अत्यंत तनाव में आत्महत्या करने के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले और मानसिक रोगों के उपचार को ‘संस्थागत’ के बजाय ‘मरीज और समुदाय’ केंद्रित बनाने के प्रावधान वाले विधेयक को सोमवार को संसद ने मंजूरी दे दी। लोकसभा ने मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक, 2016 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी जिसे राज्यसभा आठ अगस्त 2016 को पहले ही स्वीकृति दे चुकी है।
मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक, 2016 पर लोकसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने कहा कि 1987 का पुराना कानून संस्था आधारित था लेकिन नये विधेयक में मरीज को और समाज को उसके इलाज के अधिकार प्रदान किये गये हैं और यह ‘मरीज’ केंद्रित है।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक के लागू होने के बाद आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर माना जाएगा और यह केवल मानसिक रग्णता की श्रेणी में आएगा।
नड्डा ने कहा कि विधेयक में किसी भी स्वस्थ और भली स्थिति वाले व्यक्ति को पहले ही यह दिशानिर्देश देने का अधिकार दिया गया है कि ईश्वर न करे कि भविष्य में उसे कोई मानसिक परेशानी हो तो उसका इलाज कैसे होगा, उसे कौन सी सुविधाएं दी जाएंगी, यह सब तय करना उसका अधिकार होगा। इसके अलावा पहले ही नामित (नॉमिनी) तय करने का अधिकार भी विधेयक का प्रगतिशील प्रावधान है।
नड्डा के मजाकिया अंदाज पर सांसदों को आयी हंसी
उन्होंने इसे सर्वाधिक प्रगतिशील मानसिक स्वास्थ्य विधेयकों में से एक बताते हुए कहा, ‘इस विधेयक के बाद राज्य मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को लागू करने के लिए बाध्य होंगे और व्यक्ति को इलाज का अधिकार मिलेगा।’ नड्डा ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘आज हम सदन में जितने सदस्य बैठे हैं, मानसिक हालत में ठीक हैं। लेकिन कल भगवान न करे, किसी के साथ कुछ हो जाए तो उसे आज ही यह ताकत मिल जाएगी कि वह अग्रिम दिशानिर्देश दे सके।’ इस पर सदन में सदस्यों की हंसी सुनाई दी।
विधेयक को 120 से ज्यादा संशोधनों के साथ पारित किया गया है। इस संबंध में नड्डा ने कहा कि संभवत: यह विधेयक सबसे ज्यादा संशोधनों के साथ हमने स्वीकार किया और इसमें स्थाई समिति की लगभग सभी सिफारिशों को हमने माना है।
नड्डा के अनुसार विधेयक में मानसिक रोग से पीड़ित लोगों के अधिकारों पर जोर दिया गया है। ऐसे लोगों को विभिन्न प्रकार के अधिकार मुहैया कराने के प्रावधान विधेयक में किए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस बात पर जोर दिया गया है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के साथ क्रूर आचरण नहीं हो। नड्डा ने कहा कि विधेयक पर किसी भी राजनीतिक दल के सदस्य ने विरोध नहीं जताया है और उसमें और अधिक सुधार के सुझाव दिये हैं। हमने सभी के विचारों को शामिल करने का प्रयास किया है।
उन्होंने कहा कि विधेयक में समुदाय के अंदर देखभाल करने वाले लोगों :केयर गिवर्स: पर भी ध्यान दिया गया है जो पहले नहीं होता था।स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि विधेयक में यह भी प्रावधान रखा गया है कि इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थरेपी :ईसीटी: यानी बिजली के झटके बिना एनस्थीशिया के नहीं दिये जा सकते और नाबालिग को कतई नहीं दिये जा सकते। यह पद्धति बहुत अमानवीय थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहन्स) को मेंटर मानकर देश में ऐसे और संस्थानों का विकास किया जाएगा।
हमने बजट अनुमान से ज्यादा खर्च किया : नड्डा
स्वास्थ्य क्षेत्र में कम बजट की सदस्यों की चिंताओं पर स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि मैं इस भ्रम को दूर करना चाहता हूं कि धन की कमी है। पिछले दो साल में मैंने इस भ्रम को तोड़ने का प्रयास किया है। हमने बजट अनुमान से ज्यादा खर्च किया है।
उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए धन की कमी नहीं होने दी जाएगी। मानसिक रोगों के संबंध में भी फंडिंग भी होगी और प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।’नड्डा ने यह भी कहा कि अब मानसिक रोगियों का बंध्याकरण (स्टर्लाइलेशन) नहीं किया जाएगा और उनके स्वास्थ्य तथा साफ-सफाई संबंधी देखरेख की चिंता संस्थान की जिम्मेदारी होगी।
उन्होंने साफ किया कि अत्यधिक शराब सेवन और मादक पदार्थों के सेवन को मानसिक रग्णता की श्रेणी में रखा गया है जैसा कि कुछ सदस्यों ने मांग की थी। नड्डा ने कहा कि देश में इस कानून के आने के साथ मानसिक स्वास्थ्य ढांचे को और अधिक मजबूत किया जाएगा और आज का दिन ऐतिहासिक है जहां अगर ‘सबका साथ होगा तो भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विकास हो सकेगा।’