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अशुभ माना जाता है अमावस्या में बच्चे का जन्म

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक महीने में एक अमावस्या आती है। जिस दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देखा उस दिन अमावस्या मनाई जाती है। ज्योतिषियों का कहना है कि अमावस्या वाली रात्रि में नकारात्मक ऊर्जा अधिक प्रभावशाली होती है। इस दिन जन्में बच्चे की कुंडली में दोष बताया जाता है क्योंकि कुंडली में सूर्य और चंद्रमा एक ही घर में होते हैं।

चंद्रमा को मन का स्वामी बताया जाता है तो वहीं सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह माना जाता है। ज्योतिषियों का कहना है कि कुंडली में चंद्रमा और सूर्य की स्थिति को देखकर ही जाना जा सकता है कि जातक को कितना यश, मान-सम्मान मिलेगा। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली के पहले भाव में सूर्य और चंद्र स्थित हो तो उसे अपने माता-पिता से सुख की प्राप्ति नहीं होती।

अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा और सूर्य दसवें भाव में स्थित है तो उसका शरीर मजबूत होता है। ऐसे व्यक्तियों में नेतृत्व करने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है। ऐसे लोग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं। ज्योतिषियों का कहना है कि जब सूर्य और चंद्रमा कुंडली के सातवें भाव में होते हैं तो ऐसा व्यक्ति जीवनभर अपने पुत्रों और स्त्रियों से अपमानित होता रहता है।

ऐसे व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं रहती। जिन लोगों की कुंडली के चौथे भाव में चंद्रमा और सूर्य होते हैं, उन लोगों को जीवन भर सुख से वंचित रहना पड़ता है। इस तरह के व्यक्ति गरीब और मूर्ख होते हैं।

अमावस्या को जन्में लोगों के जीवन में कई तरह की परेशानियां आती हैं। इन परेशानियों को दूर करने के लिए कई तरह के उपाय कर सकते हैं। जैसे कि जिन वस्तुओं का संबंध सूर्य और चंद्रमा से होता है उन वस्तुओं को दान करें। इस तरह के लोगों को हमेशा सफेद रंग का रूमाल साथ रखने और सफेद रंग के कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है। साथ ही गहरे रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए।

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