अमदाबाद में जीका वायरस के संक्रमण के तीन मामले पाए जाने की पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से हो जाने के बाद, कहने की जरूरत नहीं कि भारत को क्या करना चाहिए। देश को काफी सावधानी बरतनी होगी ताकि इसे महामारी होने से रोका जा सके। हालांकि केंद्र सरकार ने भरोसा दिलाया है कि घबराने की कोई जरूरत नहीं, स्थिति पूरी तरह काबू में है, कोई नया मामला सामने नहीं आया है। पर देश के किसी और कोने में जीका वायरस प्रकट नहीं होगा, इसकी गारंटी कौन दे सकता है! जो तीन मामले पाए गए वे खून की सामान्य जांच से पकड़ में आए। जीका-संक्रमित व्यक्ति को बुखार, जोड़ों में दर्द, सिर भारी होना आदि तकलीफें होती हैं जो कि कई और बीमारियों से लेकर डेंगू, चिकनगुनिया तक के सामान्य लक्षण हैं। यों अब तक का अनुभव बताता है कि जीका में मृत्यु दर ज्यादा नहीं होती, पर खासकर गर्भवती स्त्रियों और गर्भ में पल रहे बच्चों पर भयावह असर पड़ता है। पैदा होने वाले बच्चों के सिर का आकार छोटा रहता है और उनका मस्तिष्क अविकसित रह जा सकता है। यों इसका इतिहास 1952 से शुरू हुआ, जब पहली बार मनुष्यों में इसके संक्रमण पाए गए। उससे पहले 1947 में युगांडा के जीका जंगल में बंदरों में यह बीमारी देखी गई थी, और शायद जीका नाम वहीं से पड़ा होगा।
पिछले साल के शुरू में ब्राजील में जीका खौफ का पर्याय हो गया था, क्योंकि इसने महामारी का रूप ले लिया था। हजारों बच्चे अविकसित या क्षतिग्रस्त मस्तिष्क के साथ पैदा हुए। लातिन अमेरिका के दूसरे कई देशों में भी जीका का प्रसार हुआ था। हालत यह थी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान देने लायक स्वास्थ्य-आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। सिर्फ यूरोप है, जहां जीका का कोई मामला कभी नहीं पाया गया। बहरहाल, जीका में मृत्यु दर भले कम रही हो, इसके संक्रमण की दर इबोला जैसी कई दूसरी महामारियों से अधिक मानी जाती है। इसलिए भी विशेष सतर्कता बरते जाने की जरूरत है। भारत घनी आबादी वाला देश है और यहां साफ-सफाई तथा सार्वजनिक चिकित्सा तंत्र की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। यही नहीं, जीका वायरस के वाहक एडीज प्रजाति के ही मच्छर होते हैं जो डेंगू, चिकनगुनिया और येलो फीवर भी फैलाते हैं। डेंगू का प्रकोप हर साल किसी न किसी स्तर पर फूटता ही है, पिछले साल तो डेंगू ने कहर ही बरपाया था। पहले खासकर दिल्ली ही डेंगू से डरी रहती थी, पर अब देश के किसी भी हिस्से में डेंगू के मरीज मिल जाते हैं। यही बात चिकनगुनिया के बारे में भी कही जा सकती है।
जब एडीज मच्छरों की वजह से होने वाली डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां देश में सेहत से जुड़ी एक बड़ी समस्या बन चुकी हैं, तो उसी प्रजाति के मच्छरों से फैलने वाले जीका वायरस के खतरों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। एक ऐसी बीमारी जो पहले कई दूसरे देशों को निशाना बना चुकी हो, उसकी याद ही दुनिया को डरा देती है। अगर नए सिरे से वह कहीं प्रकट हो तब तो चिंता की कोई सीमा नहीं रहती। फिर, आज के वैश्वीकृत दौर में वायरस-संक्रमण के राष्ट्रों की सीमाएं पार करने की आशंका ज्यादा रहती है और यह केवल लोगों तथा आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य की समस्या नहीं रहती, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी संकट में डाल सकती है। इसलिए जीका को निर्मूल करने को इस वक्त सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।