्तेजना हो तो वह पूरी तरह से स्त्री को सन्तुष्ट कर सकता है। जिन लोगों का छोटा लिंग हो उन्हें कभी भी दुःखी नहीं होना चाहिए और न ही ठगी लोगों तथा हकीमों के चक्कर में पड़कर मालिश, लोशन और दवाओं से लिंग की लम्बाई बढ़ाने के कोशिश करें।
• कभी भी पुरुषों को यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि पुरुष नसबंदी से पुरुष के पुरुषत्व पर प्रभाव पड़ता है क्योंकि जब परिवार नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऑपरेशन किया जाता है तब शुक्राणुओं का उत्पादन प्रभावित होता है लेकिन हार्मोन का निर्माण होता रहता है।