फिल्मों को लेकर विवाद होता कोई नई बात नहीं है। कई बार ऐसा हो जाता है कि किसी फिल्म के विषय या उसमें दिखाए गए दृश्यों को लेकर लोगों को आपत्ति होती है और वह इसका विरोध शुरू कर देते हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब फिल्म के विरोध नहीं बल्कि उस फिल्म को देखने के पागलपन के चलते भीड़ ने भयानक रूप ले लिया और बात इस हद तक बढ़ गई कि दो मासूम बच्चों की जान चली गई। चलिए यह किस्सा आपको अब विस्तार से बताते हैं। 1970 में एक फिल्म रिलीज हुई थी जिसका टाइटल था “जॉनी मेरा नाम”। फिल्म का डायरेक्शन विजय आनंद (गोल्डी) साहब ने किया था।
कास्ट की बात करें तो इसमें देव आनंद, हेमा मालिनी, प्राण और प्रेम नाथ जैसे सितारों ने काम किया था। इस फिल्म को उस वक्त इतना ज्यादा पसंद किया गया था कि यह उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई थी। फिल्म के कुछ सीन्स की शूटिंग जमशेदपुर और उसके आस-पास के इलाकों में हुई थी। यही वजह थी कि जब फिल्म को रिलीज किया गया तो उस इलाके में फिल्म देखने को लेकर एक अजब सा दीवानापन सामने आया। लोग देर रात से ही फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो जाते थे और कभी-कभी तो हालत इतनी बुरी हो जाती थी कि पुलिस को बुला कर भीड़ को काबू कराना पड़ता था।
एक रोज भीड़ इस हद तक बेकाबू हो गई कि लोगों ने थिएटर के दरवाजों को बेइंतेहां पीटना और धक्का-मुक्की करना शुरू कर दिया। बात बढ़ते-बढ़ते लोगों में झगड़े तक पहुंच गई। थिएटर वालों ने पुलिस को फोन किया और पुलिस ने आकर लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। हालांकि जब लाठीचार्ज से भी बात नहीं बनी तो पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इस फायरिंग में दो मासूम बच्चों की जानें चली गईं। मामला बिगड़ गया और सिनेमाघर को एक हफ्ते के लिए बंद करना पड़ा। इस थिएटर का नाम था ‘नटराज टॉकीज’। जब दोबारा थिएटर खुला तो कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच दोबारा इसी फिल्म को रिलीज किया गया और तब स्क्रीनिंग हुई।