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CWG 2018, Hockey : दो बार से चांदी का रंग है, इस बार फाइनल में गोल्ड जीतने की उम्मीद

इस दौरान चर्चा में हॉकी का जिक्र आता है. क्या इस बार के गेम भारतीय हॉकी को वापस ऊंचाइयां देने वाले साबित होंगे? हर बार याद किया जाता है ध्यानचंद से लेकर रूप सिंह, बलबीर सिंह, हरबिंदर सिंह, अशोक कुमार, मोहम्मद शाहिद, परगट सिंह से लेकर धनराज पिल्लै तक. दादी-नानी की तरह तमाम कहानियां सुनाई जाती हैं कि वो भी क्या दिन थे.

अभी उसी तरह का समय है. 2018 के तीन महीने बीत चुके हैं. बाकी बचे नौ महीनों में भारतीय हॉकी पर बार-बार चर्चा होगी. चाहे वो गोल्ड कोस्ट में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की वजह से हो, एशियन गेम्स की या फिर वर्ल्ड कप की. कोच श्योर्ड मरीन्ये के लिए यही परीक्षा का समय है. वो हीरो बन सकते हैं. या दिसंबर में वर्ल्ड कप के बाद उनकी विदाई की बातें हो सकती हैं. भारतीय हॉकी में जिस तरह फैसले होते हैं, उसमें हीरो का तो पता नहीं, लेकिन बाहर होने का फैसला और पहले भी हो सकता है, अगर टीम खराब प्रदर्शन करती है.

उम्मीद है कि ऐसा नहीं होगा. वैसी ही उम्मीद जो 1980 के ओलिपिंक गोल्ड जीतने के बाद से बार-बार धोखा देती रही है. लेकिन यह भी सही है कि 2012 के लंदन ओलिंपिक में 12वां स्थान पाने के बाद से अब तक टीम इंडिया ने काफी कुछ पाया है. चाहे वो वर्ल्ड लीग के मेडल हों या चैंपियंस ट्रॉफी का. या फिर पिछले एशियाड का गोल्ड हो, जिसकी वजह से रियो ओलिंपिक में सीधे एंट्री मिल गई थी. वो टेरी वॉल्श से लेकर रोलंट ओल्टमंस का दौर था. अब मरीन्ये हैं. वॉल्श और ओल्टमंस टॉप कोच माने जाते हैं. मरीन्ये उस मामले में युवा हैं. लेकिन यकीनन वॉल्श और ओल्टमंस के बनाए एक सिस्टम के साथ उन्हें अपनी चीजें लागू करने में आसानी होगी

फिटनेस के मामले में भारत की यह टीम दुनिया की मजबूत टीमों से टक्कर ले सकती है. सही ट्रेनिंग के मामले में ले सकती है. प्रोफेशनल अप्रोच के साथ टीम तैयारी कर रही है. ऐसे में अगर इस बार उम्मीदें हैं, तो उसे महज इमोशंस के साथ नहीं जोड़ सकते. 1998 में हॉकी शामिल होने के बाद से हर बार ऑस्ट्रेलिया के ही हिस्से गोल्ड आया है. पिछले दोनों बार यानी 2010 और 2014 में भारत को सिल्वर मिला है. यही दो पदक भारत के नाम हैं. 2010 में ऑस्ट्रेलिया 8-0 से जीता था और 2014 में 4-0 से. अंतर का आधा होना भारत के बेहतर होने का संकेत था. यह संकेत कि दोनों टीमों के बीच गैप कम हो रहा है. ऑस्ट्रेलियन टीम गोल्ड का सिक्सर मारने को तैयार है. वही फेवरिट है. यहां पर फेवरिट टीम को हराकर अगर गोल्ड जीता, तो अगल समय के लिए उम्मीदें बहुत बढ़ जाएंगी. मरीन्ये के लिए अब तक की शायद यह सबसे बड़ी कामयाबी होगी.

