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सचिन और पूर्व हॉकी कप्तान दिलीप टिर्की का सफर एक साथ शुरू हुआ था

भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और बीजू जनता दल के कप्तान दिलीप टिर्की और सचिन एक साथ अप्रैल 2012 में राज्य सभा के लिए चुने गए थे. व्यस्तता के कारण सचिन ने शपथ दो महीने बाद ली. लेकिन तब तक टिर्की सम्मानितों से इस सदन में अपनी मौजूदगी का एहसास करवा चुके थे. 1995 से इंटरनेशनल हॉकी करियर शुरू करने वाले टिर्की को हमेशा अपनी जिम्मेदारी बहुत गंभीरता से निभाने के लिए जाना जाता है.

सचिन और टिर्की दोनों ही इस महीने राज्यसभा में अपना कार्यकाल खत्म कर रहे हैं. उनके पूरे कार्यकाल को देखें तो आदिवासी इलाकों से कड़ी चुनौतियों का सामना करके इस मुकाम तक पहुंचे टिर्की ने उस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया जो उन्हें बतौर एक खिलाड़ी दी गई थी.

सचिन के पास नाकामी पर अपनी सफाई देने के कई कारण हो सकते हैं और उनके चाहने वाले उन्हें आंख बंद करके मान भी लेंगे. लेकिन पांच सालों में राज्यसभा में महज 8 फीसदी के करीब मौजूदगी मास्टर ब्लास्टर से कई सवाल करती है.

सचिन ने अपने कार्यकाल के 400 संसद सत्रों में महज 29 में ही हिस्सा लिया है. दूसरी तरफ 94 फीसदी उपस्थिति दर्ज करने वाले टिर्की ने राज्यसभा के लिए अपने चयन के साथ पूरा न्याय किया है.

सचिन ने इन पांच सालों में महज 22 सवाल पूछे और उनमें से सिर्फ दो खेलों के करीब थे. सचिन योग और खेलों को पाठ्यक्रम का हिस्सा देखना चाहते थे. रोचक यह है कि 2016 में उन्होंने मुंबई के कई रेलवे स्टेशनों पर एकमात्र और तंग ओवरब्रिज होने के कारण खतरे के बारे में संसद में सवाल किया था. पिछले साल सितंबर में एलफिन्स्टन रेलवे स्टेशन के ब्रीज पर भगदड़ में 22 लोगों की जान चली गई. लेकिन सचिन सरकार के खिलाफ यह कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाए कि उन्होंने अपने सवाल से मार्फत सरकार को संभावित खतरे को लेकर अलर्ट किया था.

2004 ओलिंपिक में देश की कप्तानी कर चुके टिर्की की लिस्ट में नौकरियां पैदा करने, पत्रकारों पर हमले, दिल्ली में बढ़ते अपराध और कोयले की खानों में होने वाली मौतों जैसे कई गंभीर मुद्दों के अलावा खेलों पर भी लगातार सवाल हैं. सांसद को मिलने वाले फंड को खर्च करने के मामले में भी टिर्की सचिन से कहीं कामयाब रहे.

टिर्की ने अपने फंड से एंबुलेंस से लेकर उड़ीसा के ट्राइबल एरिया में खिलाड़ियों के लिए हॉकियों और खेलने के लिए मैदान पर अपना पूरा फोकस रखा और पांच साल बाद वह खुद से संतुष्ट नजर आते हैं.‘मुझे जो मौका मिला था, मैंने पूरा इस्तेमाल किया. आप मेरे इलाके में जाइए और लोगों से बात कीजिए. आप को अंदाजा हो जाएगा कि मैंने कोई फंड खर्चने का कोई मौका जाया नहीं जाने दिया.’

सचिन के मामले में फंड के इस्तेमाल को लेकर कहानी अलग है. पहले तीन साल तक तो सचिन ने एक भी पैसा खर्च नहीं किया. उस समय इस लेखक के पूछे जाने पर सचिन ने कहा था कि व्यस्त होने के कारण वह फंड का इस्तेमाल नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने इस पर काम शुरू किया है.

सचिन के अपनी कर्मभूमि ने नाम पर मुंबई के बांद्रा इलाके को चुना था लेकिन सांसद देश के किसी भी हिस्से में अपने फंड का इस्तेमाल कर सकते हैं. अच्छी बात यह रही कि लगातार आलोचनाओं के बाद सचिन ने आंध्रप्रेदश के निल्लौर जिले के पुट्टामराजू गांव को गोद लेने का फैसला किया.

खबरें छपी हैं कि इस गांव में अच्छी सड़कें हैं, बत्ती 24 घंटे आती है और हर घर में शौचालय है. यकीनन बतौर देर से ही सही बतौर राज्य सभा सांसद सचिन की यह एकमात्र उपलब्धि कही जा सकती है.

एक नहीं शायद दो, क्योंकि मास्टर ब्लास्टर ने राज्यसभा का 86.23 लाख का अपना पूरा वेतन प्रधानमंत्री राहत कोष में दान कर दिया है. लेकिन जब भी भविष्य में राज्यसभा के रिकॉर्ड खंगाले जाएंगे, टिर्की का स्कोर सचिन से ज्यादा ही लिखा होगा.

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