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किसकी उपलब्धि

किसकी उपलब्धि
मोदी के तीन साल एक तैयार पिच पर अच्छी बैटिंग का उदाहरण हैं और कुछ नहीं। अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने के दिन ही मोदी ने एशिया के सबसे बड़े लंबे पुल का उद््घाटन किया, जिसकी नींव कांग्रेस के शासनकाल 2011 में रखी गई थी। बात अगर नोटबंदी की करें तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अब तक वापस आए नोटों की गिनती बताने से डर रहा है क्योंकि सारे नोट वापस आ गए हैं। यूपीए सरकार ने ही ‘आधार’ की शुरुआत की जो आज राजग सरकार की सफलता की कुंजी बन गई है।
आज निर्मल गंगा जैसे अभियान का नाम बदल कर नमामि गंगे कर दिया गया है। स्वच्छता के नाम पर शौचालय निर्माण की पहल निश्चित तौर पर अच्छी है लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें धांधली हो रही है। जिसकी निगरानी होनी चाहिए। उज्ज्वला योजना मोदी सरकार की सबसे सफल योजना में से एक साबित हुई है, जिसे लोगों ने महसूस भी किया है। कुल मिला कर मोदी सरकार की सफलता एक तैयार माहौल को अच्छी तरह पेश करने की कहानी है और कुछ नहीं।
’समीर कुमार ठाकुर, नई दिल्ली
न्याय की भाषा
लंबित मुकदमों के बढ़ते बोझ के कारण हमारे देश की अदालतों से त्वरित न्याय मिल पाना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है। अंग्रेजों की बनाई न्याय-व्यवस्था अभी तक ज्यों की त्यों चल रही है। भारत की अदालतों में तीन-चार करोड़ मुकदमे तीस-तीस लटके पड़े हुए हैं! यहां न्याय में देरी तो होती ही है, न्याय भी ऐसा होता है कि मुकदमा लड़ने वालों को पता ही नहीं चलता कि वे हारे हैं तो क्यों हारे हैं और जीते हैं तो क्यों जीते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि हमारा कानून, हमारी बहस, हमारे फैसले- सब अंग्रेजी में होते हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आप किसी भी भारतीय भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते। हिंदी का भी नहीं। हिंदी राजभाषा है। यह हिंदी और राज दोनों का मजाक है। यदि आप संसद में भारतीय भाषाओं का प्रयोग कर सकते हैं तो सबसे बड़ी अदालत में क्यों नहीं? यह सबसे बड़ा अन्याय है! देश के सिर्फ चार उच्च न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग हो सकता है- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार। छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु ने भी स्वभाषा के प्रयोग की मांग कर रखी है। नरेंद्र मोदी ने भी 2012 में मुख्यमंत्री के तौर पर गुजरात उच्च न्यायालय में गुजराती के इस्तेमाल की मांग रखी थी लेकिन केंद्र में उनकी सरकार बने तीन साल हो रहे हैं, नतीजा शून्य है। यह जरूरी है कि संविधान की धारा 348 (1) में तुरंत संशोधन किया जाए ताकि हमारी अदालतों में भारतीय भाषाओं में काम शुरू हो और करोड़ों देशवासियों को न्याय मिलने में देरी न हो।
’देवेंद्रराज सुथार, बागरा, जालोर

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