गर्मी के दिन हैं और सूरज से आग बरस रही है। ऐसे में पानी के बिना कुछ पल भी रहना आपके स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में अक्सर हम और आप बोतलबंद पानी के अपने गले को तर करने के बारे में सोचते हैं। अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो, सावधान! क्योंकि आपकी यही सोच आपको नुकसान पहुंचा सकती है।
हालांकि अगर आप हिमाचल प्रदेश में हैं तो स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक बिसफेनोल केमिकल से तैयार होने वाली पानी की बोतलें अब आपके शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगी। प्रदेश सरकार द्वारा पानी की बोतलों पर प्रतिबंध लगाने से लाखों लोग अब गंभीर रोगों के शिकार होने से बच जाएंगे। महिलाओं को भी ब्रेस्ट कैंसर, गर्भपात आदि का सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही पुरुषों को कब्ज नहीं होगी और उनकी पाचन क्रिया भी बोतल के पानी के सेवन न करने से बेहतर हो जाएगी।
ज्ञात हो कि पानी की बोतलों का निर्माण बिसफेनोल नामक घातक केमिकल से किया जाता है। बोतल बनाने में इस्तेमाल कैमिकल हमारे शरीर में प्रवेश कर कई गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। पानी की बोतलों का इस्तेमाल अब शहर में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग कर रहे हैं। दूसरी ओर पानी की यह छोटी बोतलें पर्यावरण पर भी प्रतिकूल असर डाल रही है। पानी का सेवन करने के बाद इन खाली बोतलों को लोग इधर-उधर फेंक देते हैं। पानी की निकासी के लिए बनाई गई नालियों समेत शहरों में सीवरेज लाइनें भी इन बोतलों के कारण बंद हो रही हैं।
पेट की बीमारियों का खतरा
बोतल में बंद पानी के सेवन से बीपीए नाम का केमिकल पेट में पहुंचने पर पाचन क्रिया प्रभावित होती है इससे खाना हजम नहीं होता है। व्यक्ति को कब्ज व पेट में गैस की समस्या घेर लेती है।
ब्रेन के लिए घातक
प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी के सेवन से दिमाग के काम करने की शक्ति कम हो जाती है। समझने व किसी बात को याद रखने में व्यक्ति को परेशानी रहती है। कैंसर होने का खतरा धूप या अधिक तापमान से जब बोतल का पानी गर्म होता है तो इसके बनाने में इस्तेमाल केमिकल पानी में घुल कर हमारे शरीर के सेल्स पर बुरा प्रभाव डालता है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
गर्भपात का खतरा
बोतल का पानी पीने वाली अधिकतर महिलाओं को गर्भ ठहरने में परेशानी आती है। जबकि पुरुषों के स्पर्म काउंट को भी बोतल में बंद पानी कम करता है प्लास्टिक की बोतल को बनाने में केमिकल का प्रयोग किया जाता है। गर्म होने पर जब पानी का सेवन करते हैं तो केमिकल के तत्व पानी में घुलने से शरीर में पहुंच जाते हैं। इससे स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।
बोतल पुरानी होने पर भी इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। कब्ज, पेट गैस, कैंसर समेत अन्य बीमारियां बोतल बंद पानी के सेवन से होती हैं।
सुरेंद्र ठाकुर, मेडिसन विशेषज्ञ, क्षेत्रीय अस्पताल मंडी।
अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित स्टेट यूनिवर्सिटी की एक शोध रिपोर्ट में इसका दावा किया गया है। इसमें कहा गया है कि दुनियाभर से लिए गए बोतलबंद पानी के 93 फीसद नमूनों में प्लास्टिक के कण पाए गए। भारत में नई दिल्ली, चेन्नई, मुंबई और पटना समेत 19 जगहों से लिए गए सैंपल की भी जांच की गई। जिन बड़े ब्रांड के सैंपल की जांच की गई उनमें भी 5000 से अधिक माइक्रोप्लास्टिक कण मिले। शोधकर्ताओं के अनुसार, स्पेक्ट्रोस्कोपिक जांच के दौरान एक लीटर पानी की बोतल में औसत रूप से 10.4 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए।
क्वॉलिटी की जांच है जरूरी
वैसे तो हम सभी लोग पानी के लिए बोतल या खाना रखने के लिए प्लास्टिक लंच बॉक्स का इस्तेमाल करते हैं लेकिन क्या कभी हमने उन्हें पलटकर देखा है कि उनके पीछे क्या लिखा है? क्या इस पर कोई सिंबल तो नहीं बना हुआ है? दरअसल, अच्छी क्वॉलिटी के प्रोडक्ट पर सिंबल्स का होना जरूरी है। यह मार्क ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड जारी करता है और इससे पता लगता है कि प्रोडक्ट की क्वॉलिटी अच्छी है। इन सिंबल्स (क्लॉकवाइज ऐरो के ट्राइएंगल्स) को रीजन आइडेंटिफिकेशन कोड सिस्टम कहते हैं। इन ट्राइएंगल्स के बीच में कुछ नंबर्स भी होते हैं। इन नंबरों से ही पता चलता है कि आपके हाथ में जो प्रोडक्ट है, वह किस तरह के प्लास्टिक से बना है।