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जानिए पद्म विभूषण डॉक्टर हरगोविंद के जीवन से जुड़ी ये खास बातें: बर्थडे स्पेशल

गूगल ने मंगलवार को अपने डूडल के जरिए भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉक्टर हरगोविंद खुराना को श्रद्धांजलि अर्पित की है। 9 जनवरी डॉक्टर हरगोविंद खुराना की जन्मतिथि है इस मौके पर गूगल ने भी उन्हें याद किया है। विज्ञान के क्षेत्र में उनका योगदान अमूल्य है। डॉक्टर हरगोविंद खुराना को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 1968 में फिजियोलॉजी में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण, विलियर्ड गिब्स अवार्ड, अलबर्ट लास्कर अवार्ड और गैर्डनर फाउंडेशन इंटरनैशनल अवार्ड जैसे ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें।

डॉ. खुराना ने जीन इंजिनियरिंग (बायॉ टेक्नॉलोजी) विषय की बुनियाद रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1950 में यह स्थापित किया गया था कि जेनिटक इंफॉर्मेशन DNA से RNA, प्रोटीन में ट्रांस्फर होती है। जेनेटिक कोड की इस भाषा को समझने और उसकी प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका प्रतिपादित करने के लिए 1968 में डॉ. खुराना को चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हें यह पुरस्कार दो और अमेरिकी वैज्ञानिकों डॉ. राबर्ट होले और डॉ. मार्शल निरेनबर्ग के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया था। इन तीनों ही वैज्ञानिकों का DNA अणु की संरचना को स्पष्ट करने में अहम भूमिका थी और साथ ही यह भी बताया था कि DNA प्रोटीन्स का संश्लेषण किस प्रकार करता है।

डॉ. खुराना का जन्म रायपुर में 9 जनवरी साल 1922 को हुआ था। उनके पिता एक पटवारी थे। गरीबी के बावजूद भी डॉ. हरगोविंद के पिता ने उनकी पढ़ाई में कोई समझौता नहीं होने दिया। डॉ. खुराना जब 12 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के निधन के बाद उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का पूरा जिम्मा संभाला लिया था। पंजाब विश्वविद्यालय से 1943 में उन्होंने बी.एस-सी. (आनर्स) और 1945 में एम.एस-सी. (ऑनर्स) किया। इसके बाद डॉ. खुराना स्कॉलरशिप पर उच्च शिक्षा हासिल करने इंग्लैंड चले गए। वहीं उन्होंने लिवरपूल यूनिवर्सिटी में रिसर्च की और डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय भारत में बिताया और फिर प्रोटीन और न्यूक्लिक एसिड पर रिसर्च के लिए वापस कैंब्रिज चले गए। जीन इंजीनियरिंग (बायो टेक्नोलॉजी) विषय पर डॉ. खुराना ने इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड और कनाडा की यूनिवर्सिटीज में रिसर्च किया।

विज्ञान में अहम योगदान को लेकर उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान भी दिए गए हैं। इनमें प्रमुख 1968 में दिया गया नोबेल पुरस्कार है। इससे पहले उन्हें 1958 में कनाडा के मर्क मैडल से सम्मानित किया गया था। 1960 में उन्हें कैनेडियन पब्लिक सर्विस ने स्‍वर्ण पदक; 1967 में डैनी हैनमैन पुरस्‍कार;1968 में लॉस्‍कर फेडरेशन पुरस्‍कार और लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्‍कार और 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। 9 नवंबर 2011 को डॉ खुराना का निधन हो गया था।

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