उच्चतम न्यायालय बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत वरिष्ठ भाजपा नेताओं के खिलाफ षड्यंत्र के आरोपों की बहाली की मांग वाली याचिका पर आज (19 अप्रैल) को अपना फैसला सुना सकता है। न्यायमूर्ति पी सी घोष और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की पीठ फैसला सुना सकती है। छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे को गिराने से संबंधित दो मामले हैं। पहला मामला अज्ञात कारसेवकों से जुड़ा है जिसकी सुनवाई लखनऊ की एक अदालत में चल रही है, वहीं दूसरा सेट रायबरेली की एक अदालत में वीवीआईपी लोगों से जुड़े मामले का है। पीठ ने छह अप्रैल को संकेत दिया था कि वह रायबरेली से मामले को लखनऊ की अदालत में स्थानांतरित करके मामलों के दो सेटों की संयुक्त सुनवाई का आदेश दे सकती है।
पीठ ने यह भी कहा था कि चूंकि 25 साल गुजर चुके हैं, इसलिए वह न्याय के हित में दिन-प्रतिदिन के आधार पर समयबद्ध सुनवाई का आदेश देने पर विचार करेगी जिसे प्राथमिकता के साथ दो साल में पूरा किया जाएगा। आडवाणी और जोशी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने संयुक्त सुनवाई के प्रस्ताव का और उनके मामले को रायबरेली से लखनऊ को स्थानांतरित करने का पुरजोर विरोध किया था।
सीबीआई ने साफ किया था कि वह वीवीआईपी आरोपियों पर मुकदमे के मुद्दे पर कोई दलील नहीं दे रही बल्कि खुद को उनके खिलाफ षड्यंत्र के आरोप को बहाल करने तक सीमित रख रही है।
शीर्ष अदालत ने पहले आडवाणी, जोशी, उमा भारती और 10 अन्य लोगों के खिलाफ षड्यंत्र के आरोपों को हटाने के खिलाफ अपील का अध्ययन करने का फैसला किया था। दोनों प्राथमिकियों को मिलाने का आरोपियों के वकील ने इस आधार पर विरोध किया था कि दोनों मामलों में आरोपी के तौर पर विभिन्न लोग हैं, जिनमें सुनवाई दो अलग अलग जगहों पर अग्रिम स्तर पर है। उनका विचार है कि संयुक्त सुनवाई से नये सिरे से प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।
मामले में आडवाणी, जोशी और उमा भारती समेत 13 आरोपियों के खिलाफ षड्यंत्र के आरोपों को वापस ले लिया गया था, जिसमें सुनवाई रायबरेली की एक विशेष अदालत में चल रही है।