बॉलीवुड के सदाबहार एक्टर फारुख शेख का जन्म आज (25 मार्च) ही के दिन 1948 में हुआ था. साल 1977 से लेकर 1989 तक उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में खूब नाम कमाया. इसके अलावा साल 1999 से लेकर 2002 तक टीवी की दुनिया में उन्होंने अपनी एक अलग पहचान कायम की. फारुख शेख लॉ के स्टूडेंट थे और उनके पिता चाहते थे कि फारुख भी उनकी तरह वकील के तौर पर नाम कमाएं, लेकिन फारुख की रुचि इस पेशे से ज्यादा एक्टिंग में थी.
पहली फिल्म के लिए मिले थे 750 रुपये
अपने कॉलेज के दिनों में फारुख थिएटर में काफी एक्टिव रहे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थिएटर में उनकी बेहतरीन परफॉर्मेंस की बदौलत ही उन्हें 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘गर्म हवा’ में ब्रेक मिला. इस फिल्म के लिए उन्हें 750 रुपये फीस के तौर अदा किए गए. फारुख शेख मुंबई में लगभग छह साल तक संघर्ष करते रहे. आश्वसन तो सभी देते लेकिन उन्हें काम करने का अवसर कोई नहीं देता था. हालांकि इस बीच उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में काम करने का अवसर मिला लेकिन उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ.
फारुख शेख को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने समानांतर सिनेमा के साथ ही कमर्शियल सिनेमा में भी दर्शकों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई. ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘उमराव जान’, ‘कथा’, ‘बाजार’, ‘चश्म-ए-बद्दूर’, ‘क्लब 60’ और कई बेहतरीन फिल्मों में अपने अभिनय से लोगों का दिल जीतने वाले फारुख भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में आज भी जेहन में ताजा हैं. फारुख शेख ने सत्यजीत रे, मुज्जफर अली, ऋषिकेश मुखर्जी और केतन मेहता जैसे निर्देशकों के साथ काम किया.
फारुख शेख की किस्मत का सितारा निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा की 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘नूरी’ से चमका. बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने न सिर्फ उन्हें बल्कि अभिनेत्री पूनम ढिल्लों को भी ‘स्टार’ के रूप में स्थापित कर दिया. वर्ष 1981 में फारुख शेख के सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘उमराव जान’ प्रदर्शित हुई. मिर्जा हादी रूसवा के मशहूर उर्दू उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में उन्होंने नवाब सुल्तान का किरदार निभाया जो उमराव जान से प्यार करता है. अपने इस किरदार को फारुख शेख ने इतनी संजीदगी से निभाया कि दर्शक उसे भूल नहीं पाए हैं.
वर्ष 1982 में फारुख शेख के सिने करियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘बाजार’ प्रदर्शित हुई. सागर सरहदी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में उनके सामने कला फिल्मों की दिग्गज स्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेता थे. इसके बावजूद वह अपने किरदार के जरिए दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे. वर्ष 1983 में फारुख शेख को एक बार फिर से सई परांजपे की फिल्म ‘कथा’ में काम करने का अवसर मिला. फिल्म की कहानी में आधुनिक कछुए और खरगोश के बीच रेस की लड़ाई को दिखाया गया था. इसमें फारुख शेख ने खरगोश की भूमिका में दिखाई दिए, जबकि नसीरूद्दीन शाह कछुए की भूमिका में थे. इस फिल्म में फारुख शेख ने कुछ हद तक नकारात्मक किरदार निभाया. इसके बावजूद वह दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे.
फारुख शेख के साथ दीप्ति नवल की ऑनस्क्रीन जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. यह जोड़ी काफी हिट रही. दीप्ति नवल के साथ फारुख शेख ने करीब 7 फिल्मों में काम किया जिनमें ‘चश्म-ए-बद्दूर’, ‘कथा’, ‘साथ-साथ’, ‘किसी से ना कहना’, ‘रंग बिरंगी’ जैसी फिल्में शामिल थीं. 90 के दशक में भी फारुख कुछ एक फिल्मों में नजर आए जिनमें ‘सास, बहू और सेंसेक्स’, ‘लाहौर’ और ‘क्लब 60’ शामिल हैं. ‘लाहौर’ में उनके अभिनय के लिए उन्हें साल 2010 में बेस्ट सर्पोटिंग एक्टर के रोल के लिए नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया.
2014 में रिलीज हुई ‘यंगिस्तान’ फारुख शेख की आखिरी फिल्म थी. फारुख शेख टीवी शो ‘जीना इसी का नाम है’ के लिए मशहूर हुए. इस शो में उन्होंने कई जानी मानी हस्तियों के इंटरव्यू किए. 28 दिसंबर 2013 को फारुख शेख दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को अलविदा कह गए.