पिछले साल की शुरुआत में ‘काबिल’ में एक दृष्टिहीन की भूमिका निभाने के बाद ऋतिक रोशन अब जल्द ही बड़े पर्दे पर सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार की भूमिका निभाते नजर आएंगे. इस फिल्म में आनंद कुमार बनने के लिए ऋतिक रोशन काफी मेहनत कर रहे हैं. अगले साल गणतंत्र दिवस पर रिलीज होने वाली इस फिल्म की शूटिंग इसी साल जनवरी में शुरू हुई है. लेकिन आनंद कुमार की जिंदगी पर बन रही इस कहानी को एक फिल्म के रूप में बनने में पूरे 8 साल लगे हैं. इस फिल्म के बनने की पूरी कहानी बयां की.
गूगल कर जाना कौन हैं अनुराग बासु
आनंद कुमार ने बताया, ‘8 साल पहले मेरे पास फोन आया कि हम आप पर फिल्म बनाना चाहते हैं. मुझे लगा कोई मेरा साथ मजाक कर रहा है. हमने नाम पूछा तो वह बोले, संजीव दत्ता. हमने उनका नाम कभी सुना नहीं था. उन्होंने कहा, ‘हमारे साथ निर्देशक अनुराग बासु भी आना चाहते हैं. क्योंकि मैं फिल्में कम देखता था तो सच यह है कि मैंने अनुराग बासु का भी नाम नहीं सुना था. तब मैंने अनुराग बासु का नाम गूगल कर जाना कि वह कौन हैं.’ आनंद कुमार ने इस फिल्म में बहुत ज्यादा रुचि नहीं दिखायी.
‘पत्रकार’ बनकर किया था संपर्क
फिर लेखक संजीव दत्ता ने एक पत्रकार बनकर उनसे संपर्क करने की कोशिश की. आनंद कुमार ने बताया, ‘फिर उन्होंने मुझे एक पत्रकार बनकर संपर्क किया और एक अंग्रेजी अखबार का पत्रकार बन कहा कि वह मेरा इंटरव्यू करना चाहते हैं. फिर वह और अनुराग बासु मुझसे मिलने घर आए. उन्होंने कहा कि कहानी बहुत अच्छी है और हम इसपर फिल्म बनाना चाहते हैं. फिर उन्होंने ‘बर्फी’ बनायी, ‘जग्गा जासूस’ बनायी और वह उन फिल्मों में व्यस्त हो गए. लेकिन इस फिल्म के लेखक संजीव दत्ता लगातार इसपर काम करते रहे. पिछले लगभग डेढ़ साल में इस फिल्म के लिए बहुत बड़े-बड़े लोगों ने मुझसे संपर्क किया. तब मुझे लगा कि यह कहानी बहुत अच्छी है तभी लोग संपर्क कर रहे हैं. तब मैंने यह कहानी सुनी.’
वहीं जब ऋतिक रोशन द्वारा अपना रोल निभाने पर आनंद कुमार ने कहा, ‘इस फिल्म के लिए कई बड़े-बड़े एक्टर्स ने अपनी रुचि दिखायी. डायरेक्टर ने पूछा कि आप किसे चाहते हैं, तो मैंने कहा कि जिसमें सबसे ज्यादा जोश है, वहीं इस किरदार के लिए अच्छा रहेगा. हमें यह जोश ऋतिक रोशन में सबसे ज्यादा नजर आया. उन्होंने मेरे जैसा दिखने से लेकर बिहारी भाषा बोलने तक इस किरदार के लिए काफी मेहनत की है.
पापड़ बेचकर पढ़ाई की…
आनंद कुमार ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी मिल रही थी लेकिन मां ने कहा कि बेटे आप पढ़ाई करो. लिहाजा मां ने पापड़ बनाने शुरू किए और हम दोनों भाई पापड़ बेचते थे. इस तरह परिवार का गुजारा चलता था. बाद में लोगों के प्रोत्साहन पर बच्चों को गाइड करना शुरू किया और इस तरह कारवां बनता चला गया. हालांकि जब आनंद कुमार से पूछा गया कि प्रसिद्धि पाने के बाद क्या अब वह चुनाव भी लड़ेंगे तो मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि समाज में बदलाव के लिए जरूरी नहीं है कि राजनीति में ही जाएं. अपनी क्षमता से समाज की बेहतरी के लिए जो कर पा रहे हैं, उसी से संतोष है. इसके साथ ही जोड़ा कि राजनीति में धर्म, जाति, संप्रदाय के आधार पर भी आंका जाता है और अभी भले ही हमारे काम की सराहना हो रही है लेकिन राजनीति तो काजल की कोठरी है, वहां पर जाने के बाद व्यक्ति पर कई लांछन भी लग जाते हैं. इसलिए राजनीति में जाने का इरादा नहीं है.