मरीन्ये का सफर एशिया कप से शुरू हुआ था, जहां भारत चैंपियन बना. इसके बाद वर्ल्ड हॉकी लीग में कांस्य जीता. फिर न्यूजीलैंड में चार देशों के टूर्नामेंट के दो लेग हुए. दोनों में भारत फाइनल में पहुंचा और बेल्जियम से हारा. सुल्तान अजलन शाह कप में पांचवां स्थान जरूर निराशा की बात थी. लेकिन उसमें अगर एक मैच का नतीजा अलग होता तो भारत पोडियम फिनिश कर सकता था. दूसरा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वहां तमाम नए खिलाड़ियों को आजमाया गया था. ऐसे में लगता है कि एक बार फिर भारत-ऑस्ट्रेलिया फाइनल दिख सकता है. लेकिन क्या दिल्ली और ग्लास्गो के सिल्वर को ऑस्ट्रेलियन धरती यानी गोल्ड कोस्ट में गोल्ड बनाया जा सकता है?

टीम को लेकर मरीन्ये ने कुछ दिलचस्प फैसले किए हैं. सरदार सिंह का बाहर रहना तय सा लग रहा था. हालांकि इसे लेकर हॉकी सर्किल में अलग-अलग राय है. तमाम लोग ऐसे हैं, जो मानते हैं कि जिस तरह आखिरी के कुछ साल में राजिंदर सिंह सीनियर ने धनराज पिल्लै का इस्तेमाल किया था, वैसे ही सरदार का किया जा सकता है. धनराज को विड्रॉन फॉरवर्ड खिलाया जाता था. वहां से वो मिड फील्ड और फॉरवर्ड लाइन को जोड़ने का काम करते थे. मरीन्ये ने ऐसा करने के बजाय विवेक सागर को मौका दिया है. इस तरह के हाई प्रोफाइल इवेंट में मौका देना साहसिक फैसला है. खासतौर पर जब इसके लिए सरदार या बिरेंद्र लाकड़ा को बाहर बिठाना पड़े. विवेक ने चार देशों के टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था. लेकिन फुल सीनियर टीम के साथ उनका पहला टूर्नामेंट होगा.

भारत के ग्रुप में इंग्लैंड, पाकिस्तान, मलेशिया और वेल्स हैं. पहला मैच ही पाकिस्तान से है. भारत-पाकिस्तान मैच का रोमांच हमेशा ही होता है. इस बार अहमियत और बढ़ जाएगी, क्योंकि अब उनके पास रोलंट ओल्टमंस हैं, जो चंद महीने पहले भारत के कोच थे. पाकिस्तान के खिलाफ पिछले छह मैच भारत ने जीते हैं. लेकिन यह भी सच है कि इनमें से चार में ओल्टमंस कोच थे. उन्हें पता है कि टीम इंडिया कैसे खेलेगी. हालांकि इन सबके बावजूद सबसे अहम मैच इंग्लैंड के खिलाफ होने की उम्मीद है. इंग्लैंड टीम कभी फाइनल में नहीं पहुंची है. लेकिन ग्रुप में भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा वही है.

तीसरी टीम मलेशिया है, जो भारत को बीच-बीच में झटके देती है. हालांकि पिछले तीन मैच हमने जीते हैं. सुल्तान अजलन शाह कप में भी भारत ने 5-1 से जीत दर्ज की थी. उसके बाद वेल्स है, जिसके खिलाफ अपना बेस्ट खेलने पर हमें आसानी से जीतना चाहिए, भारतीय टीम की में गुरजंत सिंह, मनदीप सिंह और दिलप्रीत सिंह हैं. इनके साथ आकाशदीप का स्किल और एसवी सुनील की रफ्तार टीम के पास है. ललित उपाध्याय भी टीम का हिस्सा हैं. मिड फील्ड में चिंगलेनसना सिंह, सुमित और विवेक सागर प्रसाद हैं. साथ में कप्तान मनप्रीत तो हैं ही.

टीम – गोलकीपर – पीआर श्रीजेश, सूरज करकेरा. डिफेंडर – रूपिंदर पाल सिंह, हरमनप्रीत सिंह, वरुण कुमार, कोथाजीत सिंह, गुरिंदर सिंह, अमित रोहिदास. मिडफील्डर – मनप्रीत सिंह, चिंगलेनसना सिंह, सुमित, विवेक सागर प्रसाद. फॉरवर्ड – आकाशदीप सिंह, एसवी सुनील, गुरजंत सिंह, मनदीप सिंह, ललित उपाध्याय, दिलप्रीत सिंह.

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