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गांव में जातीय और राजनीतिक उन्माद का नतीजा है सहारनपुर संघर्

SI News Today

सहारनपुर का जातिगत संघर्ष उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की कानून व्यवस्था के लिये पहली बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है और यहां के दलित एवं ठाकुर समुदाय के नेता दावा करते हैं कि सहारनपुर के जातिगत संघर्षों में राजनीति की एक अंत:धारा है जिसने मुस्लिमों को भी अपने दायरे में समेट लिया है। करीब 600 दलितों और 900 ठाकुरों की आबादी वाले गांव शब्बीरपुर से हिंसक चक्र की शुरुआत हुई थी। इन संघर्षों के दलित पीड़ितों का कहना है कि ऊंची जाति के ठाकुरों ने उन्हें गांव के रविदास मंदिर परिसर में बाबासाहिब अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित नहीं करने दी थी।

बाद में पांच मई को राजपूत राजा महाराणा प्रताप की जयंती के उपलक्ष्य में ठाकुरों के एक जुलूस पर एक दलित समूह ने आपत्ति जतायी तो इससे हिंसा फूट पड़ी। इसमें एक व्यक्ति को अपनी जान गंवानी पड़ी और 15 लोग घायल हो गये। गांव के जाटव दलितों का कहना है कि जब तक बहनजी  का शासन था तब तक ठाकुरों ने अपनी भावनाएं दबाये रखीं लेकिन अब चीजें बदल गयी हैं।
सहारनपुर जिला अस्पताल में अपने जख्मों का उपचार करा रहे 62 वर्षीय दाल सिंह कहते हैं, ‘‘ठाकुर समुदाय से आने वाले योगी आदित्यनाथ के सरकार की बागडोर संभालन पर उनकी जाति के लोग अपना दबदबा जता रहे हैं।’’
वह कहते हैं, ‘‘बसपा शासन के दौरान वे कहा करते थे, ‘दलितों को छुना तक नहीं। वे हाई वोल्टेज के तार है।’ अब वे कत्लेआम मचा रहे हैं। इस सरकार को आये बमुश्किल दो महीने ही हुए हैं, पांच साल तो लंबा वक्त है।’’
जारी भाषा

जातीय संघर्ष में आगजनी से अपना आशियाना गंवा चुके श्याम सिंह आरोप लगाते हैं, ‘‘भाजपा सरकार हिंसा के जरिये अपने ठाकुर वोट बैंक सुदृढ़ करना चाहती है क्योंकि स्थानीय निकायों के चुनाव नजदीक हैं।’’
संघर्ष के एक अन्य पीड़ित स्वप्निल भास्कर आरोप लगाते हैं, ‘‘सड़क दूधली गांव में भाजपा ने मुस्लिमों के खिलाफ दलितों को खड़ा करने की कोशिश की। वहां अप्रैल के दौरान अंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में एक रैली के आयोजन के वक्त झड़पव हुई थी। वे दलित वोट पर आंख गड़ाए हैं।’’
संघर्ष में घायल हुए लोगों से मिलने के लिये सहारनपुर का दौरा करने वाले राज्यसभा सांसद एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष पी एल पुनिया ने कहा, ग्राम प्रमुख के आवास पर अंबेडकर की एक प्रतिमा है। लेकिन अन्य समूह ने मंदिर परिसर में एक आवक्ष प्रतिमा की स्थापना के लिये बड़ा हेगामा किया था।पुनिया ने दावा किया, ‘‘क्षत्रियों ने दलितों पर अत्याचार किये और उनके इस काम में उन्हें प्रशासन का सहयोग मिला। भाजपा नेताओं ने सड़क दूधली में एक अबेंडकर रैली का नेतृत्व करने का नाटक किया।’’
स्थानीय सांसद राघव लखनपाल शर्मा के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की अनुमति के बगैर अंबेडकर जयंती के अवसर पर सड़क दूधली में एक मार्च निकाला था, जिसमें हिस्सा लेने वाले लोग मुस्लिम निवासियों से भिड़ गये थे। दलितों ने 14 अप्रैल को इसे मनाया था।

पिछले साल गुजरात में दलित आंदोलन का चेहरा रहे जिग्नेश मेवानी ने कहा, जब से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तब से फासीवादी ताकतों का दबदबा बढ़ गया है। वे प्रोत्साहित महसूस करते हैं। इससे पहले कभी महाराणा प्रताप की जयंती पर रैली नहीं निकाली गयी थी। इस बार उन्होंने यह परंपरा भी तोड़ी। मेवानी ने कहा, ‘‘जब स्थिति बदतर होने लगी तब गांव के दलितों ने पुलिस को सचेत किया था। अनुसूचित जाति एवं जनजाति :अत्याचार रोकथाम: अधिनियम के तहत ऐसे मामलों को प्रशासन के लिये एहतियाती उपाय करना जरूरी होता है। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। यह दिखाता है कि कोई तो है जिसने उन्हें ऐसा करने से रोका। उन्होंने पूछा, ‘‘एक गर्भवती महिला पर तलवार से वार किया गया और उसके अजन्मे बच्चे को खत्म करने का प्रयास किया गया। तो ‘सबका साथ सबका विकास’ नीति का क्या हुआ?

उन्होंने कहा कि ‘भीम सेना’ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के लिये प्रतिबद्ध है जबकि पुलिस कहती है कि जिले में नौ मई को हुई हिंसा के पीछे उसी का हाथ है। मेवानी ने आरोप लगाया, ‘‘डकैत से नेता बनीं दलित महिला फूलन देवी की हत्या के लिये वर्ष 2014 में दिल्ली की एक अदालत ने जिस शेर सिंह राणा को दोषी ठहराया था उसे महाराणा प्रताप की प्रतिमा के माल्यार्पण के लिये आमंत्रित किया गया था। साफ है कि वे दलितों में डर भरना चाहते हैं। बहरहाल, जमानत पर चल रहे शेर सिंह ने दावा किया कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई वास्ता नहीं है और उन्हें सिमलाना गांव में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। एसपी :नगर: प्रबल प्रताप ने कहा कि पुलिस अपना काम कर रही है और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक संदेशों को प्रसारित कर तनाव बढ़ाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।

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